Wednesday, October 9, 2019

सेकुलरिज्म

अजान दो, खुल कर दो..मस्जिद से दो, मंदिर से दो, पूजा पण्डाल से दो, गौशाला से दो, अस्तबल से दो, शूकर बाड़े से दो..हमें कोई ऐतराज नहीं।

यह सेक्युलर भारत है, सबको बराबर की आजादी है। जिसका जहां मन करेगा वहां नमाज पढ़ेगा, जहां से मन करेगा अजान देगा, जहां मन करेगा, कुर्बानी देगा. इसमें किसी को कोई परेशानी नहीं।

लेकिन एक शंका है। जो अक्सर तुम गंगा-जमुनी तहजीब की बात कहते हो, उसमे ये दोनों नदियां ही हैं न.? तो तय कर लिया है तुमने, कि तुम कौन वाली नदी हो.? तुम गंगा हो या यमुना.? तुम ही बता दो पहले तो ठीक रहेगा, काहे से कि जो बचेगा हम उसी को मान लेंगे कि हम वही हैं।

लेकिन फिर एक दिक्कत होगी। अगर जो बचेगा वह हम होंगे, तब यह भी तय हो जायेया कि हम भी हैं। और अगर हम भी होंगे तब तो बिना हमारे यह संस्कृति दजला-फरात वाली ही हो जायेगी। वैसे दजला-फरात वाली भी कहीं से तुम्हारी नहीं थी, क्योंकि तब तो तुम पैदा भी नहीं हुए थे। खैर, अब तो तुम पूरी दुनियां को ही अपनी जागीर समझते हो.!

भूल गया था (यह भी तुम्हारी संगत का असर है जो हम खुद को सदियों तक भूले रहे), बात हो रही थी कि गंगा-जमुना में हम कौन हैं.? या दोनों ही तुम हो.? तुम ही तुम..केवल तुम.!

अगर हमें भी हमारी पहचान बचाये रहने देने की कृपा करो तो मेरी इल्तिजा है कि बराबरी के सिद्धांत के अनुसार हमें भी इजाजत दो कि हम भी मस्जिद भांगड़ा कर सकें, वहां भंडारा कर सकें, वहां कीर्तन कर सकें, शंख बजा सकें..

लेकिन तुम्हें यह सब पसन्द नहीं आयेगा और हो सकता है कि मेरी इस हिमाकत के बदले तुम मेरी गर्दन ही कतर डालो। क्योंकि गर्दन कतरना तुम्हारी फितरत है, बहुतों की कतर चुके हो, तो मेरी क्या औकात.? पर..तुम्हें अपने ही खुदा का वास्ता..ये सेक्युलरिज्म का फर्जी पाठ पढ़ाना बंद कर दो प्लीज..

दुर्गा-पूजा पण्डाल में नमाज/अजान देना जायज और नुसरत जहां का वहां जाना गैर-इस्लामी.! इतनी बेशर्मी लाते कहां से हो यार.?!

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