Tuesday, June 15, 2021

एमिली शेंकल बोस और नहरू सरकार

आज देश की आजादी से पहले की एक जर्मन महिला Emilie_Schenkl की कथा सुना रहा हूं..

नहीं पता, आपमें से कितनों ने ये नाम सुना है.? वैसे अधिकांश ने नहीं ही सुना होगा और इसमें दोष आपका नहीं है.. क्योंकि इस नाम को भारत के इतिहास से खुरच कर निकाल फेंका गया था और हर सम्भव प्रयास किया गया था कि इसे कोई भी जान न सके..

एमिली शेंकल ने वर्ष 1937 में भारत मां के एक लाडले बेटे से विवाह किया था। विवाह के बाद एमिली को मात्र 3 वर्ष ही पति के साथ रहने का अवसर मिला था, फिर उन्हें और नन्हीं सी बेटी को छोड़ पति देश के लिये लड़ने चला गया.. इस वादे के साथ कि "पहले देश को स्वतंत्र करा लूं, फिर तो सारा जीवन तुम्हारे साथ ही बिताना है.." पर दुर्भाग्य से ऐसा न हो सका और 1945 में एक संदिग्ध विमान दुर्घटना में एमिली के पति लापता हो गये..

जी हां, मैं बात कर रहा हूं भारत की आजादी के पुरोधा नेताजी_सुभाषचन्द्र_बोस की धर्मपत्नी एमिली_शेंकल_बोस की, जिन्हें विवाह के मात्र छः वर्षों बाद से ही पति की अनन्त प्रतीक्षा का दुख झेलना पड़ा था। उस समय एमिली युवा थीं और यूरोपीय संस्कृति के हिसाब से उनके लिये दूसरा विवाह कर लेना सहज था, पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। एक भारतीय विधवा की तरह सारा जीवन एमिली ने अपनी बेटी पर निछावर कर दिया और तारघर क्लर्क की मामूली नौकरी कर उसे पाला-पोसा, किसी से कुछ नहीं मांगा।

दो साल बाद 1947 में भारत आजाद भी हो गया। कांग्रेस की सरकार बनी और नहरू देश के प्रधानमंत्री (चाहे जैसे भी) बन गये। नहरू और सबको पता था कि एमिली देश के उन्हीं अमर सपूत नेताजी_सुभाष की विधवा हैं, जो 1939 में उन्हीं की कांग्रेस के #अध्यक्ष चुने गये थे और देश की आजादी में जिनका योगदान पूरी कांग्रेस पार्टी से कई गुना ज्यादा था.. लेकिन किसी ने भी एमिली की सुध नहीं ली। एमिली ने भी एक योद्धा की पत्नी होने का मान रखते हुए भारत के इन #कपूतों से कभी कोई याचना नहीं की।

भारत का स्वयम्भू_राजपरिवार जाने क्यूं इतना भयभीत रहा इस महिला से, कि जिसे ससम्मान यहां बुला देश की नागरिकता देनी चाहिये थी, उसे कभी भारत का वीजा तक नहीं दिया गया। नहरू और उनके कुनबे को भय था कि देश इस विदेशी_बहू को सर आंखों पर बिठा लेगा, इसीलिये उन्हें एमिली बोस का इस देश में पैर रखना अपनी सत्ता के लिये चुनौती लगा होगा, वैसे मेरी दृष्टि से यह भय सही भी था।

जीवन के तमाम संघर्षों के बावजूद एमिली ने अपनी- नेताजी की पुत्री- अनिता_बोस को उच्च शिक्षा दिलायी किन्तु भारत आने की इच्छा मन में लिये ही अंततः  मार्च 1996  में उन्होंने अपने जीवन का त्याग कर दिया।

कांग्रेC और उनके जन्मजात अंधचाटुकार पत्तलकार और इतिहासकार जो विदेशी मूल की एन्टोनियो_माइनो को देश_की_बहू का तमगा देते नहीं थकते हैं, उसकी कुर्बानियों(?) का बखान करने में अपने पिछवाड़े तक का पसीना निकाल देते हैं.. उनसे कोई पूछे- क्या कभी भी उन्होंने श्रीमती बोस की चर्चा की है.? और क्या एंटोनियो माइनो की तुलना किसी भी तरह से श्रीमती एमिली शेंकल बोस से की जा सकती है.? 😢 

सोचियेगा..

#जय_हिन्द

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