आपमें से बहुतों ने किसी न किसी पीर या ख्वाजा की मजार पर हरी_चादर या उसपर पैसे जरूर चढ़ाये होंगे, ये न भी किया हो तो मोहल्ले में घूमते लम्बे_कुर्ते और छोटे_पाजामे वालों की हरी_चादर पर सिक्के तो जरूर ही डाले होंगे। मैं भी पत्नीजी के दबाव में जयपुर जाकर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती उर्फ गरीबनवाज की मजार पर चादर चढ़ाने में उनका सहयोग कर चुका हूं। उस कथा और उसके निहितार्थ पर चर्चा फिर कभी.. फिलहाल पीर, ख्वाजा और सैयद की बात करते हैं।
क्या जानते हैं आप, हम या कोई सामान्य हिन्दू इन पीर, ख्वाजा या सैयद के बारे में.? क्या हमें इन शब्दों के अर्थ या इनकी उत्पत्ति के बारे में भी पता है.? जानिये और समझिये..
भारतवर्ष के लगभग 250 वर्षों के मुस्लिम गुलामी काल में पीर वह राजस्व_अधिकारी होता था, जिसके जिम्मे हिन्दू गावों से लगान और टैक्स (जजिया वगैरह) आदि वसूलने का काम होता था। यह महत्वपूर्ण पद था, पीर की सुरक्षा व्यवस्था इतनी तगड़ी होती थी कि कोई भी उसके 9 गज से करीब नहीं आ सकता था और गांव वालों को नियत स्थान पर पीर के सामने जाकर टैक्स की रकम या सामान रख देना होता था।
जो हिन्दू परिवार टैक्स देने में असमर्थ रहते थे, पीर के सुरक्षा कर्मी उनके परिवार की सबसे सुंदर बहू या बेटी को नंगा करके लाते थे और पूरे गांव के सामने उसके साथ बलात्कार किया जाता था ताकि फिर कोई भी टैक्स देने से मना करने की हिम्मत न करे। इस घिनौने बलात्कार के बाद उस बहू बेटी के नंगे_बदन पर चादर डाल दी जाती थी और गांव के बाकी लोगों को लगान व टैक्स का पैसा उसी चादर पर डालना होता था।
पीर से ज्यादा अधिकार और क्षेत्रफल ख्वाजा के पास होता था, वह पीर से भी ज्यादा अत्याचार लूटखसोट करता था। ख्वाजा से भी ज्यादा अधिकार सैय्यद को मिले होते थे।
धीरे-धीरे यह प्रथा बन गयी। फिर पीर, ख्वाजा या सैयद जब भी किसी हिन्दू गांव में वसूली के लिये जाते, तब पहले ही उनके लिये गांव की सुंदर हिन्दू लड़कियां और बहुएं छांट कर रखी जाती थीं। वह उनके साथ बलात्कार करते फिर उनके नंगे_शरीर पर चादर बिछा दी जाती थी, हिन्दू जनता उसी चादर पर टैक्स की रकम डाल देती थी..
सौभाग्य से अब वो कुकर्मी पीर, ख्वाजा या सैयद नहीं रहे.. लेकिन हम मूर्ख और अज्ञानी_हिन्दू आज भी न जाने किस खौफ में अपनी बहन-बेटियों की इज्जत लूटने वाले उन्हीं नीचों की कब्रों पर माथा रगड़ते फिरते हैं और उनकी चादरों पर पैसा चढ़ा रहे हैं।
कायरता_और_मूर्खता की इससे बड़ी मिसाल अगर दुनिया में कहीं और मिले, तो प्लीज मुझे भी बताइयेगा.. 😡
नोट: यह लेख बीकानेर_संग्रहालय में संचित मुगलकालीन पांडुलिपियों में अंकित तथ्यों पर आधारित है।
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