सौभाग्य से अब सभी को पता है कि देश में तमाम मस्जिदों के इमामों को सरकार की ओर से प्रतिमाह सेलेरी दी जाती है। लेकिन क्या आपको यह पता है कि ऐसा क्यूं है और धर्मनिरपेक्ष_भारत में मस्जिदों के इमामों को हमारे टैक्स से वेतन क्यूं दिया जा रहा है.?
ध्यान से पढ़ियेगा..
1989 में देश की 743 मस्जिदों के इमामों ने सुप्रीम_कोर्ट में रिट दायर की, कि वह मजहब की तरक्की के लिये काम करते हैं और समाज के एक बड़े तबके को मजहब के बारे में बताते-सिखाते हैं, नमाज अदा करवाते हैं। लेकिन बदले में उन्हें कोई मेहनताना नहीं मिलता है, सरकार मेहनताने के रूप में उन्हें तनख्वाह दे।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार सहित सभी राज्यों के वक्फ_बोर्डों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा..
केंद्र और कुछ राज्यों के वक्फ बोर्डों ने दलील दी- "चूंकि इनके और हमारे बीच कोई मालिक और कर्मचारी वाला सम्बन्ध नहीं है, इसलिये हम इन्हें तनख्वाह नहीं दे सकते.."
कर्नाटक वक्फ बोर्ड ने दलील दी- "चूंकि ऐसा कोई इस्लामी कानून और परम्परा नहीं है, इसलिये इनको तनख्वाह नहीं दी जा सकती.."
पंजाब वक्फ बोर्ड जिसके अंतर्गत हिमाचल और हरियाणा की मस्जिदें भी आतीं थीं, ने उत्तर दिया- "हम तो पहले से ही इनको तनख्वाह दे रहे हैं और प्रतिमाह मेडिकल एलाउंस भी दे रहे हैं.."
लम्बी सुनवाई के बाद 23 मई 1993 को धर्मनिरपेक्ष और समानता की बात करने वाले देश की काबिल सुप्रीम_कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार को आदेश दिया- "देश की सभी मस्जिदों के स्थायी और अस्थायी इमामों को 1 दिसम्बर 1993 से उनकी योग्यता अनुसार वेतन दिया जाये और इसके लिये छह महीने के अंदर पे_स्केल तय कर ली जाये। यदि इसमें ज्यादा समय लगता है तो इनको 1 दिसम्बर 1993 से एरियर भी देय होगा.." न पता हो तो जान लें कि तनख्वाह के हकदारों की योग्यता उनकी शरीयत, कुरान और हदीस के बारे में जानकारी के आधार पर तय होती है। सबसे काबिल इमाम आलिम होता है, उससे नीचे का इमाम हाफिज, उससे नीचे का इमाम नाजराह और सबसे नीचे मुअज्जिन। मुअज्जिन वो होता है, जिसकी ड्यूटी सुबह-सुबह और दिन में पांच बार लाउडस्पीकर पर चिल्ला कर सबको नमाज के लिये बुलाने की होती है।
मार्च 2011 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस_कमेटी ने राज्यपाल को ज्ञापन दिया था कि इस समय भारत में 28 लाख मस्जिदें हैं जिनमें से 3.30 लाख उत्तर प्रदेश में हैं, प्रदेश सरकार अभी भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार यहां के इमामों को नये पेस्केल से वेतन नहीं दे रही है। 2011 में ही 28 लाख मस्जिदें, केंद्रीय वक्फ बोर्ड और 30 राज्य वक्फ बोर्ड और ऊपर से हज_सब्सिडी अलग.. सोचिये, कितना पैसा प्रति माह दे रही होगी सरकार इस मद में और क्यूं.?
क्या इसलिये कि मस्जिद में नमाज के बाद ये सरकारी तनख्वाह पाने वाले इमाम कायदे से सिखा सकें कि काफिरों से कैसे नफरत करनी है.?
या इसलिये कि कश्मीर वगैरह में हुर्रियत जैसी दुकानें चलती रहें.?
या फिर इसलिये कि शांतिदूतों के बच्चों को प्रतिवर्ष 4800 करोड़ रुपयों का अतिरिक्त वजीफा दिया जा सके, ताकि वह कम्प्यूटर पर काफिरों को मिटाने और गजवा_ए_हिन्द को कामयाब करने के आधुनिक तरीके ढूंढ सकें.?
या इसलिये की जामिया और एएमयू से "भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह.." जैसे नारे बेरोकटोक लगते रहें.?
लेकिन गलत लिख गया मैं..
सरकार कौन सा अपनी जेब से देती है.? इनको देने के लिये वो तो आखिरकार हमसे ही वसूलती है जजिया की तरह.. और ये जजिया_खरज तो हम इनकी खैरियत के लिये इल्तुतमिश से औरंगजेब तक देते चले आ रहे हैं।
अंग्रेज इतिहासकार Mannuci ने लिखा था- "शाहजहां और औरंगजेब के समय जजिया और खरज की वसूली इतनी सख्त थी कि न दे पाने की स्थिति में फौज हिन्दू_काश्तकार को उठा कर ले जाती थी और उन्हें गुलामों के बाजार में बेंच दिया जाता था.. उस काश्तकार के पीछे पीछे रोती-बिलखती उसकी पत्नी को भी पति के साथ ही बेंच दिया जाता था.. जजिया से बचने के दो ही रास्ते थे, या तो इस्लाम कबूल कर लो या मौत.." औरंगजेब तो खुश होकर बताता था कि जजिया न दे पाने की वजह से तमाम काफिरों को इस्लाम कुबूल करना पड़ा है.."
कितना घृणित_मजाक है कि विश्व के सर्वश्रेष्ठ_प्रजातंत्र और सर्वश्रेष्ठ लिखित संविधान से संचालित धर्मनिरपेक्ष_राष्ट्र में हम आज भी उत्तर से लेकर दक्षिण तक मस्जिद के इमामों की तनख्वाह के लिए जजिया दे रहे हैं, ऊपर से मुगलकाल की तर्ज पर आज भी सरकारें हमारे मंदिरों को लूट रहीं हैं।
लेकिन, ऐतिहासिक तथ्य यह भी है कि अपने तमाम जलाल और लम्बी-चौड़ी फौज के बावजूद जब दिल्ली में जजिया के विरोध में हिन्दू एकजुट और उग्र हुए, तब औरंगजेब की इतनी फट गयी थी कि उसके बाद वह कभी भी बाहर नमाज पढ़ने के लिये जामा मस्जिद तक नहीं गया..उसे लाल किले में ही नयी मोती_मस्जिद बनवानी पड़ गयी थी।
तो.. समझिये, सोचिये और समय रहते जाग जाइये..
नोट: जो पोस्ट को काल्पनिक समझ रहे हैं उनके लिये सुप्रीम_कोर्ट के उस फैसले का लिंक नीचे दे रहा हूं, खुद पढ़ लें..
https://indiankanoon.org/doc/1929233/
🚩 🇮🇳 #जय_हिन्द 🇮🇳 🚩
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