Sunday, September 26, 2021

कुकुरमुत्ता पार्टियां और कांग्रेस का प्रपंच

यूपी में अगले साल चुनाव हैं और हर चुनाव के समय तमाम पार्टियां कुकुरमुत्तों की तरह पैदा हो जाती हैं। आज चर्चा उस कुकुरमुत्ता_पार्टी की जिसे हमारे यहां के गिद्ध टाइप बुद्धिभोजी और लिब्रान्डू मीडिया सेक्युलर बताते नहीं थकते हैं।

हम बात कर रहे हैं भारतीय मुसलमानों के स्वयंभू_खलीफा असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) की, जिसके नाम से ही जाहिर है कि यह पार्टी किनके लिये है और कितनी सेक्युलर को सकती है।

चलिये, इस सेक्युलर(?) पार्टी के बारे में कुछ तथ्य जान लेते हैं-

एआईएमआईएम की स्थापना आज से 92 साल पहले नवंबर 1927 में हुई थी। यह पार्टी हैदराबाद को एक आजाद इस्लामिक_रियासत के रूप में भारत से अलग करने की पक्षधर थी, संभवतः इसीलिये स्वतंत्र भारत में हैदराबाद रियासत का विलय होने के बाद आंध्र प्रदेश में यह पार्टी राजनीतिक दृष्टि से मृतप्राय हो गयी और इसे एक भी सीट नहीं मिली।

यह स्थापित सत्य है कि स्वतंत्रता के बाद लम्बे अरसे तक लगभग सम्पूर्ण भारत में कांग्रेस की ही राजनीति सत्ता रही, आंध्रप्रदेश में भी कांग्रेसी सरकारें ही बनती रहीं। फिर अकस्मात आंध्रप्रदेश की राजनीति में तेलगु फिल्मों के भगवान एनटीआर का उदय हुआ। उन्होंने 1982 में अपनी पार्टी तेलगुदेशम बनायी और कांग्रेस की जड़ें हिला दीं।

तब केंद्र में कांग्रेस सरकार थी और इंदिरा_गांधी प्रधानमंत्री थीं। दिसंबर 1982 के विधानसभा चुनावों में तेलगुदेशम ने कांग्रेस को पराजित कर दिया और 9 जनवरी 1983 को एनटी रामाराव आंध्रप्रदेश के पहले गैरकांग्रेसी मुख्यमंत्री बने। इंदिरा ने अपनी चालें चलीं और अगस्त 1984 में एनटी रामाराव की सरकार गिरा दी गयी, आंध्रप्रदेश में फिर से चुनाव घोषित हो गये।

एनटी रामाराव लोकप्रियता के शिखर पर थे, जनता की सहानुभूति भी उनके साथ थी और चुनावों में कांग्रेस की हार तय थी। ऐसे में एक दिन अचानक इंदिरा गांधी हैदराबाद में एआईएमआईएम के दफ्तर पहुंच गयीं। असदुद्दीन ओवैसी के मरहूम अब्बाजान सलाहुद्दीन ओवैसी तब की मुर्दा एआईएमआईएम के अध्यक्ष थे। इंदिरा ने सलाहुद्दीन ओवैसी के साथ खाना खाया और एनटी रामाराव के विजय रथ को रोकने के लिये आंध्र प्रदेश के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में एआईएमआईएम के साथ गठबंधन किया।

इस गठबंधन से कांग्रेस को तो कोई फायदा नहीं हुआ, लेकिन एआईएमआईएम को पहली बार आंध्रप्रदेश में विधानसभा की 4 और लोकसभा की एक सीट पर जीत मिली। एनटी रामाराव भारी बहुमत से फिर आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री बने और अपना कार्यकाल पूरा किया।

एक मरी हुई देशविरोधी_पार्टी को कांग्रेस ने अपने कुकर्मों और निजी स्वार्थ की वजह से जिंदा कर दिया। जिस मरे_सांप को कांग्रेस ने जिंदा किया था, वही सांप अब कांग्रेस को डसने लगा है, तो कांग्रेसी बार-बार बिलबिला कर ओवैसी को बीजेपी का एजेंट बताने लगते हैं। उनके पिछवाड़े मारकर इंदिरा गांधी का कुकर्म याद जरूर दिलाइयेगा।

जय_हिन्द 🙏

Wednesday, September 8, 2021

कांग्रेस का रीढ़विहीन नेतृत्व बनाम भाजपा

ऐतिहासिक_तथ्य..

22 मई 2004 को देश के प्रधान पद से अटल_जी की अप्रत्याशित विदाई हुई। राजनीतिक दृष्टिकोण से यह कोई अभूतपूर्व घटना नहीं थी, परंतु उसके बाद देश में जो कुछ हुआ वह अविस्मरणीय अवश्य है।

अटल जी के बाद रीढ़विहीन नेतृत्व में रिमोट से चलने वाली कांग्रेसी_सरकारें केंद्र की सत्ता में आयीं जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि एक के बाद एक घाव भारतमाता को लगते रहे। स्मरण करिये-

1. 15 अगस्त 2004, असम के धीमाजी में ब्लास्ट 18 मृत/40 घायल
2. 5 जुलाई 2005, अयोध्या  5 मृत/26 घायल
3. 28 जुलाई 2005, जौनपुर RDX ब्लास्ट 13 मृत/50 घायल
4. 29 अक्टूबर 2005, दिल्ली सीरियल ब्लास्ट 70 मृत/250 घायल
5. 28 दिसंबर 2005, IIMS बंगलोर हमला 1 मृत/4 घायल
6. 7 मार्च 2006 वाराणसी में 3 बम धमाके, 28 मृत/104 घायल
7. 11 जुलाई 2006, मुंबई सीरियल ट्रेन ब्लास्ट 209 मृत/700 घायल
8. 8 सितंबर 2006, मालेगांव मस्जिद ब्लास्ट 37 मृत/125 घायल, (इसमें सिमी का हाथ था, लेकिन कांग्रेस ने इसे हिंदू आतंकवाद में बदला।)
9. 18 फरवरी 2007, समझौता ब्लास्ट 68 मृत/50 घायल, (इसमें लश्कर का हाथ लेकिन कांग्रेस ने इसे भी हिंदू आतंकवाद में बदलवाया।)
10. हैदराबाद मस्जिद ब्लास्ट, 16 मृत/100 घायल, (इसे भी कांग्रेस ने हिंदू आतंकवाद में बदलने की असफल कोशिश की।)
11. 14 अक्टूबर 2007, लुधियाना ब्लास्ट 6 मृत/22 घायल
12. 22 नवंबर 2007, यूपी के कई शहरों में ब्लास्ट 16 मृत/79 घायल
13. 1 जनवरी 2008, यूपी के रामपुर में CRPF कैंप ब्लास्ट 8 मृत/7 घायल
14. 13 मई 2008, जयपुर सीरियल ब्लास्ट 63 मृत/200 घायल
15. 25 जुलाई 2008, बैंगलोर ब्लास्ट 2 मृत/20 घायल
16. 26 जुलाई 2008, अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट 35 मृत/110 घायल
17. 13 सितंबर 2008, दिल्ली सीरियल ब्लास्ट 33 मृत/108 घायल
18. 27 सितंबर 2008, दिल्ली महरौली ब्लास्ट 3 मृत/33 घायल
19. 1 अक्टूबर 2008, अगरतला ब्लास्ट 4 मृत/100 घायल
20. 21 अक्टूबर 2008, इंफाल ब्लास्ट 17 मृत/50 घायल
21. 30 अक्टूबर 2008, असम ब्लास्ट 81 मृत/500 घायल
22. 26 नवंबर 2008, मुंबई आतंकी हमला 166 मृत/600 घायल
23. 1 जनवरी 2009, गौहाटी ब्लास्ट 6 मृत/67 घायल
24. 6 अप्रैल 2009, गौहाटी ब्लास्ट 7 मृत/62 घायल
25. 13 फरवरी 2010, पुणे जर्मन बेकरी ब्लास्ट 17 मृत/70 घायल
26. 7 दिसंबर 2010, वाराणसी सीरियल ब्लास्ट 3 मृत/36 घायल
27. 13 नवंबर 2011, मुंबई ब्लास्ट 26 मृत/126 घायल
28. 7 सितंबर 2011, दिल्ली हाईकोर्ट ब्लास्ट 17 मृत/180 घायल
29. 1 अगस्त 2012, पुणे ब्लास्ट मृत/घायल अज्ञात
30. 21 फरवरी 2013, हैदराबाद ब्लास्ट 18 मृत/131 घायल
31. 17 अप्रैल 2013, बंगलोर ब्लास्ट 14 घायल
32. 7 जुलाई 2013, बोधगया ब्लास्ट 6 घायल
33. 27 अक्तूबर 2013, पटना रैली में ब्लास्ट 8 मृत/85 घायल
34. 1 मई 2014, चेन्नई ट्रेन ब्लास्ट 2 मृत/14 घायल

इनके अतिरिक्त माओवादियों, नक्सलियों और कश्मीर आदि में आतंकियों द्वारा निरंतर घटनाएं की गयीं, उनमें मृत/घायलों के आंकड़े उपलब्ध ही नहीं हैं और बटला_हाउस जैसी घटनाएं भी हुईं जिसमें आतंकियों के मारे जाने पर कांग्रेसी_राजमाता को फूट-फूट कर रोना पड़ गया था।

आप भाजपा और मोदी के कितने भी विरोधी हों, लेकिन यह तो स्वीकार ही करना होगा (भले ही दिल पर पत्थर रख कर मानें) कि उनके प्रधान बनने के बाद आतंकी J&K से नीचे नहीं उतर पाये और 2014 के बाद से देश में कहीं भी कोई ब्लास्ट नहीं हुआ है।

तो.. हर बार सरकार चुनते समय सोचियेगा जरूर कि आपको आतंकियों की मौत पर रोने वाले चाहिये, या आतंकियों को उनकी मांद में घुसेड़ कर 72_सुअरों के पास दोजख में भेजने वाले चाहिये.?

जय_हिंद 🙏

Thursday, August 26, 2021

इस्लाम का गड़बड़झाला..

गजब का #गड़बड़झाला है..

अफगानिस्तान में मुसलमानों को कौन मार रहा है.?
सीरिया में मुसलमानों की हत्या कौन कर रहा है.?
यमन में मुसलमानों को कौन मार रहा है.?
इराक में मुसलमानों को कौन मार रहा है.?
लीबिया में, मिस्र में, सोमालिया में, बलूचिस्तान में और तमाम इस्लामिक देशों में मुसलमानों को कौन मार रहा है.?

क्या अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, लेबनान, यमन और मिस्र, सोमालिया वगैरह को बजरंग_दल या हिन्दू_महासभा ने बर्बाद किया है.? या वहां दंगे करने के लिये आरएसएस के लोग गये थे.?    

75 साल पहले 1946 तक विश्व में इस्लामी देशों की संख्या सिर्फ 6 थी। आज मुस्लिम देश 57 हो गये हैं, लेकिन इनमें से किसी एक में भी आज मुस्लिम सुरक्षित नहीं हैं।

बताया तो यही जाता है कि इस्लाम एक शांतिपूर्ण धर्म है और आसमानी किताब के मुताबिक तो दुनिया भी इस्लाम के साथ ही पैदा हुई थी। लेकिन पता नहीं क्यों जैसे-जैसे इस्लाम बढ़ता गया, दुनिया से शांति रहस्यमय रूप से से गायब होती गयी।

बौद्ध+हिन्दू= कोई समस्या नहीं,
हिन्दू+ईसाई= कोई समस्या नहीं,
हिन्दू+यहूदी= कोई समस्या नहीं,
ईसाई+नास्तिक= कोई समस्या नहीं,
नास्तिक+बौद्ध= कोई समस्या नहीं,
बौद्ध+सिख= कोई समस्या नहीं,
सिख+हिन्दू= कोई समस्या नहीं..

लेकिन

मुस्लिम+हिन्दू= समस्या
मुस्लिम+बौद्ध= समस्या
मुस्लिम+ईसाई= समस्या
मुस्लिम+Jews= समस्या
मुस्लिम+सिख= समस्या
मुस्लिम+Baha'is= समस्या
मुस्लिम+नास्तिक= समस्या
मुस्लिम+Atheists= समस्या
और
मुस्लिम+मुस्लिम= सबसे बड़ी समस्या..

अगर मुस्लिम बहुसंख्यक है, तो न वह सुखी है न किसी को सुखी रहने देगा-

मुस्लिम गाजा में सुखी नहीं,
मुस्लिम Egypt में सुखी नहीं,
मुस्लिम लीबिया में सुखी नहीं,
मुस्लिम मोरोक्को में सुखी नहीं,
मुस्लिम ईरान में, इराक में सुखी नहीं,
मुस्लिम सीरिया, लेबनान में सुखी नहीं,
मुस्लिम नाइजीरिया में, केन्या में, सूडान में सुखी नहीं..
और मुस्लिम यमन में, अफगानिस्तान में, पाकिस्तान में सुखी नहीं..

मुस्लिम सुखी वहां हैं, जहां वह कम संख्या में है-

मुस्लिम सुखी है आस्ट्रेलिया में,
मुस्लिम सुखी है इंग्लैंड में,
मुस्लिम सुखी है बेल्जियम में,
मुस्लिम सुखी है फ्रांस में,
मुस्लिम सुखी है इटली में
मुस्लिम सुखी है जर्मनी में,
मुस्लिम सुखी है स्वीडन में,
मुस्लिम सुखी है USA में,
मुस्लिम सुखी है कनाडा में,
मुस्लिम सुखी है नार्वे में,
मुस्लिम सुखी है नेपाल में..
और मुस्लिम सुखी है भारत में..

दरअसल मुसलमान उन्हीं देशों में सुखी हैं जो इस्लामिक देश नहीं है, लेकिन विडम्बना यह है कि वो उन्ही देशों को लगातार दोषी भी ठहराते रहते हैं और वहां की लीडरशिप को बदलने की कोशिश में लगे रहते हैं। इसके लिये वह हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं और उनकी आसमानी_किताब इन सभी जायज_नाजायज हथकंडों को जिहाद कहते हुए इसे परमिट भी करती है।

UNO के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार इस समय विश्व में 1687 इस्लामिक_आतंकवादी संगठन हैं, जिनके दम पर यह शांतिदूत दुनिया को बदलना चाहते हैं। टॉप 15 नमूने देखिये-

1. ISIS
2. अलकायदा
3. तालिबान
4. हमास
5. हिज्बुल मुजाहिदीन
6. बोको हरम
7. Al Nusra
8. अबू स्याफ
9. अल बदर
10. मुस्लिम ब्रदरहुड
11. लश्कर-ए-तैयबा
12. Palestine Liberation Front
13. Ansaru
14. जेमाह इस्लामिया
15.अब्दुल्ला आजम ब्रिगेड

क्या अभी भी समझाना होगा
कि असल समस्या कौन है और आतंकवाद_का_मजहब क्या है.?! 🤔

जानकारी_ही_बचाव है.. 🙏

Sunday, August 8, 2021

विपक्षी पार्टियां और राहुल गांधी का मंकी_एफर्ट..

एक बार जंगल में शेर के खिलाफ बगावत हो गयी, शेर से नाराज तमाम जानवर इकट्ठा हो गये और मौका अच्छा देख बन्दर उनका नेता बन गया। फिर जंगल में प्रचार होने लगा कि शेर अत्याचारी है और अब जंगल को बन्दर ही बचा सकता है.. 

फिर एक दिन शेर_विरोधी मार्च तय हुआ और सभी शेर विरोधी पोस्टर बैनर लेकर इकट्ठा हुए। तभी वहां शेर आ गया। जानवर डर गये और बंदर से बोले- "तुम हमारे नेता हो, हमें शेर से बचाओ.!" बन्दर भी पेड़ पर चढ़ कर इस डाल से उस डाल कूद-कूद कर खों-खों करने लगा, शेर चुपचाप मजे लेता रहा.! शेर के जाने के बाद जंगल के जानवरों ने बंदर से पूछा- "तुमने कुछ किया क्यों नहीं.?" बंदर ने ऐतिहासिक उत्तर दिया- "डाल-डाल कूद कर मैंने कितनी कोशिश की थी, मेरे एफर्ट में कोई कमी थी क्या.?"

भारत का विपक्ष भी लगातार मृतप्राय_कांग्रेस और वयस्क_बालक राहुल_गांधी के भरोसे कभी राफेल, कभी CAA और NRC, कभी एवार्ड वापसी, कभी किसान आंदोलन और अब पेगासस जैसे मंकी_एफर्ट्स से मोदी को हटाना चाह रहा है। विपक्ष समझ ही नहीं पा रहा है कि-

मुस्लिम_वोट_बैंक में दम होता, तो मई 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री न बने होते..
नफरत से भरे मुट्ठीभर_लेखकों और कवियों को मई 2014 के बाद विलाप भाव की कविता का पाठ करते हुए एवार्ड_वापसी और देश छोड़ने का ऐलान न करना पड़ता..
राफेल में दम होता, तो फिर 2019 में नरेंद्र मोदी दुबारा प्रधानमंत्री न बने होते..
NRC और CAA के दंगों में दम होता, तो किसान आंदोलन न होता..
और किसान_आंदोलन में दम होता, तो अब पेगासस जैसी बासी_कढ़ी फिर से न उबाली जा रही होती.. 

मेरे विचार से नरेंद्र_मोदी_वार्ड में भर्ती विपक्ष के सारे मरीजों को समझ लेना चाहिये कि मंकी_एफर्ट्स से देश की छवि खराब करते हुए अपना ईगो_मसाज तो किया जा सकता है, पर नरेंद्र मोदी जैसे जननायक को बानरी उछल कूद से पछाड़ पाना संभव नहीं है।   

चंद मुस्लिम वोटों के लिये "भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्ला, इंशा अल्ला.." या "तुम कितने अफजल मारोगे, हर घर से अफजल निकलेगा.." की मानसिकता में डूबे विपक्ष की पुलवामा में आतंकी कार्रवाई को भी मोदी की साजिश मानना, मोदी विरोध के उफान में चीन को अपना बाप मान लेना, सर्जिकल_स्ट्राइक और एयर_स्ट्राइक को फर्जी बताकर सबूत मांगना, अभिनंदन की वापसी को भी तिकड़म मानना.. सेना, सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग सहित हर संवैधानिक_संस्था व जनता को भी भक्त तथा भाजपाई घोषित कर देना और कोरोना_काल में भी देश को गृहयुद्ध में झोंकने की कोशिश करना उसे निरंतर रसातल में ही ले जा रहा है।

अब देश ही नहीं, देश की राजनीति भी आमूल-चूल बदल चुकी है और जनता ने अपनी प्राथमिकताएं भी बदल ली हैं। जनता अब अपनी जरूरतें भी जानती है और अपनी महत्वाकांक्षाएं भी। तो उचित होगा कि सम्पूर्ण विपक्ष और कांग्रेस भी राहुल के मंकी_एफर्ट के खेल से बाहर निकल कर जमीनी स्तर पर जनता के बीच नहीं जाये और सकारात्मक राजनीति करे नहीं तो गगन_विहारी विपक्ष तो लगातार मोदी को और अधिक मजबूत ही बनाता दिख रहा है और 2024 में भी नरेंद्र का कुछ बिगाड़ पायेगा, ऐसा सम्भव नहीं लग रहा है।

🚩🇮🇳 #जय_हिंद 🇮🇳🚩

Thursday, July 15, 2021

पीर की हरी_चादर और खौफजदा_हिन्दू..

आपमें से बहुतों ने किसी न किसी पीर या ख्वाजा की मजार पर हरी_चादर या उसपर पैसे जरूर चढ़ाये होंगे, ये न भी किया हो तो मोहल्ले में घूमते लम्बे_कुर्ते और छोटे_पाजामे वालों की हरी_चादर पर सिक्के तो जरूर ही डाले होंगे। मैं भी पत्नीजी के दबाव में जयपुर जाकर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती उर्फ गरीबनवाज की मजार पर चादर चढ़ाने में उनका सहयोग कर चुका हूं। उस कथा और उसके निहितार्थ पर चर्चा फिर कभी.. फिलहाल पीर, ख्वाजा और सैयद की बात करते हैं।

क्या जानते हैं आप, हम या कोई सामान्य हिन्दू इन पीर, ख्वाजा या सैयद के बारे में.? क्या हमें इन शब्दों के अर्थ या इनकी उत्पत्ति के बारे में भी पता है.? जानिये और समझिये..

भारतवर्ष के लगभग 250 वर्षों के मुस्लिम गुलामी काल में पीर वह राजस्व_अधिकारी होता था, जिसके जिम्मे हिन्दू गावों से लगान और टैक्स (जजिया वगैरह) आदि वसूलने का काम होता था। यह महत्वपूर्ण पद था, पीर की सुरक्षा व्यवस्था इतनी तगड़ी होती थी कि कोई भी उसके 9 गज से करीब नहीं आ सकता था और गांव वालों को नियत स्थान पर पीर के सामने जाकर टैक्स की रकम या सामान रख देना होता था।

जो हिन्दू परिवार टैक्स देने में असमर्थ रहते थे, पीर के सुरक्षा कर्मी उनके परिवार की सबसे सुंदर बहू या बेटी को नंगा करके लाते थे और पूरे गांव के सामने उसके साथ बलात्कार किया जाता था ताकि फिर कोई भी टैक्स देने से मना करने की हिम्मत न करे। इस घिनौने बलात्कार के बाद उस बहू बेटी के नंगे_बदन पर चादर डाल दी जाती थी और गांव के बाकी लोगों को लगान व टैक्स का पैसा उसी चादर पर डालना होता था।

पीर से ज्यादा अधिकार और क्षेत्रफल ख्वाजा के पास होता था, वह पीर से भी ज्यादा अत्याचार लूटखसोट करता था। ख्वाजा से भी ज्यादा अधिकार सैय्यद को मिले होते थे। 

धीरे-धीरे यह प्रथा बन गयी। फिर पीर, ख्वाजा या सैयद जब भी किसी हिन्दू गांव में वसूली के लिये जाते, तब पहले ही उनके लिये गांव की सुंदर हिन्दू लड़कियां और बहुएं छांट कर रखी जाती थीं। वह उनके साथ बलात्कार करते फिर उनके नंगे_शरीर पर चादर बिछा दी जाती थी, हिन्दू जनता उसी चादर पर टैक्स की रकम डाल देती थी..

सौभाग्य से अब वो कुकर्मी पीर, ख्वाजा या सैयद नहीं रहे.. लेकिन हम मूर्ख और अज्ञानी_हिन्दू आज भी न जाने किस खौफ में अपनी बहन-बेटियों की इज्जत लूटने वाले उन्हीं नीचों की कब्रों पर माथा रगड़ते फिरते हैं और उनकी चादरों पर पैसा चढ़ा रहे हैं।

कायरता_और_मूर्खता की इससे बड़ी मिसाल अगर दुनिया में कहीं और मिले, तो प्लीज मुझे भी बताइयेगा.. 😡

नोट: यह लेख बीकानेर_संग्रहालय में संचित मुगलकालीन पांडुलिपियों में अंकित तथ्यों पर आधारित है।

Monday, July 12, 2021

लिबरल समाज और मासूम_भेड़िया..

पति-पत्नी जंगल से गुजर रहे थे। अचानक पत्नी की दृष्टि सड़क पर घायल पड़े एक जानवर के बच्चे पर पड़ी, उसने कार रुकवा दी और दोनों बाहर आ गये।

पत्नी बोली ने उसे पानी पिलाया तो शावक में थोड़ी जान आयी। पत्नी बोली- "यह तो कुत्ते का बच्चा है, इसे साथ ले चलते हैं। हमारे दोनों कुत्तों के साथ ही रह लेगा.." पति ने कहा- "शहर से दूर इस जंगल में कुत्ता कहां से आयेगा.? यह भेड़िये का बच्चा है, इसे छोड़ो और कार में बैठो.." पत्नी अड़ गयी कि यह कुत्ते का ही बच्चा है और उसे अपने घर ले आयी।

अच्छे खान-पान से थोड़े ही दिन में भेड़िये का बच्चा मोटा-तगड़ा हो गया। कुछ दिनों बाद ही दंपति का एक कुत्ता घर से गायब हो गया, उसकी हड्डियां घर के पीछे मिलीं और भेड़िये के बच्चे के मुंह में खून लगा मिला। पति बोला- देखा, मैंने कहा था न कि यह भेड़िये का बच्चा है.? इसने हमारे कुत्ते को मार डाला.!" पत्नी बोली- "दोनों कुत्ते पहले दिन से ही इससे चिढ़ते थे, इस बेचारे ने अपने बचाव में ही ऐसा किया होगा.!" पति चुप हो गया.. 

कुछ दिनों बाद दूसरा कुत्ता भी गायब हो गया। पति ने फिर भेड़िये के बच्चे पर शक जताया, पत्नी फिर उसके समर्थन में आ गयी। घर में झगड़े होने लगे और पड़ोसी भी बोलने लगे कि मोहल्ले से भेड़िये को भगाओ, लेकिन पत्नी मानने को तैयार ही नहीं थी।

फिर एक दिन उन पति-पत्नी का अपना एक बच्चा भी गायब हो गया, अब पति अड़ गया कि इसे घर में नहीं रहने दूंगा। पत्नी नहीं मानी और दोनों में तलाक हो गया, पत्नी अपने दूसरे बच्चे और भेड़िये को लेकर मायके आ गयी। कुछ दिनों के बाद भेड़िया उसके दूसरे बच्चे को भी खाकर भाग गया। अब पत्नी भेड़िये को खोजने निकल पड़ी, लोगों ने कहा- "पहले तो हमारी बात मानी नहीं, अब उसे खोज कर क्या करोगी.?"

पत्नी बोली- "मैं उस भेड़िये को #माफी मांगने के लिये ढूंढ़ रही हूं। अगर मेरे पति और दोनों कुत्तों ने उस मासूम से इतनी नफरत न की होती, तो बेचारे को मानव_मांस खाने को मजबूर न होना पड़ता.."

हम आज भी तथाकथित गांधीवादियों और लिबरलों के चक्कर में भेड़ियों_से_मुहब्बत और अपनों_की_अनदेखी कर रहे हैं। लेकिन याद रखिये कि भेड़िये कभी भी अपना धर्म, अपना चरित्र नहीं बदलते.. वो खूनी होते हैं और खूनी ही रहेंगे..!

नोट: इस कथा का आतंकवाद_के_धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है.. 😐

Friday, July 9, 2021

प्रायोजित लव_जिहाद और हिन्दू_मुर्गियां..

पिछले दिनों लगभग सारे भारतीय मीडिया ने आमिर_खान और किरन_राव के तलाक का महिमामंडन करते हुए ऐसे दिखाया, जैसे यह कोरोना_वैक्सिनेशन से भी बड़ी खबर है। एक वर्ग ने इनसे सहानुभूति दिखायी और अति उत्साही राष्ट्रवादियों ने लव_जिहाद कहकर इसकी भर्त्सना की..

मेरी दृष्टि में आमिर खान और किरन राव का मामला केवल लव जिहाद का नहीं है। किरन राव कभी भी न तो इसमें फंसी थी, न ही अब इससे मुक्त हुई है। वास्तव में यह पूरा घटनाक्रम शुरु से ही आमिर खान का एक प्रायोजित_कार्यक्रम था और किरन राव इसमें बस अपना रोल_प्ले कर रही थी। 

किरन को आगे करके आमिर ने पहले लव_जिहाद को प्रमोट किया, फिर सरोगेसी को और अब 30 करोड़ में उसे तलाक देकर तलाक को प्रमोट कर रहा है। यह फिल्मी लोग कोई भी प्रमोशन फ्री में नहीं करते और भारत में इस टाइप के प्रमोशन के लिये तो आधी दुनिया के शांतिदूत खजाना खोले तैयार रहते हैं। वैसे सभी को मेहनताना देने के बाद भारी-भरकम बजट वाली इस प्रायोजित_फिल्म की शूटिंग फिलहाल खत्म हो गयी है।

कटु सत्य यह भी है कि ऐसे फिल्मी निकाह या तलाक से कभी भी किसी शर्मिला_टैगोर, अमृता_सिंह, करीना_कपूर या किरन_राव को ज्यादा दिक्कत नहीं होती। इस घटिया प्रमोशन से असल दिक्कत होती है इनकी देखा-देखी किसी आमिर पर भरोसा कर लेने वाली गांव_देहात की किरनों को। उनकी स्थिति उस मुर्गी जैसी होती है जिसे अंडे देने तक तो रोज बढ़िया पौष्टिक दाने खिलाये जाते हैं और अंडे देने बन्द करने के बाद मालिक काटकर उसका मांस भी बेंच देता है। 

इन फिल्मी कहानियों को सच मानकर इस जिहाद में फंसी इन बेचारी किरनों का मांस तो बिकेगा नहीं, तो ऐसी आम हिन्दू लड़कियों को आखिरी पनाह टुकड़ों में कटकर बोरी या सूटकेस में ही मिलती है। पैसों के लिये फिल्मी शूटिंग की तरह निकाह और तलाक का ढोंग करती है कोई किरन राव, पर उसका दण्ड भोगती है कोई नैना मंगलानी, कोई शिल्पी, कोई उषा, कोई सरिता या कोई और...

इस घिनौने प्रायोजित खेल को रोकने का एकमात्र तरीका यही है कि हम अपनी बच्चियों को अपने धर्म, अपनी परम्पराओं की शिक्षा दें, परिवार का महत्व बतायें और समझायें कि किससे प्रेम किया जाना चाहिये और किससे घृणा करनी चाहिये..

जी हां.. प्रेम की तरह घृणा भी जीवन का एक अनिवार्य भाव है और अब स्वीकार करना ही होगा कि पाप से घृणा करने के साथ-साथ पापी से घृणा करना भी ज्यादा जरूरी है..

जय_हिन्द

Friday, July 2, 2021

युवराज से नेता, फिर पप्पू बनने की यात्रा..

मिश्रित नहरू_गांधी परिवार के युवराज और मृतप्राय_कांग्रेस के लुप्तप्राय पूर्व_अध्यक्ष राहुल जी ने आज ट्वीट किया है-

"जुलाई आ गया है, वैक्सीन नहीं आयीं.."

जैसे आज बड़े से बड़ा राजनीतिक पंडित भी यह नहीं बता सकता है कि राहुल जी कब और क्यों "कौन से देश" चले जायेंगे, वैसे ही खुद राहुल भइया भी यह नहीं बता सकते कि उन्होंने कौन सा बयान क्यूं दिया था। वह तो बस ‘'समय बिताने के लिये, करना है कुछ काम..’' वाली मनःस्थिति में आकर कभी-कभी खुद को युवा मानकर ''ट्रायल एंड एरर..'' थ्योरी के तहत कुछ भी लिख या बक देते हैं। उनके लिये प्रधानमंत्री बनना जितना आवश्यक है, उतना ही आवश्यक समय समय पर बयान देते रहना भी है।

संभव है कुछ विश्वविद्यालय आगामी समय में इस विषय पर शोध करायें कि कोई राजनेता इस दशा में पहुंचकर पप्पू कैसे बन जाता है.? पर राजनीतिक दृष्टि से यह दशा दयनीय अवश्य है और उस राजनेता के लिये तो और भी, जो दिल में एक सौ पैंतीस करोड़ नागरिकों के राष्ट्र को नेतृत्व देने की इच्छा रखता हो।

अब पता नहीं ट्विटर पर यह प्रश्न राहुल उर्फ पप्पू भइया ने बैठे-बैठे या खड़े-खड़े उगला था, पर मुझे तो यह प्रश्न "दिये जलते हैं, फूल खिलते हैं.." टाइप का लगा। या शायद जब-जब पप्पू भइया के खर दिमाग में कोई हलचल होती है, वह अकस्मात ही ऐसे प्रश्न उगलने लगते हैं। 

अब यह कैसा अद्भुत प्रश्न है और किससे है.? क्या राहुल गांधी को पता नहीं है कि भारत में टीकाकरण कब से चल रहा है.? क्या उन्हें यह पता नहीं कि वैक्सीन टीकाकरण का डाटा केंद्र और राज्य सरकारें रोज जारी करती हैं.? क्या उन्हें नहीं बताया गया कि अब तक देश में टीके के करीब 34 करोड़ डोज दिए जा चुके हैं.? क्या उन्हें पता नहीं कि वैक्सीन टीकाकरण में भारत इस समय विश्व का अग्रणी देश है.? जो जानकारियां सार्वजनिक तौर पर सहज उपलब्ध हैं, वह भी पप्पू_भइया को क्यूं नहीं पता.? 

प्रश्न पूछना विपक्ष का अधिकार और राजनीतिक आधार है, पर क्या ऐसे निरर्थक प्रश्न उस अधिकार या आधार को कमजोर नहीं करते.? क्या विपक्ष के वर्तमान दर्शन में ऐसे तथ्यहीन प्रश्न आवश्यक हैं.? लोकतांत्रिक व्यवस्था में विपक्ष आवश्यक है, पर मात्र विरोध के लिये नहीं और शायद हर बात पर विरोध किए बिना भी विपक्ष की भूमिका पूर्ण प्रासंगिकता के साथ निभायी जा सकती है।

हो सकता है कि राहुल के ऐसे बयान हिटलर के उस सिद्धांत पर आधारित हों कि "किसी झूठ को इतनी बार बोलो कि वह सच लगने लगे.." लेकिन इसी रणनीति पर तो राहुल पिछले 7 वर्षों से और कांग्रेस पिछले 20 वर्षों से (मोदी के विरुद्ध) चल रही है। अबतक तो इस नीति के कोई सकारात्मक परिणाम आते नहीं दिखे कि राहुल या कांग्रेस इसे ही बार-बार आजमाते रहें।

बाकी.. अगर अपने बयानों पर चर्चा करवा लेने को ही राहुल राजनीतिक सत्ता की कुंजी समझ रहे हैं, तब तो वह वास्तव में पप्पू ही हो चुके हैं और वह तो ऐसा करके कई बार अदालतों में फंसकर माफी भी मांग चुके हैं। यह ऐसी स्थिति है जिस पर राहुल विचार करें न करें, उनकी पार्टी को अवश्य विचार करना चाहिये। 

पता नहीं कांग्रेस और पप्पू_जी कब समझेंगे कि यह 1980 का भारत नहीं है, यह 21वीं शताब्दी है और अब #झूठ पर आधारित प्रश्न-उत्तर या विमर्श 2 मिनट में ही नंगे हो जाते हैं..!

जय_हिंद

Wednesday, June 30, 2021

भारतीय राजनीति की घटिया शतरंजी_चालें..

हम सभी को (चाहे कान्वेंट से पढ़े हों या सरकारी प्राइमरी स्कूल में) पहली कक्षा से ही एक बात जरूर पढ़ायी गयी है कि #भारत शताब्दियों तक विदेशियों का #गुलाम रहा है और यह ऐतिहासिक तथ्य भी है कि अंततः हमें 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली थी। अब आजादी में किनका कितना योगदान या प्रयास था, यह फिर कभी..

आज चर्चा कर रहा हूं सदियों की गुलामी और आजादी के 70 सालों में देश के साथ खेली गयी राजनीतिक_शतरंज की चालों के घटिया परिणामों की, पढ़िये और समझने की कोशिश करिये-

1. विदेशी लुटेरे और आक्रांता देश के आदर्श बन गये और हमारे अपने महापुरुष समाजविरोधी..

2. दान-दक्षिणा ढकोसला हो गया और जजिया जायज..

3. मीना बाजार लगवा कर अपनी हवस के लिये कुंवारी लड़कियों की छंटनी करने वाला अकबर_महान हो गया और लोक कल्याण के लिये रासलीला रचाने वाले श्रीकृष्ण व्यभिचारी..

4. मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम दलित_विरोधी हो गये और हजारों निर्दोष महिलाओं का कत्लेआम करवाने वाला मोइनुद्दीन चिश्ती गरीबनवाज..

5. लुटेरे मुगल महान भारतीय बन गये और मूल भारतीय काफिर..

6. यज्ञोपवीत और उपनयन संस्कार ढकोसला बन गये और जन्मदिन पर मोमबत्ती बुझाना परम्परा..

7. कुल वंश हीन नहरू और खानवंशी पहले गांधी फिर यज्ञोपवीत धारी ब्राह्मण बन गये और भारतीय जनता बेवकूफ..

8. मोमिन असली कश्मीरी बन गये और कश्मीरी पंडित शरणार्थी..

9. बांग्लादेशी बंगाली बन गये और असल बंगाली बाहरी..

10. सैनिकों के हत्यारे और पत्थरबाज आंदोलनकारी बन गये और भारतीय सेना हत्यारी..

11. टुकड़े_टुकड़े_गैंग वाले देशभक्त बन गये और राष्ट्रवादी भक्त..

12. चिता की लकड़ी पर्यावरणीय चिंता बन गयी और दफनाने में बर्बाद होने वाली भूमि जन्मसिद्ध मजहबी हक..

13. दीपावली का धुवां पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला बन गया और बकरीद पर नालियों में बहता बेगुनाह जानवरों का खून पर्यावरण रक्षक..

14. राखी में इस्तेमाल किया गये ऊन से भेड़ को चोट पहुंची और बकरीद के नाम पर कत्ल की जा रही भेंड़ बकरियां धार्मिक स्वतंत्रता..

15. धर्मविशेष का तुष्टीकरण धर्मनिरपेक्ष हो गया और समानता की बात करना कम्युनल..

16. आरएसएस जैसा राष्ट्रवादी संगठन आतंकवादी बन गया और आईएसआईएस, हुर्रियत, ओसामा जी, हाफिज साहेब वगैरह शांति के अग्रदूत..

17. भारत_माता_की_जय सांप्रदायिक हो गया और भारत_तेरे_टुकडे_होंगे फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन..

18. #】फूट_डालो_राज_करो नियम बन गया और सबका_साथ_सबका_विकास जुमला..

शतरंजी चालें तो बहुत हैं, लेकिन एक तथ्य और जान लीजिये-

नानक जी से पहले कोई सिख नहीं था, 
जीसस से पहले कोई ईसाई नहीं था,
मुहम्मद से पहले कोई मुसलमान नहीं था, 
ऋषभदेव से पहले कोई जैन नहीं था,
बुद्घ से पहले कोई बौद्ध नहीं था 
और कार्ल मार्क्स से पहले कोई वामपंथी नहीं था.. 
लेकिन राम से पहले, कृष्ण से पहले, अत्रि, यमदग्नि, अगस्त्य, कणाद, पतंजलि तथा याज्ञवलक्य से पहले भी सनातन वैदिक धर्म था 
और आज से कहीं ज्यादा विस्तृत था..

सोचियेगा.. आखिर सनातन के मूल विश्वगुरु भारत में यह अनर्थ क्यूं और कैसे संभव हुए.? और अगर समझ लें, तो कृपया अब से भी संभलने का प्रयास करियेगा..💐

जय_हिन्द

Wednesday, June 23, 2021

धर्मनिरपेक्ष_भारत में जजिया और खरज..

सौभाग्य से अब सभी को पता है कि देश में तमाम मस्जिदों के इमामों को सरकार की ओर से प्रतिमाह सेलेरी दी जाती है। लेकिन क्या आपको यह पता है कि ऐसा क्यूं है और धर्मनिरपेक्ष_भारत में मस्जिदों के इमामों को हमारे टैक्स से वेतन क्यूं दिया जा रहा है.?

ध्यान से पढ़ियेगा..

1989 में देश की 743 मस्जिदों के इमामों ने सुप्रीम_कोर्ट में रिट दायर की, कि वह मजहब की तरक्की के लिये काम करते हैं और समाज के एक बड़े तबके को मजहब के बारे में बताते-सिखाते हैं, नमाज अदा करवाते हैं। लेकिन बदले में उन्हें कोई मेहनताना नहीं मिलता है, सरकार मेहनताने के रूप में उन्हें तनख्वाह दे।  

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार सहित सभी राज्यों के वक्फ_बोर्डों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा..

केंद्र और कुछ राज्यों के वक्फ बोर्डों ने दलील दी- "चूंकि इनके और हमारे बीच कोई मालिक और कर्मचारी वाला सम्बन्ध नहीं है, इसलिये हम इन्हें तनख्वाह नहीं दे सकते.."
कर्नाटक वक्फ बोर्ड ने दलील दी- "चूंकि ऐसा कोई इस्लामी कानून और परम्परा नहीं है, इसलिये इनको तनख्वाह नहीं दी जा सकती.."
पंजाब वक्फ बोर्ड जिसके अंतर्गत हिमाचल और हरियाणा की मस्जिदें भी आतीं थीं, ने उत्तर दिया- "हम तो पहले से ही इनको तनख्वाह दे रहे हैं और प्रतिमाह मेडिकल एलाउंस भी दे रहे हैं.."

लम्बी सुनवाई के बाद 23 मई 1993 को धर्मनिरपेक्ष और समानता की बात करने वाले देश की काबिल सुप्रीम_कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार को आदेश दिया- "देश की सभी मस्जिदों के स्थायी और अस्थायी इमामों को 1 दिसम्बर 1993 से उनकी योग्यता अनुसार वेतन दिया जाये और इसके लिये छह महीने के अंदर पे_स्केल तय कर ली जाये। यदि इसमें ज्यादा समय लगता है तो इनको 1 दिसम्बर 1993 से एरियर भी देय होगा.." न पता हो तो जान लें कि तनख्वाह के हकदारों की योग्यता उनकी शरीयत, कुरान और हदीस के बारे में जानकारी के आधार पर तय होती है। सबसे काबिल इमाम आलिम होता है, उससे नीचे का इमाम हाफिज, उससे नीचे का इमाम नाजराह और सबसे नीचे मुअज्जिन। मुअज्जिन वो होता है, जिसकी ड्यूटी सुबह-सुबह और दिन में पांच बार लाउडस्पीकर पर चिल्ला कर सबको नमाज के लिये बुलाने की होती है।

मार्च 2011 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस_कमेटी ने राज्यपाल को ज्ञापन दिया था कि इस समय भारत में 28 लाख मस्जिदें हैं जिनमें से 3.30 लाख उत्तर प्रदेश में हैं, प्रदेश सरकार अभी भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार यहां के इमामों को नये पेस्केल से वेतन नहीं दे रही है। 2011 में ही 28 लाख मस्जिदें, केंद्रीय वक्फ बोर्ड और 30 राज्य वक्फ बोर्ड और ऊपर से हज_सब्सिडी अलग.. सोचिये, कितना पैसा प्रति माह दे रही होगी सरकार इस मद में और क्यूं.?

क्या इसलिये कि मस्जिद में नमाज के बाद ये सरकारी तनख्वाह पाने वाले इमाम कायदे से सिखा सकें कि काफिरों से कैसे नफरत करनी है.? 
या इसलिये कि कश्मीर वगैरह में हुर्रियत जैसी दुकानें चलती रहें.? 
या फिर इसलिये कि शांतिदूतों के बच्चों को प्रतिवर्ष 4800 करोड़ रुपयों का अतिरिक्त वजीफा दिया जा सके, ताकि वह कम्प्यूटर पर काफिरों को मिटाने और गजवा_ए_हिन्द को कामयाब करने के आधुनिक तरीके ढूंढ सकें.? 
या इसलिये की जामिया और एएमयू से "भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह.." जैसे नारे बेरोकटोक लगते रहें.?

लेकिन गलत लिख गया मैं..

सरकार कौन सा अपनी जेब से देती है.? इनको देने के लिये वो तो आखिरकार हमसे ही वसूलती है जजिया की तरह.. और ये जजिया_खरज तो हम इनकी खैरियत के लिये इल्तुतमिश से औरंगजेब तक देते चले आ रहे हैं।

अंग्रेज इतिहासकार Mannuci ने लिखा था- "शाहजहां और औरंगजेब के समय जजिया और खरज की वसूली इतनी सख्त थी कि न दे पाने की स्थिति में फौज हिन्दू_काश्तकार को उठा कर ले जाती थी और उन्हें गुलामों के बाजार में बेंच दिया जाता था.. उस काश्तकार के पीछे पीछे रोती-बिलखती उसकी पत्नी को भी पति के साथ ही बेंच दिया जाता था..  जजिया से बचने के दो ही रास्ते थे, या तो इस्लाम कबूल कर लो या मौत.." औरंगजेब तो खुश होकर बताता था कि जजिया न दे पाने की वजह से तमाम काफिरों को इस्लाम कुबूल करना पड़ा है.."

कितना घृणित_मजाक है कि विश्व के सर्वश्रेष्ठ_प्रजातंत्र और सर्वश्रेष्ठ लिखित संविधान से संचालित धर्मनिरपेक्ष_राष्ट्र में हम आज भी उत्तर से लेकर दक्षिण तक मस्जिद के इमामों की तनख्वाह के लिए जजिया दे रहे हैं, ऊपर से मुगलकाल की तर्ज पर आज भी सरकारें हमारे मंदिरों को लूट रहीं हैं।
 
लेकिन, ऐतिहासिक तथ्य यह भी है कि अपने तमाम जलाल और लम्बी-चौड़ी फौज के बावजूद जब दिल्ली में जजिया के विरोध में हिन्दू एकजुट और उग्र हुए, तब औरंगजेब की इतनी फट गयी थी कि उसके बाद वह कभी भी बाहर नमाज पढ़ने के लिये जामा मस्जिद तक नहीं गया..उसे लाल किले में ही नयी मोती_मस्जिद बनवानी पड़ गयी थी।

तो.. समझिये, सोचिये और समय रहते जाग जाइये..

नोट: जो पोस्ट को काल्पनिक समझ रहे हैं उनके लिये सुप्रीम_कोर्ट के उस फैसले का लिंक नीचे दे रहा हूं, खुद पढ़ लें..

https://indiankanoon.org/doc/1929233/

🚩 🇮🇳 #जय_हिन्द 🇮🇳 🚩

Monday, June 21, 2021

भारत का पहला सशक्त_विपक्ष

स्वतंत्रता प्राप्ति के 70 वर्षों बाद अंततः श्री राहुल_जी के क्रांतिकारी मार्गदर्शन में ऐसा सशक्त और सकारात्मक विपक्ष देश को मिल ही गया, जिसने विगत 7 वर्षों में केन्द्र को एक भी घोटाला नहीं करने दिया, उलटे केंद्र और भाजपा पर निरंतर दबाव बनाकर उनके हर प्रयास को तेजी दे रहा है। 

पता है, आप नहीं मानोगे। कुछ उदाहरण दे रहा हूं-

सरकार ने कहा- "राफेल लायेंगे..!"
विपक्ष ने अपना कर्तव्य निभाते हुए प्रश्नों की झड़ी लगा दी-
"कब लाओगे.?"
"कैसे लाओगे.?"
"ला के दिखाओ..!"

अंततः विपक्ष के दबाव में सरकार को राफेल लाना ही पड़ा।

सरकार ने कहा- "'CAA लायेंगे..!"
विपक्ष ने फिर अपना कर्तव्य निभाया-
"कब लाओगे.?"
"कैसे लाओगे.?"
"ला के दिखाओ..!"

अंततः सरकार को CAA लाना ही पड़ा।

सरकार ने कहा- ''370 हटायेंगे..!"
विपक्ष खुशी में शोर मचाने लगा-
''कब हटाओगे.?"
"कैसे हटाओगे.?"
"हटा के दिखाओ..!"
और सरकार को 370 हटानी पड़ी।

सरकार ने कहा- ''राममंदिर बनवायेंगे..!"
विपक्ष उत्साहित हो गया-
''कब बनवाओगे.?"
"कैसे बनवाओगे.?"
"बनवा के दिखाओ..!"
और राम_मंदिर बनने लगा..

आप मानोगे नहीं, लेकिन सरकार को ऐसे अनेक कार्य जल्दी-जल्दी वर्तमान सशक्त विपक्ष के दबाव में ही करने पड़े हैं।

तो.. मेरा मोदीजी, उनकी सरकार (और भक्तों से भी) अनुरोध है कि इन सभी कार्यों का #श्रेय लेना बन्द करें। देशहित के इन सभी कार्यों का वास्तविक_श्रेय श्री राहुल_जी के मार्गदर्शन और विपक्ष को ही है, जो लगातार "अपने वायदे कब पूरे करोगे.?" का नारा लगाता रहा है।

अभी भी जनसंख्या_नियंत्रण और समान_नागरिक_संहिता सहित कई महत्वपूर्ण कार्य शेष हैं। देशहित के सारे आवश्यक कार्य शीघ्रातिशीघ्र पूर्ण हों, इसके लिये अब हमें दृढ़ निश्चय कर लेना है कि यही विपक्ष 2034 तक अवश्य रहे।

जय_हिन्द

Saturday, June 19, 2021

दरगाह.. हजरत का बाल या बल.?!

एक और hidden_story.. 

26 दिसम्बर, 1963 की घटना है- आसमानी_किताब के नुमाइंदों के पैगम्बर की दाढ़ी का एक बाल चोरी हो गया। अब मुझे नहीं पता कि वो दाढ़ी रखते भी थे या नहीं, लेकिन अगर दाढ़ी रखते थे तो फिर दाढ़ी का बाल भी रहा ही होगा..

खैर.. वह बाल कभी उनके वारिसान कर्नाटक लाये थे (कब, क्यूं और कैसे लाये थे, पता नहीं) और फिर महान(?) मुगलों के सबसे न्यायप्रिय(?) शासक औरंगजेब द्वारा इस बाल को दुनिया की जन्नत कश्मीर की खूबसूरती में और बढ़ोत्तरी करने के लिये वहां भेजकर एक दरगाह बनवायी गयी थी, जिसका नाम हजरत_बल (वैसे सही नाम तो हजरत_बाल होना चाहिये था) दरगाह रखा गया।

हां, तो मुद्दे पर आते हैं कि नबी का बाल चोरी हो गया..

पूरे भारत में यह खबर आग की तरह फैल गयी और हर जगह (आदतन) मुसलमान सड़कों पर आ गये। पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान सहित हर जगह दंगे शुरू होने लगे, हिन्दू मंदिरों और पूजा स्थलों में आगजनी और तोड़फोड़ होने लगी। तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारी लाल नन्दा ने फरवरी 1964 मे बताया था कि उन दंगों में 29 हिन्दू मारे गये थे और हजारों घायल हुए थे, सही संख्या का अनुमान स्वयं लगायें..

बालप्रिय_नहरू उस समय भारत के प्रधानमंत्री थे, तो  बाल गायब होने और मुस्लिम आक्रोश से उनकी हिलने लगी.. आनन-फानन तब के खुफिया चीफ बीएन मलिक और लालबहादुर शास्त्री जी तो तब के सबसे योग्य नेता थे, को वह बाल ढूंढने के महत्वपूर्ण ऑपरेशन पर कश्मीर भेज दिया गया।

नौ दिनों तक पूरा कश्मीर सड़कों पर रहा.. फिर दसवें दिन 4 जनवरी 1964 को #कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शमसुद्दीन ने घोषणा की कि "आज हमारे लिये ईद जैसा खुशी का दिन है, हमारे हुजूर का बाल खोज लिया गया है.." पर दिक्कत यह थी कि खोजा गया बाल हजरत हुजूर का ही है, यह कैसे माना जाये.? तो नहरू सरकार ने बाल की पहचान के लिये एक आलिम-फाजिल अरबी_मौलवी को सरकारी खर्चे पर कश्मीर बुलाया। 

मौलाना ने देर तक उस बाल को गौर से परखने के बाद फरमाया- "माशाल्लाह्ह.. यह तो रसूल-ए-पाक का वही मुकद्दस दाढ़ी_का_बाल है.." हुजूम ने अल्लाह-हू-अकबर का नारा लगाया, कश्मीर और पूरे देश में खुशी छा गयी, मिठाइयां बंटने लगीं और देश पर से एक और बंटवारे की विपदा टल गयी..

हम तो दिल से तारीफ और रश्क भी करेंगे उस मौलाना से, जिसकी पारखी_नजर ने साढ़े_तेरह_सौ साल पहले मर चुके इंसान की दाढ़ी के एक बाल को भी पहचान लिया था, काश ऐसे माहिर नासा या इसरो के पास भी होते..

अब सोचिये..

भारत के संविधान की प्रस्तावना में इसे धर्मनिरपेक्ष बताया गया था, तो किसी पैगम्बर की दाढ़ी का बाल खोजने में देश के खुफिया प्रमुख, पूरा सरकारी अमला और शास्त्री जी जैसे महान नेता को भी लगा देना क्या देश की धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ नहीं था.? 

और जो समाज हमारी मूर्तिपूजा को हराम बताकर हमेशा उसका विरोध करता रहा है, उसके लिये दाढ़ी का एक बाल इतना महत्वपूर्ण था कि उसके लिये सड़कों पर दंगे करने लगा और सभी उस बाल के आगे सजदा भी करते हैं.. क्या उस समाज से कभी भी सहिष्णुता की उम्मीद की जा सकती है.?

सच्चाई यह है कि सिर्फ मुस्लिम ही नहीं, बल्कि दुनिया में किसी भी धर्म के लोग अपने धर्म के प्रतीकों और मान्यताओं से कभी कोई समझौता नहीं करते। धर्मनिरपेक्षता और सर्वधर्म समभाव का पाठ आदिकाल से सिर्फ हिन्दुओं को पढ़ाया जाता रहा है और हमने इसी का खामियाजा भी उठाया है, क्यूंकि हम भूल गये हैं कि हमारे पवित्र ग्रंथों ने हमें वसुधैव_कुटुम्बकम के साथ ही शठे_शाठ्यम_समाचरेत की भी शिक्षा दी है..

तो.. समझिये, सोचिये और जाग जाइये.. 👍

जय_हिन्द

Tuesday, June 15, 2021

एमिली शेंकल बोस और नहरू सरकार

आज देश की आजादी से पहले की एक जर्मन महिला Emilie_Schenkl की कथा सुना रहा हूं..

नहीं पता, आपमें से कितनों ने ये नाम सुना है.? वैसे अधिकांश ने नहीं ही सुना होगा और इसमें दोष आपका नहीं है.. क्योंकि इस नाम को भारत के इतिहास से खुरच कर निकाल फेंका गया था और हर सम्भव प्रयास किया गया था कि इसे कोई भी जान न सके..

एमिली शेंकल ने वर्ष 1937 में भारत मां के एक लाडले बेटे से विवाह किया था। विवाह के बाद एमिली को मात्र 3 वर्ष ही पति के साथ रहने का अवसर मिला था, फिर उन्हें और नन्हीं सी बेटी को छोड़ पति देश के लिये लड़ने चला गया.. इस वादे के साथ कि "पहले देश को स्वतंत्र करा लूं, फिर तो सारा जीवन तुम्हारे साथ ही बिताना है.." पर दुर्भाग्य से ऐसा न हो सका और 1945 में एक संदिग्ध विमान दुर्घटना में एमिली के पति लापता हो गये..

जी हां, मैं बात कर रहा हूं भारत की आजादी के पुरोधा नेताजी_सुभाषचन्द्र_बोस की धर्मपत्नी एमिली_शेंकल_बोस की, जिन्हें विवाह के मात्र छः वर्षों बाद से ही पति की अनन्त प्रतीक्षा का दुख झेलना पड़ा था। उस समय एमिली युवा थीं और यूरोपीय संस्कृति के हिसाब से उनके लिये दूसरा विवाह कर लेना सहज था, पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। एक भारतीय विधवा की तरह सारा जीवन एमिली ने अपनी बेटी पर निछावर कर दिया और तारघर क्लर्क की मामूली नौकरी कर उसे पाला-पोसा, किसी से कुछ नहीं मांगा।

दो साल बाद 1947 में भारत आजाद भी हो गया। कांग्रेस की सरकार बनी और नहरू देश के प्रधानमंत्री (चाहे जैसे भी) बन गये। नहरू और सबको पता था कि एमिली देश के उन्हीं अमर सपूत नेताजी_सुभाष की विधवा हैं, जो 1939 में उन्हीं की कांग्रेस के #अध्यक्ष चुने गये थे और देश की आजादी में जिनका योगदान पूरी कांग्रेस पार्टी से कई गुना ज्यादा था.. लेकिन किसी ने भी एमिली की सुध नहीं ली। एमिली ने भी एक योद्धा की पत्नी होने का मान रखते हुए भारत के इन #कपूतों से कभी कोई याचना नहीं की।

भारत का स्वयम्भू_राजपरिवार जाने क्यूं इतना भयभीत रहा इस महिला से, कि जिसे ससम्मान यहां बुला देश की नागरिकता देनी चाहिये थी, उसे कभी भारत का वीजा तक नहीं दिया गया। नहरू और उनके कुनबे को भय था कि देश इस विदेशी_बहू को सर आंखों पर बिठा लेगा, इसीलिये उन्हें एमिली बोस का इस देश में पैर रखना अपनी सत्ता के लिये चुनौती लगा होगा, वैसे मेरी दृष्टि से यह भय सही भी था।

जीवन के तमाम संघर्षों के बावजूद एमिली ने अपनी- नेताजी की पुत्री- अनिता_बोस को उच्च शिक्षा दिलायी किन्तु भारत आने की इच्छा मन में लिये ही अंततः  मार्च 1996  में उन्होंने अपने जीवन का त्याग कर दिया।

कांग्रेC और उनके जन्मजात अंधचाटुकार पत्तलकार और इतिहासकार जो विदेशी मूल की एन्टोनियो_माइनो को देश_की_बहू का तमगा देते नहीं थकते हैं, उसकी कुर्बानियों(?) का बखान करने में अपने पिछवाड़े तक का पसीना निकाल देते हैं.. उनसे कोई पूछे- क्या कभी भी उन्होंने श्रीमती बोस की चर्चा की है.? और क्या एंटोनियो माइनो की तुलना किसी भी तरह से श्रीमती एमिली शेंकल बोस से की जा सकती है.? 😢 

सोचियेगा..

#जय_हिन्द

Saturday, June 12, 2021

सन_आफ_शमसुद्दीन..

बोध_कथा.. 

महाराजा रणजीत सिंह के समय की बात है.. एक ग्रामीण की गाय घास चरते-चरते बाग में चली गयी और उसके सींग पेड़ों के बीच में फंस गये। सींग निकालने के प्रयास में गाय जोर से रंभाने लगी तो भीड़ इकट्ठी हो गयी, लोग तरह तरह के उपाय बताने लगे।  

तभी एक व्यक्ति आया, गाय को देखते ही बोला- "इसमें कौन सी बड़ी बात है.? सींग काट दो, गाय आसानी से निकल जायेगी..!" यह सुनते ही भीड़ में सन्नाटा छा गया, क्योंकि कोई भी गाय को हानि नहीं पहुंचाना चाहता था। 

पेड़ काटकर गौमाता को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया.. लेकिन कुछ दिन बाद गौ के सींग काटने वाली बात महाराजा रणजीत सिंह तक भी पहुंच गयी। महाराजा ने उस व्यक्ति को तलब किया और पूछा- "क्या नाम है तेरा.?"

उस व्यक्ति ने अपना परिचय दुलीचन्द पुत्र सोमचंद बताया। उसकी मां ने भी यही परिचय देते हुए बताया कि दुलीचंद का पिता युद्ध में मुसलमानों से लड़ते हुए मारा गया था..

किन्तु महाराजा को बात खटक रही थी, वह संतुष्ट नहीं हो पा रहे थे.. उन्होंने गुप्त रूप से पता कराया तो जानकारी हुई कि उस महिला के अवैध सम्बन्ध उसके पड़ोसी शमसुद्दीन से थे और दुलीचंद उसके पति सोमचंद की नहीं बल्कि शमसुद्दीन की औलाद है।

कथा_सार..

DNA_टेस्ट हमेशा ही जरूरी नहीं है। यदि कोई सनातनी हिन्दू, हिन्दुत्व से घृणा कर रहा है तो समझ जाइये कि कोई लोचा जरूर हो गया है.. क्योंकि कोई भी शुद्ध सनातनी हिन्दू कभी भी अपनी संस्कृति, अपनी मातृभूमि और अपनी गौमाता के अनिष्ट, अपमान या उनके पराभव को किसी भी रूप में सहन नहीं कर सकता।

आज हमारे आसपास समाज में जाने कितने सन_आफ_शमसुद्दीन अपना भेष बदल कर सन_आफ_सोमचन्द बने घूम रहे हैं। इनमें राजनेता, पत्रकार, और नयी प्रजाति के ऐक्टिविस्ट भी हैं जिनके नाम तो हिन्दू हैं लेकिन असल में वह सन_आफ_शमसुद्दीन हैं, जिनका मकसद सिर्फ और सिर्फ सनातन संस्कृति को मिटाना है।

अब समय आ गया है कि हम जल्द से जल्द ऐसे दुलीचंदों की ही नहीं बल्कि इन्हें पैदा करने वाले शमसुद्दीनों की भी पहचान कर लें, ताकि इन्हें इनके अंजाम तक पहुंचाया जा सके और हमारा देश, सभ्यता और संस्कृति इनसे सुरक्षित रहे..

जय_हिन्द🚩

Thursday, June 10, 2021

कांग्रेस का हिन्दुत्व_दमन..

बात 1955 की है.. भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित(?) नहरू के निमंत्रण पर सऊदी अरब के सुल्तान शाह_सऊद भारत आये थे। 4 दिसम्बर 1955 को वह दिल्ली पहुंचे, पूरे शाही अंदाज में उनका स्वागत-सत्कार किया गया और उनके दिल्ली से धर्म नगरी वाराणसी जाने के लिये भारत सरकार ने शाही_कोच के साथ एक स्पेशल ट्रेन की व्यवस्था की।

यहां तक कुछ भी गलत नहीं था.. किसी भी राष्ट्रप्रमुख का उचित स्वागत और सम्मान होना ही चाहिये, उनका भी हुआ। कांग्रेस का #निकृष्ट कर्म तो इसके बाद आता है..

शाह सऊद जितने दिन वाराणसी में रहे उतने दिनों तक बनारस की सभी सरकारी इमारतों पर कलमा_तैय्यबा लिखे हुए झंडे लगाये गये थे और वाराणसी में जिन-जिन रास्तों/सडकों से शाह सऊद को गुजरना था, उन सभी में पड़ने वाले मंदिरों और मूर्तियों को परदे से ढकवा दिया गया था। यह था कांग्रेस का घृणित हिन्दुत्व_दमन..

शाह की इस यात्रा को लेकर उस समय के मशहूर शायर नजीर_बनारसी ने इस्लाम की तारीफ और हिन्दुओं पर तंज कसते हुए एक शेर कहा था-

"अदना सा गुलाम उनका, 
गुजरा था बनारस से..
मुंह अपना छुपाते थे, 
काशी के सनमखाने..!"

सोचिये, क्या आज मोदीयुग में किसी भी बड़े से बड़े तुर्रमखां के लिये ऐसा किया जा सकता है.? आज बड़े-बड़े ताकतवर देशों के प्रमुख भारत आते हैं और उनको वाराणसी भी लाया जाता है। लेकिन अब मंदिरों और मूर्तियों को उनसे छुपाने के लिये ढका नहीं जाता, बल्कि उन विदेशियों को गंगा_आरती दिखायी जाती है, उनसे पूजा करायी जाती है और अब उसी सऊदी अरब के सुल्तान की बेगम श्रीराम की मूर्ति अपने सर पर उठाकर स्थापना कराती है..

और कितने अच्छे_दिन चाहिये मूढ़मति_हिन्दुओं.?! 😡

 जय_हिन्द

Wednesday, June 9, 2021

गर्म पानी और हिन्दू मेढक..

पेटा वाले बुरा मान जायेंगे, लेकिन जीव_विज्ञान के विद्यार्थियों के लिये यह एक सामान्य प्रयोग हुआ करता था-

एक बड़े बर्तन में पानी डालिये और उसमें एक #मेढक छोड़ दीजिये, जाहिर है मेढक मजे से तैरने लगेगा। अब बर्तन के नीचे आग जला दीजिये। पानी गरम होने लगेगा, लेकिन मेढक परेशान नहीं होगा.. वह अपने स्वाभाविक गुण के कारण गर्मी के मुताबिक ही अपने शरीर को सन्तुलित करने लगेगा.. 

लेकिन धीरे-धीरे जब पानी उबलने लगेगा तो यह मेढक की शारीरिक सहनशक्ति से ऊपर की स्थिति होगी और तब मेढक अपनी प्राणरक्षा के लिये उछल कर बर्तन से बाहर निकलने की कोशिश करेगा। लेकिन अब उसमें इतनी ऊर्जा ही नहीं बची होगी कि वह छलांग लगा सके, क्योंकि अपनी सारी ऊर्जा तो वह पहले ही खुद को पानी के बढ़ते हुए तापमान के अनुकूल बनाने में खर्च कर चुका होगा। परिणामतः
कुछ देर हाथ-पांव चलाने के बाद मेढक मर कर पानी में पलट जायेगा।

प्रश्न यह है कि मेढक की मृत्यु का वास्तविक कारण क्या है.?

बुद्धिभोजी_वैज्ञानिक उत्तर देंगे कि पानी के बढ़ते तापमान से ही मेढक की मृत्यु हुई है, लेकिन क्या यह उत्तर सही है.?

वस्तुतः मेढक की मृत्य उसके उछल कर बाहर निकल जाने का निर्णय लेने में हुई देरी के कारण हुई है। वह अंतिम क्षण तक खुद को गर्म होते माहौल में ढाल कर सुरक्षित रहने का प्रयास करता रहा था और उसके इस निरर्थक प्रयास के चलते ही अंत में उसके पास इतनी शक्ति नहीं बची, कि वह गर्म पानी से निकल कर भाग भी सके। 

लगभग यही स्थिति आज भारत के हिन्दू की भी है। सेकुलरों और लिबरलों द्वारा दिये गये भ्रामक ज्ञान के चलते हिन्दू अभी भी स्वयं को सेकुलरी वातावरण में ढाल कर सुकून भरा जीवन जीने का छद्म_विश्वास पाले बैठा है और सामाजिक सद्भाव, अहिंसा, शांति, गंगा-जमुनी तहजीब जैसे आभासी भावों को प्राथिमकता देकर सही निर्णय नहीं ले पा रहा है।

कहां हैं वो हिन्दू, जो धार्मिक आधार पर हुए बंटवारे के बाद भी उस समाज के अनकूल ढलने के भ्रामक विश्वास पर वहीं रुके रहे थे.? क्या हुआ था उन कश्मीरी ब्राह्मणों के साथ जो कश्मीरियत के विश्वास पर सह_अस्तित्व का भ्रम पाले थे.? क्या इनका अस्तित्व भी मेढक की तरह पानी उबल जाने के कारण ही समाप्त हुआ माना जायेगा.?

कृपया स्वयं को गर्म होते पानी के अनुकूल बनाने के प्रयास में अपनी ऊर्जा व्यर्थ न करें और अतिशीघ्र निर्णय कर लें कि इससे अधिक गर्म पानी अब बर्दाश्त नहीं है। अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये समय रहते सचेत और सन्नद्ध हो जायें।

बाकी, मर्जी आपकी.. अगर आप मेढक ही बने रहना चाहते हैं, तो खुशी से इंतजार करिये। पानी तो गर्म हो ही रहा है...

जय_हिन्द

Monday, May 31, 2021

पिछवाड़े का कीड़ा

कीड़ा_काट रहा है क्या पिछवाड़े.? 

ये डायलॉग सबने ही कभी न कभी जरूर सुना होगा, मैंने भी सुना है.. लेकिन इस कीड़े के काटने से परिणाम क्या हो सकते हैं, इसके कुछ दिव्य उदाहरणों का मजा लीजिये-

1. अच्छा-भला राफेल_सौदा हो गया था। कांग्रेस कीड़ा काटा और बहस की मांग कर दी..

परिणाम- राजीव_गांधी के तमाम भ्रष्टाचारों की किताबें खुल गयीं और 30 सालों में बड़ी मेहनत से बनायी गयी मिस्टर_क्लीन की छवि गंध मारने लगी।

2. अच्छी-भली 370 हट गयी थी। कांग्रेस को फिर कीड़ा काटा और 370 पर बहस की मांग कर दी..

परिणाम- पीओके से लेकर चीन तक नहरू के कच्चे चिट्ठे खुल गये और 70 सालों में बना नहरू का फर्जी आभामंडल फुस्स हो गया।

3. कोरोना असफलता, पालघर लिंचिंग और सुशांत मामले के बाद भी शिवसेना और उद्धव ठाकरे की छवि जैसे-तैसे बची हुई थी। संजय_राउत को कीड़ा काटा और कंगना को गाली दे दी..

परिणाम- उद्धव_ठाकरे सहित शिवसेना के भी कच्चे चिट्ठे खुल गये। सालों से बनी हिंदुत्व की छवि सड़कछाप_गुंडागर्दी में बदल गयी और शिवसेना शवसेना बन गयी।

4. पालघर, रामजन्मभूमि, सुशांत, कंगना और तमाम मामलों में चुप्पी के बावजूद बच्चन_परिवार की लंगोट जैसे-तैसे बची हुई थी। जया को कीड़ा काटा और थाली_में_छेद वाला बयान दे दिया..

परिणाम- जिस अमिताभ पर कभी उंगली भी नहीं उठी थी, उनका हर पाखण्ड उजागर हो गया और 50 सालों में बनी महानायक की छवि महा_नालायक में बदल गयी।

5. अच्छी-भली सेकेंड_वेब कंट्रोल हो रही थी और तमाम लापरवाहियों, साइड इफेक्ट्स और दवाइयों में लूट के बाबजूद देश डॉक्टरों को वैरियर्स कह कर सम्मान दे रहा था। IMA को कीड़ा काटा और उसने आयुर्वेद के खिलाफ बयान जारी कर दिया..

परिणाम- जिस IMA पर कोई सवाल उठाने की सोच भी नहीं सकता था, उसके कच्चे चिट्ठे खुल रहे हैं। उसकी मिशनरी_उत्पत्ति और धर्मांतरण में मिलीभगत से लेकर फार्मालाबी से सांठगांठ तक के काले कारनामे कब्र से निकल रहे हैं और देश को पहली_बार पता चला कि IMA कोई सरकारी संस्था नहीं, बल्कि एक NGO है।

70 सालों तक जनता को भेड़ समझने वाले अगर नहीं समझ पा रहे हैं कि नये_भारत में इस कीड़े ने भी काटने का प्यार भरा नया_अंदाज ढूंढ लिया है, तो हम क्या कर सकते हैं.?

यही नियति_का_लोकतंत्र है..  

✍️❤️🤷‍♂️

Saturday, May 15, 2021

येरुशलम में इस्लाम खतरे में..

इस समय इजरायल और फिलिस्तीन के बीच (संभवतः इस बार निर्णायक) युद्ध चल रहा है। इजरायल या फिलिस्तीन हमारे पड़ोसी नहीं हैं.. लेकिन चाहे-अनचाहे हम इस युद्ध से प्रभावित जरूर होंगे, हो भी रहे हैं..

कितने लोग जानते हैं कि इजरायल और फिलिस्तीन के बीच विवाद का कारण क्या है.? वस्तुतः यह विवाद बिलकुल उसी तरह का है, जैसा हमारे यहां अयोध्या में शताब्दियों बाद निबटा है और काशी_मथुरा में चल ही रहा है।

यहूदियों का सबसे पवित्र धार्मिक स्थान टेंपल_माउंट येरुशलम के पुराने शहर में है। 70 ईस्वी में यहां स्थित यहूदियों के सेकेंड_टेंपल को ध्वस्त कर दिया गया और अब वहां पर अल_अक्सा मस्जिद बनी है जो इस्लाम की तीसरी सबसे पाक_मस्जिद कही जाती है। जले_पर_नमक की तर्ज पर इसी के पास बाद में इस्लामी श्राइन डोम_आफ_रॉक बनाकर उसके गुम्बद को सोने से मढ़वाया गया। 

बहुत जद्दोजहद के बाद आखिरकार यहूदियों को इसके पास स्थित वेस्टर्न_वाल के पास पूजा करने की अनुमति मिली.. लेकिन शायद यहूदी हम हिन्दुओं की तरह सहिष्णु या सेकुलर नहीं हैं। अब वह अपना अधिकार वापस लेने में सक्षम हैं और सौभाग्य से इजराइल में विपक्ष भी भारत की तरह दोगला नहीं है..

जो भी हो, फिलहाल तो येरुशलम में इजरायल ने इस्लाम_खतरे_में डाल दिया है.. देखने वाली बात ये होगी कि इस बार जेहादी कम पड़ते हैं, या फिर हूरें ही कम पड़ जायेंगी... 👍

Sunday, May 2, 2021

बंगाल चुनाव और भाजपा

★"एक बार फिर लोकतंत्र में लोगों की आस्था बनी रह गई है.."
★"ईवीएम की खराबी अब बीते दिनों की बात है.."
★"मोदी-शाह के चुनावी अश्वमेध के बगटुट घोड़े को बंगाल की दीदी ने थाम लिया है..

ऐसी कुछ हेडलाइंस, ऐसे कुछ स्लग्स, ऐसे कुछ विश्लेषण अगले 2-3 दिनों तक आपको टीवी/पेपर्स में देखने को मिलने वाले हैं।

यह चुनाव पांच राज्यों में हुए हैं, जिनमें से दो -असम और पुडुचेरी- में भाजपा पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने जा रही है, बंगाल में उसने 3 की तुलना में 75 से अधिक सीटें लेकर गजब का प्रदर्शन किया है, तमिलनाडु में दमदार शुरुआत की है और केरल में मेट्रोमैन श्रीधरन की हार के बाद भी भाजपा की धमक स्पष्ट दिखने लगी है.. लेकिन चर्चा ऐसी हो रही है, जैसे बंगाल में भाजपा की सरकार थी और ममता ने उसे छीन लिया है। वस्तुतः यह मीडिया के छद्म बुद्धिजीवियों की बनाई दुनिया थी जो भाजपा का सब कुछ बंगाल में दांव पर लगा हुआ बता रही थी। भाजपा के पास बंगाल में खोने को था ही क्या.? उसकी 3 से 75-80 सीटों की जीत प्रमाण है कि भाजपा ने बंगाल में राजनीतिक दल के रूप में गजब का प्रदर्शन किया है। रही बात प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के चुनाव प्रचार करने की ( जो कहा जा रहा है), तो क्या वह अपनी पार्टी के नेता नहीं हैं, और क्या मंत्रिपद उनको अपने दल के लिये प्रचार करने से वंचित कर देता है.?

कांग्रेस और लेफ्ट के अभूतपूर्व सफाये की कोई चर्चा नहीं कर रहा है। बंगाल में दोनों का ही खाता तक नहीं खुला और असम में तमाम दम झोंकने और मुस्लिम जेहादियों के साथ गठबंधन करने के बावजूद कांग्रेस की दाल नहीं गली है।

यह सच है कि बंगाल में दीदी एक पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने जा रही हैं, लेकिन यह भी सच है कि नंदीग्राम के नतीजे की छाया पूरे 5 साल उनकी सरकार पर ग्रहण की तरह छायी रहेगी।

बंगाल चुनाव नतीजों के विश्लेषण से स्पष्ट है कि जिन-जिन सीटों पर मुस्लिम जनसंख्या प्रभावी थी, वहां-वहां टीएमसी की जोरदार जीत हुई है। वोटों का यह बटखरा सीधे तौर पर तृणमूल के पक्ष में गया और उसने पलड़े को झुका दिया। हिंदू_वोटर हमेशा की तरह असमंजस में रहा, जबकि मुसलमानों ने हमेशा की तरह भाजपा को हराने के लिये एकजुट होकर वोट किया जिसका आह्वान भी ममता ने खुले मंच से किया था.. सोचना तो अब वहां के हिंदुओं को होगा।

चुनाव लोकतंत्र की असल कसौटी होते हैं और इसमें किसी की जीत तो किसी की हार होती ही रहती है। लेकिन बंगाल की असल चुनौती अभी आगे आनी बाकी है जिसका संकेत टीएमसी के गुंडों ने नतीजे आते ही आरामबाग में भाजपा #कार्यालय को जलाकर दे दिया है। कमीशनखोरी, तोलेबाजी और हर केंद्रीय योजना में अड़ंगा अब बंगाल का नसीब होने वाला है। 

कई चुनावों के बाद बंगाल में भाजपा के रूप में एक मजबूत विपक्ष आया है, वह हिंदुओं को कितना बचा पायेगी यह तो समय ही बता पायेगा.. लेकिन उम्मीद तो कर ही सकते हैं कि भाजपा के रहते रोहिंग्या और अवैध बांग्लादेशी वहां अब एक नया_कश्मीर नहीं बना पायेंगे।

#जय_हिंद 💐

Thursday, April 29, 2021

कोरोना की सेकेंड वेव और मोदी

फिर से शुरुआत वहीं से करूंगा कि कोरोना है और शायद रहेगा भी सुगर, बीपी व अन्य कई बीमारियों की तरह.. शंका इस कोरोना की तथाकथित सेकेंड_वेव को लेकर हो रही है कि क्या यह भारत और भारत के वर्तमान शासन के विरुद्ध सुनियोजित षड्यंत्र तो नहीं है.?

एक पखवाड़े पहले तक मैं भी इसे सेकेंड वेव ही मानता था, लेकिन जब पूरे भारतीय उपमहाद्वीप की स्थिति का आकलन किया तो आश्चर्य हुआ। हमारे पड़ोसी पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान या पूरे एशिया के किसी भी अन्य देश में कोई दूसरी लहर नहीं आयी, वहां आज भी स्थितियां पहले जैसी ही हैं। 

फिर यह सेकेंड वेव का बम भारत में ही क्यूं और कैसे फटा.? क्या इन सभी एशियाई देशों -जो चिकित्सा, स्वास्थ्य और अन्य उच्चतर सुविधाओं में हमसे कमतर ही हैं- के नागरिक भारतीयों से अधिक अनुशासित हैं.? क्या वे महामारी से बचने के लिए चौबीस घंटे मास्क पहने रहते हैं.? क्या उनकी भौगोलिक स्थिति भारत से भिन्न है.? फिर यह दूसरी लहर इन देशों को छू भी नहीं सकी और भारत को तोड़ रही है, क्यूं.? 

आईसीएमआर ने पहली वेव के समय कहा था कि भारत में करोड़ों लोगों को यह बीमारी हो गयी और उन्हें पता भी नहीं चला.. तो जब करोड़ों लोग तब इसे झेल गये, फिर उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बन गयी, तब दूसरी लहर इतनी खतरनाक कैसे हो गयी, और भारत में ही क्यों हुई.? 

उत्तर आसान नहीं तो बहुत कठिन भी नहीं है.. थोड़ा सा ध्यान इस महामारी के बाद की वैश्विक परिस्थितियों पर ले जाइये। दवा, वैक्सीन से लेकर अर्थव्यवस्था प्रबंधन तक.. सबमें ही भारत ने पूरी दुनिया को चकित कर दिया था और UN से लेकर WHO तक हर कहीं भारत और मोदी की तारीफ के पुल बांधे जाने लगे थे। तो क्या चीन, पाकिस्तान और विश्व के स्वयम्भू मालिक देश इससे बहुत प्रसन्न हो गये होंगे.?

चीन आज भारत को मदद की बात कर रहा है, जबकि पिछली महामारी में वही घुसपैठ कर रहा था। पाकिस्तान जैसा चिरशत्रु जिसे खुद के खाने के लाले पड़े हैं, वह भी हमारी मदद की बात कर रहा है और अमेरिका व जर्मनी जैसे देश हमें वैक्सीन बनाने का कच्चा माल देने से मना कर रहे हैं।

असल कारण दूसरे ही हैं..

अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में दुनिया की ताकतवर फार्मा लाॅबी, ऑयल लाॅबी और आर्म्स लॉबी ने इस महामारी, BlackLivesMatter तथा जॉर्ज फ्लाॅयड जैसे मुद्दों का मीडिया में भयानक उफान मचाकर ट्रंप को हरवा दिया, क्योंकि ट्रंप ने इन लॉबीज के सामने खड़े होने की हिमाकत की थी। हालांकि वो बाद में झुके, लेकिन तबतक देर हो चुकी थी।

न जानते हों तो जान लें, इन फार्मा कंपनियों का सालाना बिजनेस कम से कम 4 से 6 ट्रिलियन डॉलर का होता है, जिसमें से मोदी ने लगभग 1.25 ट्रिलियन डॉलर का इनका वैक्सीन बिजनेस छीन लिया, इसके अलावा 500 बिलियन डॉलर का PPE Kit और मास्क का बिजनेस भी लगभग जीरो कर दिया। तो भारत की मेडिकल क्षेत्र में आत्मनिर्भरता कैसे.? हमेशा हाथ फैलाने वाला देश वैक्सीन बांटने वाला देश हो गया.? क्या यह आसानी से पचने वाली बात थी.? जर्मनी ने तो अपनी पीड़ा खुलकर जाहिर भी कर दी थी कि "ड्रग के क्षेत्र में भारत ने हमें कैसे पछाड़ दिया.?

कारण और भी हैं..

भारत ने वैश्विक आयल_लाबी के मुंह पर करारा तमाचा मारते हुए अगले 2-3 सालों में इलॅक्ट्रिक वाहनों के लिये 75 हजार से 1 लाख चार्जिंग स्टेशन बनाने का लक्ष्य रखा है जिससे तेल की खपत 30% तक कम हो जायेगी। हम LCA लड़ाकू विमानों और ब्रह्मोस मिसाइल का निर्यात करने लगे हैं, क्या यह वैश्विक आर्म्स_लॉबी के लिये सुखद समाचार है.?

सभी परेशान हैं..मोदी इनकी राह का सबसे बड़ा कांटा है और वह ट्रंप की तरह झुक भी नहीं रहा है, तो क्या किया जाये.? लोकतांत्रिक देश में अंतिम और सबसे सशक्त हथियार है जनता का गुस्सा और अब देश व देश के बाहर के सारे मोदी विरोधी इसी अस्त्र को आजमाने में लगे हैं।

आज की तारीख में असम और बंगाल भारत के लिये कहीं न कहीं कश्मीर से भी अधिक महत्वपूर्ण हैं, न मानिये तो गूगल पर चिकन_नेक सर्च कर लीजिये फिर टीवी, न्यूजपेपर या सोशल मीडिया कहीं भी जाइये- असम और पश्चिम बंगाल में जनता मोदी की रैलियों और प्रचार को लेकर गुस्से में दिखायी जा रही है। कोई नहीं बताता कि पश्चिम बंगाल में डेढ़ करोड़ बांग्लादेशी व रोहिंग्या और असम में भी 40 लाख घुसपैठिये मेहमान बनाये जा चुके हैं और दीदी तथा गांधी जैसे लोग उनके आधार कार्ड भी बनवा चुके हैं।

फिर से कहूंगा कि कोरोना है और सतर्क रहिये, आपकी सरकार हर समय आपके साथ है। लेकिन इस चीनी बीमारी की दूसरी लहर का आतंक मोदी को हर मोर्चे पर विफल दिखाने और देश में सिविल_वार करवाने के लिये फैलाया जा रहा है। यह चीन और भारत में छिपे बैठे उसके स्लीपर सेल -वामपंथियों और अब कांग्रेसियों- का भी खतरनाक खेल है। विपक्षनीत सरकारों की मोदी सरकार के विरुद्ध महामारी सम्बन्धी नीच राजनीति और मीडिया का 24x7 लाशें व ऑक्सीजन की कमी दिखाना इसी घिनौने षड्यंत्र का एक हिस्सा है..

एक ही मां सैकड़ों की मां बन कर हजारों बार बिना आक्सीजन के कैसे मर रही है.? भीड़ केवल शमशान में ही क्यों दिख रही है.? एक ही खाली आक्सीजन सिलिंडर तमाम जगह क्यूं दिखायी दे रहा है.? अचानक ही किसान फिर से दिल्ली में क्यूं घुसने लगे हैं.?

क्रोनोलॉजी समझिये.. यह एक और टूल किट है जो फिर से सक्रिय हुई है। जैसे ही महाराष्ट्र में वसूली कांड खुला और मोदी बंगाल जीतते लगे, सबकी फट गयी कि अब क्या होगा.? और महामारी फिर से प्रकट हो गयी। हारे हुए नकारा लोगों ने अब अपना गैंग बना लिया है जो लगातार ऐसे षड्यंत्र करते ही रहेंगे और थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद यह लड़ाई अभी चलती ही रहेगी, जबतक हम-आप ऐसे देशद्रोहियों को उनके अंतिम अंजाम तक पहुंचा कर समाप्त नहीं कर देंगे..और यह करना ही होगा, अगर अपनी अगली पीढ़ी को फिर से गुलाम नहीं बनाना है तो..

मेरे विचार से पांच_राज्यों के आने वाले चुनाव_परिणाम स्पष्ट संकेत देंगे कि मोदी भी ट्रम्प जैसे अंजाम की ओर चल पड़े हैं, या संघर्ष में अभी भी हमारी अगुआई करेंगे.?! 

जय_हिंद

Friday, April 16, 2021

कोरोना और हमारी मानसिक दृढ़ता..

यह कटु तथा स्थापित सत्य है कि कोरोना है, लगभग सबको है और शायद रहेगा भी। परंतु कोरोना से जितना डरने की आवश्यकता है, उससे कहीं अधिक इससे सावधान रहने की भी जरूरत है और इसके लिये कुछ भ्रांतियों का निराकरण आवश्यक है।

अमेरिका में मृत्युदंड प्राप्त एक कैदी पर वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग किया.. उसे बताया गया कि उसे फांसी देने की बजाय कोबरा से डसवा कर मारा जायेगा। नियत दिन पर उसके सामने एक भयानक विषधर किंग कोबरा लाया गया और कैदी की आंखों पर पट्टी बांधकर कुर्सी पर बैठा दिया गया। कैदी अपनी निश्चित मृत्यु की प्रतीक्षा में बैठा था तभी उसे एक साधारण सेफ्टी पिन चुभो दी गयी।
आश्चर्य, 2 सेकेंड में ही कैदी की तड़प कर मृत्यु हो गयी। तमाम वैज्ञानिक तब और आश्चर्यचकित रह गये जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसके शरीर में कोबरा का जहर न्यूरोटॉक्सिन पाया गया।

अब प्रश्न यह उठा कि साधारण पिन से कैदी के शरीर में  विष कहां से आया जिससे कैदी की मृत्यु हुई.? विस्तृत जांच के बाद पाया गया कि वह घातक विष मानसिक तनाव और भय के कारण स्वयं कैदी के शरीर ने ही उत्पन्न किया था।

कथासार यह है कि हमारा शरीर हमारी अपनी मानसिक स्थिति के अनुसार स्वतः पॉजिटिव और निगेटिव एनर्जी उत्पन्न करता है और तदनुसार ही हमारे शरीर में हार्मोंस पैदा होते हैं।  लगभग 90% बीमारियों का मूल कारण नकारात्मक विचारों से उत्पन्न निगेटिव एनर्जी ही होती है, इसी प्रकार सकारात्मक विचार पॉजिटिव एनर्जी उत्पन्न करते हैं जो रोगों से लड़ने में सहायक होती है। कई बार रोगी अपने विश्वसनीय डॉक्टर के- "कोई चिंता की बात नहीं है.." कह देने भर से ही स्वस्थ अनुभव करने लगता है, यह उसका डॉक्टर के प्रति विश्वास -सकारात्मक विचार- ही होता है।

तो.. कोरोना को मन से न लगायें और आंकड़ों पर न जायें। टीवी, न्यूजपेपर्स या कहीं और से कोरोना सम्बन्धी खबरें देखने, पढ़ने या पता करने से परहेज करें, क्योंकि जितनी जानकारी आपको चाहिये थी वह आप जान चुके हैं, इससे अधिक जानकारी की आपको कोई आवश्यकता नहीं हैं।

ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि इस महामारी में नगण्य लोगों की मृत्यु घर पर हुई है। लगभग सभी अस्पताल में ही मरे हैं और वो केवल कोरोना से ही नहीं, बल्कि इसलिये मरे हैं क्योंकि उन्हें अन्य बीमारियां भी थीं, जिनका मुकाबला वो नहीं  कर सके। इसमें भी अस्पताल का वातावरण और उससे उत्पन्न मन का भय -नकारात्मक उर्जा- प्रमुख कारण है।

5 से 80 वर्ष तक के लगभग सारे लोग निगेटिव हो चुके हैं, 65 प्रतिशत लोग व्यवस्थित हैं और देश में कोरोना वैक्सिनेशन का काम तेजी से चल रहा है। इसलिये मास्क का प्रयोग करें, स्वच्छता रखें और अपने विचार सकारात्मक रखें। दृढ़ विश्वास रखें और दूसरों को भी विश्वास दिलायें कि यह समय बीत जायेगा और अतिशीघ्र सब ठीक हो जायेगा..! 👍

#Be_Positive, #Be_Healthy 💐

Thursday, March 11, 2021

बंगाल का चुनावी खेला..

#चुनावी_खेला..

1977 में #कांग्रेस के तत्कालीन राजकुमार संजय_गांधी अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे। जनता उनसे बहुत नाराज थी और संजय गांधी को भी इसका पता था। ऐसे में जाने-माने विश्व_प्रसिद्ध पहलवान दारा_सिंह -जिनकी लोकप्रियता उस समय चरम पर थी और देश के ग्रामीण क्षेत्रों में तो उन्हें महामानव माना जाता था- को उनके पक्ष में जनसभा के लिये बुलाया गया। नाराज जनता ने दारा सिंह का इतना उग्र विरोध किया कि दारा सिंह अपना आपा खोकर मंच से कूद कर जनता की तरफ डंडा लेकर दौड़ पड़े थे, पुलिस को किसी तरह उन्हें भीड़ से बचाकर ले जाना पड़ा था। 

इसके बाद एक दिन चुनाव प्रचार कर लौट रहे संजय गांधी की कार पर अचानक #विरोधियों द्वारा गोलियां बरसा दी गयीं.. यह चुनावी_स्टंट रचा तो जनता की सहानुभूति बटोरने के लिये गया था, लेकिन इसका प्रभाव उल्टा ही पड़ा और संजय गांधी को उस चुनाव में 76 प्रतिशत के भारी अंतर से हार का मुंह देखना पड़ा था।

बंगाल में ममता_बनर्जी के साथ हुई घटना भी लगभग उसी तरह का चुनावी_ड्रामा ही है। पिटे हुए मोहरे प्रशांत_किशोर की सलाह पर ममता द्वारा अपनी खुद की गलती से हुई एक सामान्य दुर्घटना को जानलेवा_हमला बताना बंगाल के चुनावी_खेला का अबतक का सबसे विकृत प्रसंग ही कहा जा सकता है..

और ऐसा खेला ममता आज से नहीं खेल रही हैं.. पता नहीं कितनों को याद होगा, 1975 में जब लोकनायक जय प्रकाश नारायण कलकत्ता में सम्पूर्ण_क्रांति की यात्रा पर थे, तब एक लड़की ने अचानक सड़क पर उनकी कार रोक दी थी और कार की छत और बोनट पर आसुरी_नृत्य किया था..यह नृत्यांगना ममता बनर्जी ही थीं। उनके इस नृत्य ने तब के अखबारों में 3-4 दिन तक सुर्खियां बटोरी थीं और यहीं से उनकी उद्दंड तथा अराजक राजनीतिक यात्रा का प्रारंभ भी हुआ था।

लेकिन ममता भूल रही हैं कि संचार क्रांति के बाद के वर्तमान युग में जब कि विश्व के एक छोर से खबरें चंद सेकेंड में दूसरे छोर तक पहुंच जाती हैं, ऐसे हथकंडों की पोल खुलते न देर लगती है, न इनका ज्यादा असर होता है।

भाजपा ने और आश्चर्यजनक रूप से कांग्रेस ने भी ममता के साथ हुई घटना की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। उचित होगा कि इस घटना की त्वरित जांच कर परिणाम से जनता को भी अवगत कराया जाये, ताकि जनता हिंसा से नहीं बल्कि वोट से चुनाव में अपना #खेला खेले और इन ढोंगियों को वक्त रहते सबक सिखा सके..

जय_हिंद 🚩