#चुनावी_खेला..
1977 में #कांग्रेस के तत्कालीन राजकुमार संजय_गांधी अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे। जनता उनसे बहुत नाराज थी और संजय गांधी को भी इसका पता था। ऐसे में जाने-माने विश्व_प्रसिद्ध पहलवान दारा_सिंह -जिनकी लोकप्रियता उस समय चरम पर थी और देश के ग्रामीण क्षेत्रों में तो उन्हें महामानव माना जाता था- को उनके पक्ष में जनसभा के लिये बुलाया गया। नाराज जनता ने दारा सिंह का इतना उग्र विरोध किया कि दारा सिंह अपना आपा खोकर मंच से कूद कर जनता की तरफ डंडा लेकर दौड़ पड़े थे, पुलिस को किसी तरह उन्हें भीड़ से बचाकर ले जाना पड़ा था।
इसके बाद एक दिन चुनाव प्रचार कर लौट रहे संजय गांधी की कार पर अचानक #विरोधियों द्वारा गोलियां बरसा दी गयीं.. यह चुनावी_स्टंट रचा तो जनता की सहानुभूति बटोरने के लिये गया था, लेकिन इसका प्रभाव उल्टा ही पड़ा और संजय गांधी को उस चुनाव में 76 प्रतिशत के भारी अंतर से हार का मुंह देखना पड़ा था।
बंगाल में ममता_बनर्जी के साथ हुई घटना भी लगभग उसी तरह का चुनावी_ड्रामा ही है। पिटे हुए मोहरे प्रशांत_किशोर की सलाह पर ममता द्वारा अपनी खुद की गलती से हुई एक सामान्य दुर्घटना को जानलेवा_हमला बताना बंगाल के चुनावी_खेला का अबतक का सबसे विकृत प्रसंग ही कहा जा सकता है..
और ऐसा खेला ममता आज से नहीं खेल रही हैं.. पता नहीं कितनों को याद होगा, 1975 में जब लोकनायक जय प्रकाश नारायण कलकत्ता में सम्पूर्ण_क्रांति की यात्रा पर थे, तब एक लड़की ने अचानक सड़क पर उनकी कार रोक दी थी और कार की छत और बोनट पर आसुरी_नृत्य किया था..यह नृत्यांगना ममता बनर्जी ही थीं। उनके इस नृत्य ने तब के अखबारों में 3-4 दिन तक सुर्खियां बटोरी थीं और यहीं से उनकी उद्दंड तथा अराजक राजनीतिक यात्रा का प्रारंभ भी हुआ था।
लेकिन ममता भूल रही हैं कि संचार क्रांति के बाद के वर्तमान युग में जब कि विश्व के एक छोर से खबरें चंद सेकेंड में दूसरे छोर तक पहुंच जाती हैं, ऐसे हथकंडों की पोल खुलते न देर लगती है, न इनका ज्यादा असर होता है।
भाजपा ने और आश्चर्यजनक रूप से कांग्रेस ने भी ममता के साथ हुई घटना की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। उचित होगा कि इस घटना की त्वरित जांच कर परिणाम से जनता को भी अवगत कराया जाये, ताकि जनता हिंसा से नहीं बल्कि वोट से चुनाव में अपना #खेला खेले और इन ढोंगियों को वक्त रहते सबक सिखा सके..
जय_हिंद 🚩
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