Saturday, December 14, 2019

अफजल का गम

"तुम कितने अफजल मारोगे.? हर घर से अफजल निकलेगा..." सच कहा था उन्होंने।

इस समय मीडिया, सोशलमीडिया हर कहीं न जाने कितने वक्तव्य और वीडियो उड़ते-तैरते दिख रहे हैं जिनमें अनगिनत अफजल भारत की अस्मिता और संस्कृति को खुलेआम चुनौती दे रहे हैं। कहीं ट्रेन पर पत्थर फेंके जा रहे हैं, कहीं स्कूल कालेज तोड़े जा रहे हैं तो कहीं फसलें जलायी जा रही हैं। कल जो अफजल लोकतंत्र के मंदिर पर गोलियां बरसा रहा था, वही अफजल आज देश के अलग-अलग हिस्से में तोड़फोड़-आगजनी कर रहा है।

अगर आप को लगता कि अफजल CAB 2019 से नाराज होकर सड़क पर उतरा है, तो यकीन करिये आप या तो मानसिक विकलांग हो चुके हैं या फिर आपने भी अपनी आंखों पर लिबरल चश्मा चढ़ा लिया है।

अफजल तो 2014 के लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद राष्ट्रवादियों की सरकार बनने के बाद से ही हैरान-परेशान है। क्योंकि वह सड़क पर खुलेआम गाय नही काट सकता। अफजल गमजदा है, क्योंकि उसकी मर्जी के खिलाफ ट्रिपल तलाक को बैन कर दिया गया। अफजल बौखलाया है, क्योंकि कश्मीर से धारा 370 और 35A हटा दी गयी और अफजल गुस्से में है, क्योंकि वो चाहकर भी सुप्रीम कोर्ट के राममंदिर के पक्ष मे दिये गये निर्णय के विरोध में कुछ नहीं कर सकता।

अफजल के लिये CAB_2019 तो सिर्फ एक बहाना है। उसका असल मकसद तो उसकी अनचाही मौजूद सरकार को अपनी धमक/ताकत दिखाना है। याद करिये, जब अफजल ने लोकतंत्र के मंदिर संसद पर गोलियां चलायीं थीं, तब भी यही सरकार थी। अब CAB_2019 के बहाने अफजल अपने उस पुराने रसूख को पाना चाहता है जो उसे बाबर, अकबर, औरंगजेब, गौरी, इब्राहीम लोधी और जिन्ना ने दिया था। जिस रसूख से वो आजाद भारत में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय (शाहबानो केस) को भी बदलवाने का दम रखता था।

अफजल जानता है कि नागरिकता संशोधन बिल 2019 से देश के किसी मुसलमान की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, उसे हिन्दुस्तान से निकाला नहीं जायेगा। उसे बखूबी पता है कि नागरिकता संशोधन बिल पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के पीड़ित अल्पसंख्यको को सुरक्षित स्वदेश वापस लाने के लिये ही है और इन तीनों देशों में कुल मिलाकर भी मुठ्ठी भर ही हिन्दू या अल्पसंख्यक बचे हैं, जिनके भारत आ जाने से न तो अब्दुल कलाम सरीखे मुसलमान का घर छिनेगा न ही रोजगार।

लेकिन, अफजल ये भी जानता है कि अभी नहीं तो कभी नहीं..

अगर आज उसने औरंगजेब की तरह तोड़फोड़ नहीं मचायी, तो छत्रपति शिवाजी और महाराणा प्रताप की भूमि पर उसकी आतंक की बादशाहत हमेशा के लिये खत्म हो जायेगी। हिन्दुस्तान की सियासत में उसकी हैसियत मिट जायेगी जिसका असर सारी दुनिया पर होगा क्योंकि उसकी पैदाइश ही हिंसा से हुई है और अबतक सारी उपलब्धियां भी उसने लोगों को डराकर मार-काट के दम पर ही हासिल की हैं।

पर शायद अफजल कुछ भूल रहा है। वह भूल रहा है कि राणा प्रताप और शिवाजी के वंशजों का धैर्य अब खत्म हो चला है। वह भूल रहा है कि भारतीय जनमानस अब जान चुका है कि आजादी सिर्फ गांधी के चरखे से ही नहीं मिली थी, उसमें चंद्रशेखर आजाद और सुभाष चंद्र बोस सरीखों की गोली का भी योगदान था। अफजल भूल रहा है कि अब देश में राष्ट्रवादी सरकार है, जिसका नेतृत्व कुशल और सबल चाणक्य बुद्धि के पास है।

और..

अफजल भूल रहा है कि गोधरा Action नहीं था, सिर्फ ReAction था..😡

Thursday, November 7, 2019

न्यायमन्दिर के पंडे

मैं स्वभाव (और अपनी सेवा प्रवृत्ति से भी) पुजारी टाइप का नहीं हूं, लेकिन ईश्वरकृपा से देश और आसपास लगभग हर देवस्थान के दर्शन कर चुका हूं।

प्रायः हर कहीं मैंने भारतीय वर्णव्यवस्था के इतर एक अलग-'पंडा बिरादरी'-(आप सबको भी दिखी ही होगी) देखी है। देवदर्शन के पहले चाहे-अनचाहे भी आपको इन 'पंडों' को चढ़ावा चढ़ाना ही होगा, नहीं तो आपको देवदर्शन दुर्लभ ही हो जायेगा।

मगर यह भी एक सच्चाई है कि यह पंडा बिरादरी अपने को देवता के भक्तरूप में ही प्रस्तुत करती है, कभी भी स्वयं के देवता होने का दम्भ नहीं भरती है।

दुर्भाग्य से आजकल हमारे 'न्यायमन्दिरों' में 'पंडे' स्वयं को 'देवता' मान बैठे हैं और जिन मंदिरों की 'दान दक्षिणा' से उनके उदर, 'लंबोदर' होते जा रहे थे.. उन्हीं की मर्यादा खंडित करने पर उतारू हैं।

ईश्वर रक्षा करे इन ''पंडा पोषित मंदिरों'' की..

ऊँ शांतिः

Tuesday, November 5, 2019

दिल्ली पुलिस बनाम विधि व्यवसायी

दिल्ली #पुलिस_बनाम_वकील प्रकरण अब भयावह होता जा रहा है। कानून से सीधे सीधे जुड़ी (और कहीं न कहीं एक दूसरे की पूरक) दो संस्थायें आपस में उलझी हैं और जनता मूकदर्शक है (हमेशा की तरह)..

पुलिस वाले और वकील दोनों ही हमारे घर से हैं, आपके घर से भी हो सकते हैं। ये समझना जरूरी है कि यह आपस में क्यों उलझ गये.?

यह सच्चाई है कि भारत के हर न्यायालय परिसर में काले कोट वालों की संगठित गुंडई चलती है। इनकी तमाम यूनियन (बार काउंसिल) हैं और अगर व्यक्तिगत कारणों से भी कोई किसी वकील से लड़ पड़े तो उसे प्रोफेशन पर हमला बताते हुए ये संगठन सड़कों पर उतर आते हैं। दूसरी ओर पुलिस कर्मियों के पास ऐसा कुछ भी नहीं है, उनके तो उच्चाधिकारी भी (पता नहीं किन अज्ञात कारणों/भय से) जायज मामलों में भी उनका सहयोग नहीं करते हैं। ऐसे में अपमान सह कर भी चुप रहने के सिवाय एक पुलिसकर्मी के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं होता।

दिल्ली में प्रारंभिक विवाद सिर्फ पार्किंग का था और दो व्यक्तियों के बीच का था। दिक्कत बस यही थी कि उन दोनों का प्रोफेशन अलग अलग था। तब भी, चूंकि दोनों ही कानून से जुड़े प्रोफेशन में थे तो बड़ी आसानी से विवाद का कानून के मुताबिक समाधान निकाला जा सकता था।

लेकिन यहीं पर संगठित और असंगठित होने का फर्क उभर कर आया। संगठित वकीलों ने बार काउंसिल से संपर्क करने या न्यायालय में न जाकर असंगठित पक्ष के साथ मारपीट/आगजनी करते हुए स्वयं न्याय करना शुरू कर दिया, तमाम पुलिस कर्मी पीटे गये और दर्जन भर से ज्यादा पुलिस की गाड़ियां जला दी गयीं।

खैर..ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ था। समस्या का समाधान अभी भी सक्षम स्तर से किया जा सकता था, जिसके लिये माननीय उच्च न्यायालय ने मामले में हस्तक्षेप किया और दो पुलिसकर्मियों के तबादले व कुछ सिपाही/एएसआई को तत्काल सस्पेंड करने तथा खुलेआम मारपीट/आगजनी करने वाले वकीलों के विरुद्ध 6 सप्ताह तक कोई कार्यवाही न करने का अद्भुत निर्णय सुना दिया।

मेरी सामान्य बुद्धि तो यही कहती है कि अगर कोई बड़ा दो के झगड़े के बीच आता है, तो वह या तो दोनों में समझौता कराता है या फिर दोष के मुताबिक दोनों को ही सजा देता है। तो अच्छा होता कि माननीय योर आनर द्वारा दोषी पुलिस वालों पर कार्यवाही के साथ तत्समय ही प्रथमदृष्टया दोषी वकीलों के सम्बंध में उचित धाराओं में मुकदमा दर्ज करके कार्यवाही करने के आदेश दिये गये होते।

कल दिल्ली के हजारों पुलिस वालों का गुस्सा यूं ही नहीं भड़क उठा था। सरेआम अपमान, उसके बाद एकतरफा फैसला और उसके बाद सत्ताधारी पार्टी (जिसके गृह मंत्रालय के अधीन दिल्ली पुलिस आती है) के वकील प्रवक्ता द्वारा वकीलों की गुंडई को जायज ठहराने की कोशिश ने भी आग में घी डालने का काम किया।

समस्या आज की नहीं है। भारत की आजादी की लड़ाई में जनता के सभी वर्गों का समान योगदान था लेकिन आजादी के बाद सत्ता के शीर्ष पर बैरिस्टर लोगों ने कब्जा कर लिया। उसके बाद पूरी व्यवस्था ही इस तरह की बनायी गयी कि लगातार अनंतकाल तक इनका पोषण होता रहे। वकील संगठित हैं और उनमें से ही कई आगे जाकर जज बनते हैं, इसीलिये वह जजों पर दबाव बनाकर मनमाफिक निर्णय कराने में भी सक्षम हैं। भारत मे वर्तमान में जज पद चंद परिवारों की जागीर बन चुका है और उनके आसपास उन्हीं के नाते-रिश्तेदार वकीलों का गिरोह है जो पूरी व्यवस्था को अपनी मर्जी से नचा रहा है।

भारत में न्याय में देरी सबसे बड़ी समस्या है, लेकिन आजादी के बाद से आजतक वकीलों के किसी संगठन ने कभी न्याय में देरी के विरोध में कोई विरोध प्रदर्शन किया हो तो बताइये। आखिर इनसे ज्यादा भला इस समस्या के समाधान के बारे में कौन जानता है.? वास्तव में ये वकील नहीं बल्कि सही अर्थों में #विधि_व्यवसायी हैं जो जजों के साथ मिलकर पूरे देश की आम जनता के इंसाफ पर कुंडली मारे बैठे हैं।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस केहर ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि वकील अनैतिक फैसले लेने के लिये जजों को धमकाते हैं। दिल्ली की घटना के बाद जस्टिस ढींगरा ने भी स्पष्ट कहा कि वकीलों ने अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर कानून को अपने हाथ में लिया है।

सबको पता है कि (हर बार की तरह) इस मामले में भी पुलिस की हार होगी। पुलिस वाले सरकारी नौकर हैं, अनुशासित बल के सदस्य हैं और उन पर वर्दी की बंदिशें हैं। अधिकांश पुलिस कर्मी निम्न मध्यमवर्ग से आते हैं और नौकरी ही उनकी आजीविका का एकमात्र साधन है, उन्हें जहर का घूंट पीकर भी ड्यूटी पर वापस जाना ही होगा। लेकिन तमाम सत्ता संस्थानों के शीर्ष पर बैठे लोगों के लिये यह घटना एक #खतरे_की_घंटी जरूर है जिसे जितनी जल्दी सुन-समझ लिया जायेगा, लोकव्यवस्था के लिये उतना ही अच्छा होगा।

Wednesday, October 9, 2019

सेकुलरिज्म

अजान दो, खुल कर दो..मस्जिद से दो, मंदिर से दो, पूजा पण्डाल से दो, गौशाला से दो, अस्तबल से दो, शूकर बाड़े से दो..हमें कोई ऐतराज नहीं।

यह सेक्युलर भारत है, सबको बराबर की आजादी है। जिसका जहां मन करेगा वहां नमाज पढ़ेगा, जहां से मन करेगा अजान देगा, जहां मन करेगा, कुर्बानी देगा. इसमें किसी को कोई परेशानी नहीं।

लेकिन एक शंका है। जो अक्सर तुम गंगा-जमुनी तहजीब की बात कहते हो, उसमे ये दोनों नदियां ही हैं न.? तो तय कर लिया है तुमने, कि तुम कौन वाली नदी हो.? तुम गंगा हो या यमुना.? तुम ही बता दो पहले तो ठीक रहेगा, काहे से कि जो बचेगा हम उसी को मान लेंगे कि हम वही हैं।

लेकिन फिर एक दिक्कत होगी। अगर जो बचेगा वह हम होंगे, तब यह भी तय हो जायेया कि हम भी हैं। और अगर हम भी होंगे तब तो बिना हमारे यह संस्कृति दजला-फरात वाली ही हो जायेगी। वैसे दजला-फरात वाली भी कहीं से तुम्हारी नहीं थी, क्योंकि तब तो तुम पैदा भी नहीं हुए थे। खैर, अब तो तुम पूरी दुनियां को ही अपनी जागीर समझते हो.!

भूल गया था (यह भी तुम्हारी संगत का असर है जो हम खुद को सदियों तक भूले रहे), बात हो रही थी कि गंगा-जमुना में हम कौन हैं.? या दोनों ही तुम हो.? तुम ही तुम..केवल तुम.!

अगर हमें भी हमारी पहचान बचाये रहने देने की कृपा करो तो मेरी इल्तिजा है कि बराबरी के सिद्धांत के अनुसार हमें भी इजाजत दो कि हम भी मस्जिद भांगड़ा कर सकें, वहां भंडारा कर सकें, वहां कीर्तन कर सकें, शंख बजा सकें..

लेकिन तुम्हें यह सब पसन्द नहीं आयेगा और हो सकता है कि मेरी इस हिमाकत के बदले तुम मेरी गर्दन ही कतर डालो। क्योंकि गर्दन कतरना तुम्हारी फितरत है, बहुतों की कतर चुके हो, तो मेरी क्या औकात.? पर..तुम्हें अपने ही खुदा का वास्ता..ये सेक्युलरिज्म का फर्जी पाठ पढ़ाना बंद कर दो प्लीज..

दुर्गा-पूजा पण्डाल में नमाज/अजान देना जायज और नुसरत जहां का वहां जाना गैर-इस्लामी.! इतनी बेशर्मी लाते कहां से हो यार.?!

Friday, June 7, 2019

रमजान और शांतिदूत और हम

ढाई साल की मासूम बच्ची ट्विंकल शर्मा को रमजान के पाक(?) महीने में एक शांतिदूत रोजेदार मुहम्मद जाहिद ने बलात्कार कर मार दिया। उसकी आंखें नोचकर निकाल लीं, उसके हाथ पैर काट दिये, उसके गुप्तांगों में चाकू से वार किये, उसका पेट फाड़ दिया..फिर उसके शव को कुत्तों के खाने के लिए फेंक दिया।

विश्वास नहीं होता कि कोई मनुष्य इतना वीभत्स आचरण कैसे कर सकता है.? लेकिन वह तो मनुष्यता से ऊपर उठ चुका था, शांतिदूत था न..

ट्विंकल की पीएम रिपोर्ट के कुछ प्रमुख बिंदु उस शांतिदूत जाहिद द्वारा मासूम ट्विंकल के साथ किये गये पैशाचिक आचरण को स्वतः स्पष्ट करते हैं-

⭕ बच्ची के शरीर मे छोटी व बड़ी आंत मिली ही नहीं।
⭕ बच्ची के शरीर मे किडनी मिली ही नहीं।
⭕ यूरिनरी ब्लैडर मिला ही नहीं।
⭕ जेनिटल्स मिले ही नहीं।
⭕ बच्ची की आंखें थी ही नहीं।
⭕ बच्ची के हाथ-पैर उसकी मृत्यु से पूर्व ही काटे गये थे।

यह सिर्फ और सिर्फ मजहबी कट्टरता से परिपूर्ण जघन्य अपराध है जिसकी जड़ में इन शन्तिदूतों के अंदर बैठी हिन्दू विरोधी मानसिकता है, लेकिन हमारे देश का मेन स्ट्रीम मीडिया मौन है। क्यों.? क्योंकि हत्यारा शांतिदूत कौम का है और बच्ची हिन्दू है। हमारी तथाकथित सेक्युलर मीडिया के लिये सेक्युलरिज्म हिंदुओं के विरुद्ध शांतिदूतों द्वारा किये जा रहे इन अपराधों से बढ़कर है, इसीलिये ऐसे हर मौके पर मीडिया मुंह फेरकर बैठ जाता है। यही मीडिया गुड़गांव में एक शांतिदूत को थप्पड़ मारने और पिटाई की झूठी कहानी को प्राइम टाइम स्लॉट देकर हफ्ते भर चलाकर हिंदुओं को असहिष्णु दिखाकर उन्हें अपराधबोध से ग्रस्त करने में लग जाता है।

सोचने वाली बात यह भी है कि शन्तिदूतों द्वारा हिंदुओं के प्रति ऐसी जघन्य अपराधों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। देखना है कि हिन्दू समाज कब चेतेगा और एकजुट होकर ऐसे हिन्दू विरोधी आचरण व अपराधों के विरुद्ध मुखर प्रतिक्रिया देगा.?

सरकार, पुलिस, प्रशासन और न्यायपालिका तो घटना हो जाने के बाद ही कुछ कर सकते हैं। हिन्दू समाज की ओर से आने वाले त्वरित तीखे प्रतिकार का भय ही ऐसी घटनाओं को घटित होने से रोक सकता है। मुर्गे और बकरी आदि मारकर इसीलिये खाये जाते हैं क्योंकि वे प्रतिकार नहीं करते। शेर और बाघ को मारकर इसलिये नहीं खाया जाता क्योंकि वे प्रबल प्रतिकार करते हैं। हम बकरी से शेर कब बनेंगे, देखना है।

Thursday, May 9, 2019

मुगलिस्तान बनने के कगार पर ममता का वेस्ट बंगाल..

अमेरिका से आयी वेस्ट बंगाल के बारे में ऐसी खौफनाक रिपोर्ट, जो हर राष्ट्रवादी भारतीय के रोंगटे खड़े कर देगी..

कभी भारतीय संस्कृति व अस्मिता का प्रतीक माने जाने वाले बंगाल की वर्तमान दशा किसी से छिपी नहीं है। हिन्दुओं के विरुद्ध साम्प्रदायिक षडयंत्र तो वहां लंबे समय से चल रहे हैं, अब तो हिंदुओं के त्यौहार मनाने तक पर रोक लगायी जानी शुरू हो गयी है।

प्रसिद्ध अमेरिकी पत्रकार जेनेट लेवी ने गहन अध्ययन के बाद अपने लेख में सप्रमाण दावा किया है कि "भारत से अलग होकर वेस्ट बंगाल जल्द बनेगा एक अलग इस्लामिक देश।"

लेवी ने लिखा है कि कश्मीर के बाद अब बंगाल में गृहयुद्ध शुरू होने वाला है, जिसमें बड़े पैमाने पर हिन्दुओं को कत्ल किया जायेगा और भारत से अलग मुस्लिम देश की मांग की जायेगी। स्पष्टतः भारत का एक और खूनी विभाजन होगा और यह ममता बनर्जी की सहमति से होगा। जेनेट लेवी ने अपने लेख में इस दावे के पक्ष में तमाम तथ्य भी दिये हैं।

उन्होंने लिखा है कि “बंटवारे के समय भारत के हिस्से वाले पश्चिमी बंगाल में मुसलमानों की आबादी 12 प्रतिशत ही थी, जबकि पाकिस्तान के हिस्से में गये पूर्वी बंगाल में हिंदुओं की आबादी करीब 30 प्रतिशत थी। आज पश्चिम बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या 27 प्रतिशत हो चुकी है, कुछ जिलों में तो यह 63 प्रतिशत तक हो गयी है। दूसरी ओर बांग्लादेश में हिंदू जनसंख्या 30 से घटकर केवल 8 प्रतिशत ही रह गयी है।”

जेनेट का यह लेख ‘अमेरिकन थिंकर’ मैगजीन में छपा है। यह लेख उन सारे देशों के लिये एक स्पष्ट चेतावनी है, जो अपने देश के दरवाजे मुस्लिम शरणार्थियों के लिये खोल रहे हैं।

जेनेट लेवी ने सटीक विश्लेषण करते हुए लिखा है कि "किसी भी समाज में जब मुसलमानों की आबादी 27 प्रतिशत हो जाती है तब वह शरिया कानून लागू करने और अपने लिये अलग इस्लामी देश बनाने का काम शुरू कर देते हैं और इसके लिये सबसे पहले गैर मुस्लिमों का कत्लेआम किया जाता है, पश्चिम बंगाल इसका सबसे ताजा उदाहरण है।" लेवी आगे लिखती हैं- "ममता बनर्जी के लगातार चुनाव जीतने का कारण वहां के मुसलमान ही हैं, बदले में ममता उनके हित की नीतियां बनाती है। ममता ने वेस्ट बंगाल में सऊदी अरब से फंड पाने वाले 10 हजार से ज्यादा मदरसों को मान्यता दे दी है और उनकी डिग्री को सरकारी नौकरी में मान्य कर दिया है, इन सारे ही मदरसों में वहाबी कट्टरता की शिक्षा दी जाती है और गैर मुस्लिमों से नफरत की बातें बतायी जाती हैं।"

जेनेट ने आगे लिखा है- "ममता ने मस्जिदों के इमामों के लिए तरह-तरह के वजीफे भी घोषित किये हैं, जबकि हिन्दू मंदिरों और संस्थाओं को दी गयी सुविधाओं में भारी कटौती की है। यही नहीं, ममता ने वेस्ट बंगाल में एक 'इस्लामिक सिटी' बसाने का प्रोजेक्ट भी शुरू किया है। पूरे वेस्ट बंगाल में मुस्लिम मेडिकल कालेज, टेक्निकल और नर्सिंग स्कूल खोले जा रहे हैं जिनमें मुस्लिम छात्रों को ही सस्ती शिक्षा मिलेगी। मुसलमान नौजवानों को मुफ्त साइकिल से लेकर लैपटॉप तक बांटने की स्कीमें चल रही हैं जबकि बेहद गरीबी में जी रहे लाखों हिंदू परिवारों को ऐसी किसी योजना का फायदा नहीं दिया जाता।"

जेनेट ने स्पष्ट रूप से इन सारी समस्याओं के लिये इस्लाम को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने लिखा है कि "कुरान में ही यह खुलकर कहा गया है कि दुनिया में इस्लामिक राज स्थापित हो। इसीलिये दुनिया भर में संख्या बढ़ने के साथ ही मुस्लिम लोग अपने कानून और इस्लामिक देश के एजेंडे पर काम करने लगते हैं। वेस्ट बंगाल में 2007 में पहली बार मुस्लिम संगठनों ने इस्लामी ईशनिंदा (ब्लासफैमी) कानून की मांग शुरू की थी, तब तस्लीमा नसरीन को वहां से जाना पड़ा था। 2013 में कुछ कट्टरपंथी मौलानाओं ने अलग ‘मुगलिस्तान’ की मांग शुरू कर दी, इस सिलसिले में दंगे हुए जिनमें सैकड़ों हिंदुओं के घर व दूकानें लूटी गयीं और कई मंदिरों को भी तोड़ दिया गया। इन दंगों के दौरान सरकार द्वारा पुलिस को स्पष्ट आदेश दिये गये कि वह दंगाइयों के खिलाफ कोई भी कठोर कदम न उठाये।"

लेख में आगे बताया गया है कि "हिंदुओं को भगाने के लिये सिर्फ दंगे ही नहीं होते, जिन जिलों में मुसलमानों की संख्या ज्यादा है, वहां के मुसलमान बाकायदा मीटिंग करके हिंदू कारोबारियों का बायकॉट करते हैं। मालदा, उत्तरी दिनाजपुर और मुर्शिदाबाद आदि जिलों में कोई भी मुसलमान हिंदुओं की दूकानों से सामान नहीं खरीदता। यही वजह है कि वहां से बड़ी संख्या में हिंदुओं का पलायन होना शुरू हो चुका है, कश्मीरी पंडितों की ही तरह यहां से भी हिन्दुओं को अपने घर और कारोबार छोड़कर दूसरी जगहों पर जाना पड़ रहा है। यह वो जिले हैं, जहां हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं।"

इसके आगे जेनेट ने लिखा है कि "ममता बनर्जी ने तो अब बाकायदा आतंकवाद समर्थकों को संसद में भेजना तक शुरू कर दिया है। जून 2014 में ममता बनर्जी ने अहमद हसन इमरान नाम के एक कुख्यात जिहादी को अपनी पार्टी के टिकट पर राज्यसभा सांसद बनाकर भेजा था जो प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी का सह-संस्थापक रहा है। हसन इमरान पर आरोप है कि उसने शारदा चिटफंड घोटाले का पैसा बांग्लादेश के जिहादी संगठन जमात-ए-इस्लामी तक पहुंचाया ताकि बांग्लादेश में दंगे भड़काये जा सकें। इसके विरुद्ध अभी भी एनआईए और सीबीआई की जांच चल रही है, इसके पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से भी रिश्ते होने के आरोप हैं।"

तो..अब अति सतर्क हो जाने का समय है, इन 'आसमानी किताब' के अनुयायियों से और ममता जैसे नेताओं से भी। सतर्क रहिये, सुरक्षित रहिये..

जेनेट लेवी का पूरा लेख यहां पढ़ा जा सकता है- http://www.americanthinker.com/articles/2015/02/the_muslim_takeover_of_west_bengal.html

Sunday, May 5, 2019

श्रीलंका आतंकी हमला और भारत

श्रीलंका में हुए आतंकी हमलों का भारत पर प्रभाव..

आतंकी हमलों के बाद श्रीलंका ने बहुत ही कठोर कदम उठाये हैं, वहां मस्जिद और मदरसों को बैन कर दिया है। ये इमारतें तो रहेंगी पर खाली रहेंगी, इनमें कोई भी गतिविधि नहीं होगी। पूरे श्रीलंका में लगभग 500 लोगों को गिरफ्तार किया गया है जिनकी #सामुदायिक_पहचान लंका सरकार द्वारा नहीं बतायी गयी है। कुछ पता नहीं कि ये अब कहां हैं और वापस अपने घरों को जा पायेंगे भी या नहीं।

श्रीलंका अब #Full_Detoxification प्लान कर रहा है अर्थात #Ethnic_Cleansing जैसा म्यांमार ने किया था और इसमें वह किसी भी अंतरराष्ट्रीय संस्था- मानवाधिकार आयोग या UN की भी परवाह करने के मूड में नहीं हैं।

जाहिर है दबाव बढ़ने पर इन #अवांछित_शांतिदूतों का पलायन भारत के दक्षिणी राज्यों की ओर होगा और यहां तो उन्हें अपने आगोश में लेने के लिये तमाम लोग बाहें फैलाये आतुर हैं, जैसा कि पूर्वोत्तर भारत के जनसांख्यिकीय संतुलन को बरबाद करने की नीयत से बांग्लादेश और रोहिंग्या से आने वाले #कोढ़_जनसमुदाय के मामले में हो चुका है।

याद रखिये, #आसमानी_किताब में निर्धारित लक्ष्यों में सबसे बड़ा और अप्राप्त लक्ष्य आज भी #गजवा_ए_हिन्द ही है और श्रीलंका में हुए हमलों का एक मकसद इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये #आसमानी_कीड़ों को भारत में घुसाना भी है ताकि #गजवा_ए_हिन्द के एक चरण #Plan_Southern_India को पूरा किया जा सके।

शुक्र मनाइये कि वर्तमान में भारत में #रामसेतु के अस्तित्व तक को नकार देने और उसे तोड़ने का आदेश देने वाली नहीं, बल्कि ऐसी सरकार है जो इन खतरों को जानती-समझती है और इनसे निबटने में सक्षम भी है।

Wednesday, May 1, 2019

बनारसी दंगल

Dismissal of a Central or State Government employee on grounds of corruption or disloyalty, operates as a disqualification against contesting an election for five years. He is required to submit a certificate from the organization to the effect that he was not dismissed on these two grounds, but in Varanasi dismissed constable Tej Bahadur Yadav has not submitted any such certificate.
Why do some people think that he should be dealt differently simply coz he is contesting against Modi ji.? Law has to be applied equally against everybody.

Tuesday, April 30, 2019

बनारसी दंगल

दो साल पहले #दालफ्राई के लिए पगलाकर पूरी दुनिया में भारतीय सेना की बेइज्जती कराने और Summary Court Martial से दोषसिद्ध होकर बर्खास्त होने वाले #तेज_बहादुर_यादव की शौर्यगाथा संक्षेप में-
 1. BSF में होने के बावजूद यह घोर अनुशासनहीन था। 2010 में इसने अपने सीनियर आफिसर पर रायफल तान दी थी, जिसके लिये उसका कोर्ट मार्शल हुआ और इसे 89 दिन की दलेल मिली थी। तब इसके परिवार और बच्चों पर तरस खाते हुए इसे बर्खास्त नहीं किया गया था।
 2. यह भयंकर दारूबाजी (Chronic Alchoholism) का मरीज था, इसका इलाज भी कराया गया था।
 3. मेहनत और खतरनाक ड्यूटी से बचने के लिए यह अक्सर Catageory Down (यह मेडिकल टर्म है, जो जवान की मेड़िकल अवस्था बताता है) कराके मजे मारता था। इसकी जांच करायी गयी तो पाया गया कि वह सैन्य टास्क पूरा करने में शारीरिक और मानसिक रुप से पूर्ण स्वस्थ है।
 4. इसे BOPs (Sensitive Border Out Post) पर महज 10 दिन के लिए प्रतिनियुक्त किया गया था। पोस्ट दुर्गम स्थान पर थी जहां कैंटीन की सुविधा सम्भव ही नहीं थी। इसी दौरान इसने सोशल मीडिया पर #बिना_तड़के_वाली_दाल और पराठा वाली वीडियो पोस्ट कर पूरे विश्व को दिखाया कि भारतीय सेना को ऐसा खाना मिलता है और भारतीय सैनिक भूखे मर रहे हैं।
 5. इसके पहले ही सितंबर 2016 में इसने VRS के लिये आवेदन कर दिया था और 31 जनवरी 2018 को उसे VRS मिलने वाली भी थी। पर जाते-जाते भी इसने भारतीय सेना की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नुकसान पहुंचाने का दुष्प्रयास किया, जिस पर 30 जनवरी को उसकी VRS रद्द कर कोर्ट ऑफ इंक्वारी शुरु की गयी। इंक्वायरी में पाया गया कि-
👉 फेसबुक पर इसके 39 सक्रिय फेक एकाउंट थे जिनमें तमाम आपत्तिजनक पोस्ट थीं। आखिर एक सैन्यकर्मी के लिये इतने सारे फेसबुक एकाउंट्स की क्या जरूरत थी.?
👉 इसके फेसबुक एकाउंट में इसके 3000 फ्रैंड थे जिनमें 500 के लगभग पाकिस्तानी थे। भारत की सेना में कार्यरत और कश्मीर जैसी जगह पर पोस्ट व्यक्ति की पाकिस्तान के लोगों से मित्रता न सिर्फ हैरत में डालती है बल्कि उसे संदिग्ध भी बनाती है, पता नहीं उनमें कितने आइएसआइ के लोग होंगे। 👉 यह ऑनड्यूटी दो मोबाइल रखता था और सोशल मीडिया पर Location & Pictures पोस्ट कर सैन्य बल की SOP (Standard Operating Procedure) का उल्लंघन करता था।
👉 निःसंदेह तेज बहादुर किन्हीं और लोगों का #मोहरा था जो उसके माध्यम से भारत और भारतीय सेना के विरुद्ध कई लक्ष्य साधना चाह रहे थे, किन्तु सब फेल हो गया और इसे #बर्खास्त कर दिया गया।
👉 भारतीय सेना का #दोषसिद्ध_अपराधी अब सेटिंग के तहत #सैनिक_आक्रोश के नाम पर फिर से #लांच कर दिया गया है, वह भी उस शख्सियत के विरुद्ध जिसने महज 5 वर्ष में भारतीय सेना को हर तरह की सुविधा एवं क्षमता से लैस कर उसकी आन बान शान को ऐतिहासिक बुलन्दी पर पहुंचाया है।
★ सेना की आस्तीन के इस सांप और देश के दुश्मन को बनारस से प्रत्याशी बनाकर #गठबंधन देश और जनता को क्या संदेश देना चाहता है, यह तो जनता ही बेहतर समझ और समझा पायेगी।