Saturday, June 19, 2021

दरगाह.. हजरत का बाल या बल.?!

एक और hidden_story.. 

26 दिसम्बर, 1963 की घटना है- आसमानी_किताब के नुमाइंदों के पैगम्बर की दाढ़ी का एक बाल चोरी हो गया। अब मुझे नहीं पता कि वो दाढ़ी रखते भी थे या नहीं, लेकिन अगर दाढ़ी रखते थे तो फिर दाढ़ी का बाल भी रहा ही होगा..

खैर.. वह बाल कभी उनके वारिसान कर्नाटक लाये थे (कब, क्यूं और कैसे लाये थे, पता नहीं) और फिर महान(?) मुगलों के सबसे न्यायप्रिय(?) शासक औरंगजेब द्वारा इस बाल को दुनिया की जन्नत कश्मीर की खूबसूरती में और बढ़ोत्तरी करने के लिये वहां भेजकर एक दरगाह बनवायी गयी थी, जिसका नाम हजरत_बल (वैसे सही नाम तो हजरत_बाल होना चाहिये था) दरगाह रखा गया।

हां, तो मुद्दे पर आते हैं कि नबी का बाल चोरी हो गया..

पूरे भारत में यह खबर आग की तरह फैल गयी और हर जगह (आदतन) मुसलमान सड़कों पर आ गये। पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान सहित हर जगह दंगे शुरू होने लगे, हिन्दू मंदिरों और पूजा स्थलों में आगजनी और तोड़फोड़ होने लगी। तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारी लाल नन्दा ने फरवरी 1964 मे बताया था कि उन दंगों में 29 हिन्दू मारे गये थे और हजारों घायल हुए थे, सही संख्या का अनुमान स्वयं लगायें..

बालप्रिय_नहरू उस समय भारत के प्रधानमंत्री थे, तो  बाल गायब होने और मुस्लिम आक्रोश से उनकी हिलने लगी.. आनन-फानन तब के खुफिया चीफ बीएन मलिक और लालबहादुर शास्त्री जी तो तब के सबसे योग्य नेता थे, को वह बाल ढूंढने के महत्वपूर्ण ऑपरेशन पर कश्मीर भेज दिया गया।

नौ दिनों तक पूरा कश्मीर सड़कों पर रहा.. फिर दसवें दिन 4 जनवरी 1964 को #कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शमसुद्दीन ने घोषणा की कि "आज हमारे लिये ईद जैसा खुशी का दिन है, हमारे हुजूर का बाल खोज लिया गया है.." पर दिक्कत यह थी कि खोजा गया बाल हजरत हुजूर का ही है, यह कैसे माना जाये.? तो नहरू सरकार ने बाल की पहचान के लिये एक आलिम-फाजिल अरबी_मौलवी को सरकारी खर्चे पर कश्मीर बुलाया। 

मौलाना ने देर तक उस बाल को गौर से परखने के बाद फरमाया- "माशाल्लाह्ह.. यह तो रसूल-ए-पाक का वही मुकद्दस दाढ़ी_का_बाल है.." हुजूम ने अल्लाह-हू-अकबर का नारा लगाया, कश्मीर और पूरे देश में खुशी छा गयी, मिठाइयां बंटने लगीं और देश पर से एक और बंटवारे की विपदा टल गयी..

हम तो दिल से तारीफ और रश्क भी करेंगे उस मौलाना से, जिसकी पारखी_नजर ने साढ़े_तेरह_सौ साल पहले मर चुके इंसान की दाढ़ी के एक बाल को भी पहचान लिया था, काश ऐसे माहिर नासा या इसरो के पास भी होते..

अब सोचिये..

भारत के संविधान की प्रस्तावना में इसे धर्मनिरपेक्ष बताया गया था, तो किसी पैगम्बर की दाढ़ी का बाल खोजने में देश के खुफिया प्रमुख, पूरा सरकारी अमला और शास्त्री जी जैसे महान नेता को भी लगा देना क्या देश की धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ नहीं था.? 

और जो समाज हमारी मूर्तिपूजा को हराम बताकर हमेशा उसका विरोध करता रहा है, उसके लिये दाढ़ी का एक बाल इतना महत्वपूर्ण था कि उसके लिये सड़कों पर दंगे करने लगा और सभी उस बाल के आगे सजदा भी करते हैं.. क्या उस समाज से कभी भी सहिष्णुता की उम्मीद की जा सकती है.?

सच्चाई यह है कि सिर्फ मुस्लिम ही नहीं, बल्कि दुनिया में किसी भी धर्म के लोग अपने धर्म के प्रतीकों और मान्यताओं से कभी कोई समझौता नहीं करते। धर्मनिरपेक्षता और सर्वधर्म समभाव का पाठ आदिकाल से सिर्फ हिन्दुओं को पढ़ाया जाता रहा है और हमने इसी का खामियाजा भी उठाया है, क्यूंकि हम भूल गये हैं कि हमारे पवित्र ग्रंथों ने हमें वसुधैव_कुटुम्बकम के साथ ही शठे_शाठ्यम_समाचरेत की भी शिक्षा दी है..

तो.. समझिये, सोचिये और जाग जाइये.. 👍

जय_हिन्द

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