Wednesday, June 30, 2021

भारतीय राजनीति की घटिया शतरंजी_चालें..

हम सभी को (चाहे कान्वेंट से पढ़े हों या सरकारी प्राइमरी स्कूल में) पहली कक्षा से ही एक बात जरूर पढ़ायी गयी है कि #भारत शताब्दियों तक विदेशियों का #गुलाम रहा है और यह ऐतिहासिक तथ्य भी है कि अंततः हमें 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली थी। अब आजादी में किनका कितना योगदान या प्रयास था, यह फिर कभी..

आज चर्चा कर रहा हूं सदियों की गुलामी और आजादी के 70 सालों में देश के साथ खेली गयी राजनीतिक_शतरंज की चालों के घटिया परिणामों की, पढ़िये और समझने की कोशिश करिये-

1. विदेशी लुटेरे और आक्रांता देश के आदर्श बन गये और हमारे अपने महापुरुष समाजविरोधी..

2. दान-दक्षिणा ढकोसला हो गया और जजिया जायज..

3. मीना बाजार लगवा कर अपनी हवस के लिये कुंवारी लड़कियों की छंटनी करने वाला अकबर_महान हो गया और लोक कल्याण के लिये रासलीला रचाने वाले श्रीकृष्ण व्यभिचारी..

4. मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम दलित_विरोधी हो गये और हजारों निर्दोष महिलाओं का कत्लेआम करवाने वाला मोइनुद्दीन चिश्ती गरीबनवाज..

5. लुटेरे मुगल महान भारतीय बन गये और मूल भारतीय काफिर..

6. यज्ञोपवीत और उपनयन संस्कार ढकोसला बन गये और जन्मदिन पर मोमबत्ती बुझाना परम्परा..

7. कुल वंश हीन नहरू और खानवंशी पहले गांधी फिर यज्ञोपवीत धारी ब्राह्मण बन गये और भारतीय जनता बेवकूफ..

8. मोमिन असली कश्मीरी बन गये और कश्मीरी पंडित शरणार्थी..

9. बांग्लादेशी बंगाली बन गये और असल बंगाली बाहरी..

10. सैनिकों के हत्यारे और पत्थरबाज आंदोलनकारी बन गये और भारतीय सेना हत्यारी..

11. टुकड़े_टुकड़े_गैंग वाले देशभक्त बन गये और राष्ट्रवादी भक्त..

12. चिता की लकड़ी पर्यावरणीय चिंता बन गयी और दफनाने में बर्बाद होने वाली भूमि जन्मसिद्ध मजहबी हक..

13. दीपावली का धुवां पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला बन गया और बकरीद पर नालियों में बहता बेगुनाह जानवरों का खून पर्यावरण रक्षक..

14. राखी में इस्तेमाल किया गये ऊन से भेड़ को चोट पहुंची और बकरीद के नाम पर कत्ल की जा रही भेंड़ बकरियां धार्मिक स्वतंत्रता..

15. धर्मविशेष का तुष्टीकरण धर्मनिरपेक्ष हो गया और समानता की बात करना कम्युनल..

16. आरएसएस जैसा राष्ट्रवादी संगठन आतंकवादी बन गया और आईएसआईएस, हुर्रियत, ओसामा जी, हाफिज साहेब वगैरह शांति के अग्रदूत..

17. भारत_माता_की_जय सांप्रदायिक हो गया और भारत_तेरे_टुकडे_होंगे फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन..

18. #】फूट_डालो_राज_करो नियम बन गया और सबका_साथ_सबका_विकास जुमला..

शतरंजी चालें तो बहुत हैं, लेकिन एक तथ्य और जान लीजिये-

नानक जी से पहले कोई सिख नहीं था, 
जीसस से पहले कोई ईसाई नहीं था,
मुहम्मद से पहले कोई मुसलमान नहीं था, 
ऋषभदेव से पहले कोई जैन नहीं था,
बुद्घ से पहले कोई बौद्ध नहीं था 
और कार्ल मार्क्स से पहले कोई वामपंथी नहीं था.. 
लेकिन राम से पहले, कृष्ण से पहले, अत्रि, यमदग्नि, अगस्त्य, कणाद, पतंजलि तथा याज्ञवलक्य से पहले भी सनातन वैदिक धर्म था 
और आज से कहीं ज्यादा विस्तृत था..

सोचियेगा.. आखिर सनातन के मूल विश्वगुरु भारत में यह अनर्थ क्यूं और कैसे संभव हुए.? और अगर समझ लें, तो कृपया अब से भी संभलने का प्रयास करियेगा..💐

जय_हिन्द

Wednesday, June 23, 2021

धर्मनिरपेक्ष_भारत में जजिया और खरज..

सौभाग्य से अब सभी को पता है कि देश में तमाम मस्जिदों के इमामों को सरकार की ओर से प्रतिमाह सेलेरी दी जाती है। लेकिन क्या आपको यह पता है कि ऐसा क्यूं है और धर्मनिरपेक्ष_भारत में मस्जिदों के इमामों को हमारे टैक्स से वेतन क्यूं दिया जा रहा है.?

ध्यान से पढ़ियेगा..

1989 में देश की 743 मस्जिदों के इमामों ने सुप्रीम_कोर्ट में रिट दायर की, कि वह मजहब की तरक्की के लिये काम करते हैं और समाज के एक बड़े तबके को मजहब के बारे में बताते-सिखाते हैं, नमाज अदा करवाते हैं। लेकिन बदले में उन्हें कोई मेहनताना नहीं मिलता है, सरकार मेहनताने के रूप में उन्हें तनख्वाह दे।  

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार सहित सभी राज्यों के वक्फ_बोर्डों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा..

केंद्र और कुछ राज्यों के वक्फ बोर्डों ने दलील दी- "चूंकि इनके और हमारे बीच कोई मालिक और कर्मचारी वाला सम्बन्ध नहीं है, इसलिये हम इन्हें तनख्वाह नहीं दे सकते.."
कर्नाटक वक्फ बोर्ड ने दलील दी- "चूंकि ऐसा कोई इस्लामी कानून और परम्परा नहीं है, इसलिये इनको तनख्वाह नहीं दी जा सकती.."
पंजाब वक्फ बोर्ड जिसके अंतर्गत हिमाचल और हरियाणा की मस्जिदें भी आतीं थीं, ने उत्तर दिया- "हम तो पहले से ही इनको तनख्वाह दे रहे हैं और प्रतिमाह मेडिकल एलाउंस भी दे रहे हैं.."

लम्बी सुनवाई के बाद 23 मई 1993 को धर्मनिरपेक्ष और समानता की बात करने वाले देश की काबिल सुप्रीम_कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार को आदेश दिया- "देश की सभी मस्जिदों के स्थायी और अस्थायी इमामों को 1 दिसम्बर 1993 से उनकी योग्यता अनुसार वेतन दिया जाये और इसके लिये छह महीने के अंदर पे_स्केल तय कर ली जाये। यदि इसमें ज्यादा समय लगता है तो इनको 1 दिसम्बर 1993 से एरियर भी देय होगा.." न पता हो तो जान लें कि तनख्वाह के हकदारों की योग्यता उनकी शरीयत, कुरान और हदीस के बारे में जानकारी के आधार पर तय होती है। सबसे काबिल इमाम आलिम होता है, उससे नीचे का इमाम हाफिज, उससे नीचे का इमाम नाजराह और सबसे नीचे मुअज्जिन। मुअज्जिन वो होता है, जिसकी ड्यूटी सुबह-सुबह और दिन में पांच बार लाउडस्पीकर पर चिल्ला कर सबको नमाज के लिये बुलाने की होती है।

मार्च 2011 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस_कमेटी ने राज्यपाल को ज्ञापन दिया था कि इस समय भारत में 28 लाख मस्जिदें हैं जिनमें से 3.30 लाख उत्तर प्रदेश में हैं, प्रदेश सरकार अभी भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार यहां के इमामों को नये पेस्केल से वेतन नहीं दे रही है। 2011 में ही 28 लाख मस्जिदें, केंद्रीय वक्फ बोर्ड और 30 राज्य वक्फ बोर्ड और ऊपर से हज_सब्सिडी अलग.. सोचिये, कितना पैसा प्रति माह दे रही होगी सरकार इस मद में और क्यूं.?

क्या इसलिये कि मस्जिद में नमाज के बाद ये सरकारी तनख्वाह पाने वाले इमाम कायदे से सिखा सकें कि काफिरों से कैसे नफरत करनी है.? 
या इसलिये कि कश्मीर वगैरह में हुर्रियत जैसी दुकानें चलती रहें.? 
या फिर इसलिये कि शांतिदूतों के बच्चों को प्रतिवर्ष 4800 करोड़ रुपयों का अतिरिक्त वजीफा दिया जा सके, ताकि वह कम्प्यूटर पर काफिरों को मिटाने और गजवा_ए_हिन्द को कामयाब करने के आधुनिक तरीके ढूंढ सकें.? 
या इसलिये की जामिया और एएमयू से "भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह.." जैसे नारे बेरोकटोक लगते रहें.?

लेकिन गलत लिख गया मैं..

सरकार कौन सा अपनी जेब से देती है.? इनको देने के लिये वो तो आखिरकार हमसे ही वसूलती है जजिया की तरह.. और ये जजिया_खरज तो हम इनकी खैरियत के लिये इल्तुतमिश से औरंगजेब तक देते चले आ रहे हैं।

अंग्रेज इतिहासकार Mannuci ने लिखा था- "शाहजहां और औरंगजेब के समय जजिया और खरज की वसूली इतनी सख्त थी कि न दे पाने की स्थिति में फौज हिन्दू_काश्तकार को उठा कर ले जाती थी और उन्हें गुलामों के बाजार में बेंच दिया जाता था.. उस काश्तकार के पीछे पीछे रोती-बिलखती उसकी पत्नी को भी पति के साथ ही बेंच दिया जाता था..  जजिया से बचने के दो ही रास्ते थे, या तो इस्लाम कबूल कर लो या मौत.." औरंगजेब तो खुश होकर बताता था कि जजिया न दे पाने की वजह से तमाम काफिरों को इस्लाम कुबूल करना पड़ा है.."

कितना घृणित_मजाक है कि विश्व के सर्वश्रेष्ठ_प्रजातंत्र और सर्वश्रेष्ठ लिखित संविधान से संचालित धर्मनिरपेक्ष_राष्ट्र में हम आज भी उत्तर से लेकर दक्षिण तक मस्जिद के इमामों की तनख्वाह के लिए जजिया दे रहे हैं, ऊपर से मुगलकाल की तर्ज पर आज भी सरकारें हमारे मंदिरों को लूट रहीं हैं।
 
लेकिन, ऐतिहासिक तथ्य यह भी है कि अपने तमाम जलाल और लम्बी-चौड़ी फौज के बावजूद जब दिल्ली में जजिया के विरोध में हिन्दू एकजुट और उग्र हुए, तब औरंगजेब की इतनी फट गयी थी कि उसके बाद वह कभी भी बाहर नमाज पढ़ने के लिये जामा मस्जिद तक नहीं गया..उसे लाल किले में ही नयी मोती_मस्जिद बनवानी पड़ गयी थी।

तो.. समझिये, सोचिये और समय रहते जाग जाइये..

नोट: जो पोस्ट को काल्पनिक समझ रहे हैं उनके लिये सुप्रीम_कोर्ट के उस फैसले का लिंक नीचे दे रहा हूं, खुद पढ़ लें..

https://indiankanoon.org/doc/1929233/

🚩 🇮🇳 #जय_हिन्द 🇮🇳 🚩

Monday, June 21, 2021

भारत का पहला सशक्त_विपक्ष

स्वतंत्रता प्राप्ति के 70 वर्षों बाद अंततः श्री राहुल_जी के क्रांतिकारी मार्गदर्शन में ऐसा सशक्त और सकारात्मक विपक्ष देश को मिल ही गया, जिसने विगत 7 वर्षों में केन्द्र को एक भी घोटाला नहीं करने दिया, उलटे केंद्र और भाजपा पर निरंतर दबाव बनाकर उनके हर प्रयास को तेजी दे रहा है। 

पता है, आप नहीं मानोगे। कुछ उदाहरण दे रहा हूं-

सरकार ने कहा- "राफेल लायेंगे..!"
विपक्ष ने अपना कर्तव्य निभाते हुए प्रश्नों की झड़ी लगा दी-
"कब लाओगे.?"
"कैसे लाओगे.?"
"ला के दिखाओ..!"

अंततः विपक्ष के दबाव में सरकार को राफेल लाना ही पड़ा।

सरकार ने कहा- "'CAA लायेंगे..!"
विपक्ष ने फिर अपना कर्तव्य निभाया-
"कब लाओगे.?"
"कैसे लाओगे.?"
"ला के दिखाओ..!"

अंततः सरकार को CAA लाना ही पड़ा।

सरकार ने कहा- ''370 हटायेंगे..!"
विपक्ष खुशी में शोर मचाने लगा-
''कब हटाओगे.?"
"कैसे हटाओगे.?"
"हटा के दिखाओ..!"
और सरकार को 370 हटानी पड़ी।

सरकार ने कहा- ''राममंदिर बनवायेंगे..!"
विपक्ष उत्साहित हो गया-
''कब बनवाओगे.?"
"कैसे बनवाओगे.?"
"बनवा के दिखाओ..!"
और राम_मंदिर बनने लगा..

आप मानोगे नहीं, लेकिन सरकार को ऐसे अनेक कार्य जल्दी-जल्दी वर्तमान सशक्त विपक्ष के दबाव में ही करने पड़े हैं।

तो.. मेरा मोदीजी, उनकी सरकार (और भक्तों से भी) अनुरोध है कि इन सभी कार्यों का #श्रेय लेना बन्द करें। देशहित के इन सभी कार्यों का वास्तविक_श्रेय श्री राहुल_जी के मार्गदर्शन और विपक्ष को ही है, जो लगातार "अपने वायदे कब पूरे करोगे.?" का नारा लगाता रहा है।

अभी भी जनसंख्या_नियंत्रण और समान_नागरिक_संहिता सहित कई महत्वपूर्ण कार्य शेष हैं। देशहित के सारे आवश्यक कार्य शीघ्रातिशीघ्र पूर्ण हों, इसके लिये अब हमें दृढ़ निश्चय कर लेना है कि यही विपक्ष 2034 तक अवश्य रहे।

जय_हिन्द

Saturday, June 19, 2021

दरगाह.. हजरत का बाल या बल.?!

एक और hidden_story.. 

26 दिसम्बर, 1963 की घटना है- आसमानी_किताब के नुमाइंदों के पैगम्बर की दाढ़ी का एक बाल चोरी हो गया। अब मुझे नहीं पता कि वो दाढ़ी रखते भी थे या नहीं, लेकिन अगर दाढ़ी रखते थे तो फिर दाढ़ी का बाल भी रहा ही होगा..

खैर.. वह बाल कभी उनके वारिसान कर्नाटक लाये थे (कब, क्यूं और कैसे लाये थे, पता नहीं) और फिर महान(?) मुगलों के सबसे न्यायप्रिय(?) शासक औरंगजेब द्वारा इस बाल को दुनिया की जन्नत कश्मीर की खूबसूरती में और बढ़ोत्तरी करने के लिये वहां भेजकर एक दरगाह बनवायी गयी थी, जिसका नाम हजरत_बल (वैसे सही नाम तो हजरत_बाल होना चाहिये था) दरगाह रखा गया।

हां, तो मुद्दे पर आते हैं कि नबी का बाल चोरी हो गया..

पूरे भारत में यह खबर आग की तरह फैल गयी और हर जगह (आदतन) मुसलमान सड़कों पर आ गये। पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान सहित हर जगह दंगे शुरू होने लगे, हिन्दू मंदिरों और पूजा स्थलों में आगजनी और तोड़फोड़ होने लगी। तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारी लाल नन्दा ने फरवरी 1964 मे बताया था कि उन दंगों में 29 हिन्दू मारे गये थे और हजारों घायल हुए थे, सही संख्या का अनुमान स्वयं लगायें..

बालप्रिय_नहरू उस समय भारत के प्रधानमंत्री थे, तो  बाल गायब होने और मुस्लिम आक्रोश से उनकी हिलने लगी.. आनन-फानन तब के खुफिया चीफ बीएन मलिक और लालबहादुर शास्त्री जी तो तब के सबसे योग्य नेता थे, को वह बाल ढूंढने के महत्वपूर्ण ऑपरेशन पर कश्मीर भेज दिया गया।

नौ दिनों तक पूरा कश्मीर सड़कों पर रहा.. फिर दसवें दिन 4 जनवरी 1964 को #कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शमसुद्दीन ने घोषणा की कि "आज हमारे लिये ईद जैसा खुशी का दिन है, हमारे हुजूर का बाल खोज लिया गया है.." पर दिक्कत यह थी कि खोजा गया बाल हजरत हुजूर का ही है, यह कैसे माना जाये.? तो नहरू सरकार ने बाल की पहचान के लिये एक आलिम-फाजिल अरबी_मौलवी को सरकारी खर्चे पर कश्मीर बुलाया। 

मौलाना ने देर तक उस बाल को गौर से परखने के बाद फरमाया- "माशाल्लाह्ह.. यह तो रसूल-ए-पाक का वही मुकद्दस दाढ़ी_का_बाल है.." हुजूम ने अल्लाह-हू-अकबर का नारा लगाया, कश्मीर और पूरे देश में खुशी छा गयी, मिठाइयां बंटने लगीं और देश पर से एक और बंटवारे की विपदा टल गयी..

हम तो दिल से तारीफ और रश्क भी करेंगे उस मौलाना से, जिसकी पारखी_नजर ने साढ़े_तेरह_सौ साल पहले मर चुके इंसान की दाढ़ी के एक बाल को भी पहचान लिया था, काश ऐसे माहिर नासा या इसरो के पास भी होते..

अब सोचिये..

भारत के संविधान की प्रस्तावना में इसे धर्मनिरपेक्ष बताया गया था, तो किसी पैगम्बर की दाढ़ी का बाल खोजने में देश के खुफिया प्रमुख, पूरा सरकारी अमला और शास्त्री जी जैसे महान नेता को भी लगा देना क्या देश की धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ नहीं था.? 

और जो समाज हमारी मूर्तिपूजा को हराम बताकर हमेशा उसका विरोध करता रहा है, उसके लिये दाढ़ी का एक बाल इतना महत्वपूर्ण था कि उसके लिये सड़कों पर दंगे करने लगा और सभी उस बाल के आगे सजदा भी करते हैं.. क्या उस समाज से कभी भी सहिष्णुता की उम्मीद की जा सकती है.?

सच्चाई यह है कि सिर्फ मुस्लिम ही नहीं, बल्कि दुनिया में किसी भी धर्म के लोग अपने धर्म के प्रतीकों और मान्यताओं से कभी कोई समझौता नहीं करते। धर्मनिरपेक्षता और सर्वधर्म समभाव का पाठ आदिकाल से सिर्फ हिन्दुओं को पढ़ाया जाता रहा है और हमने इसी का खामियाजा भी उठाया है, क्यूंकि हम भूल गये हैं कि हमारे पवित्र ग्रंथों ने हमें वसुधैव_कुटुम्बकम के साथ ही शठे_शाठ्यम_समाचरेत की भी शिक्षा दी है..

तो.. समझिये, सोचिये और जाग जाइये.. 👍

जय_हिन्द

Tuesday, June 15, 2021

एमिली शेंकल बोस और नहरू सरकार

आज देश की आजादी से पहले की एक जर्मन महिला Emilie_Schenkl की कथा सुना रहा हूं..

नहीं पता, आपमें से कितनों ने ये नाम सुना है.? वैसे अधिकांश ने नहीं ही सुना होगा और इसमें दोष आपका नहीं है.. क्योंकि इस नाम को भारत के इतिहास से खुरच कर निकाल फेंका गया था और हर सम्भव प्रयास किया गया था कि इसे कोई भी जान न सके..

एमिली शेंकल ने वर्ष 1937 में भारत मां के एक लाडले बेटे से विवाह किया था। विवाह के बाद एमिली को मात्र 3 वर्ष ही पति के साथ रहने का अवसर मिला था, फिर उन्हें और नन्हीं सी बेटी को छोड़ पति देश के लिये लड़ने चला गया.. इस वादे के साथ कि "पहले देश को स्वतंत्र करा लूं, फिर तो सारा जीवन तुम्हारे साथ ही बिताना है.." पर दुर्भाग्य से ऐसा न हो सका और 1945 में एक संदिग्ध विमान दुर्घटना में एमिली के पति लापता हो गये..

जी हां, मैं बात कर रहा हूं भारत की आजादी के पुरोधा नेताजी_सुभाषचन्द्र_बोस की धर्मपत्नी एमिली_शेंकल_बोस की, जिन्हें विवाह के मात्र छः वर्षों बाद से ही पति की अनन्त प्रतीक्षा का दुख झेलना पड़ा था। उस समय एमिली युवा थीं और यूरोपीय संस्कृति के हिसाब से उनके लिये दूसरा विवाह कर लेना सहज था, पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। एक भारतीय विधवा की तरह सारा जीवन एमिली ने अपनी बेटी पर निछावर कर दिया और तारघर क्लर्क की मामूली नौकरी कर उसे पाला-पोसा, किसी से कुछ नहीं मांगा।

दो साल बाद 1947 में भारत आजाद भी हो गया। कांग्रेस की सरकार बनी और नहरू देश के प्रधानमंत्री (चाहे जैसे भी) बन गये। नहरू और सबको पता था कि एमिली देश के उन्हीं अमर सपूत नेताजी_सुभाष की विधवा हैं, जो 1939 में उन्हीं की कांग्रेस के #अध्यक्ष चुने गये थे और देश की आजादी में जिनका योगदान पूरी कांग्रेस पार्टी से कई गुना ज्यादा था.. लेकिन किसी ने भी एमिली की सुध नहीं ली। एमिली ने भी एक योद्धा की पत्नी होने का मान रखते हुए भारत के इन #कपूतों से कभी कोई याचना नहीं की।

भारत का स्वयम्भू_राजपरिवार जाने क्यूं इतना भयभीत रहा इस महिला से, कि जिसे ससम्मान यहां बुला देश की नागरिकता देनी चाहिये थी, उसे कभी भारत का वीजा तक नहीं दिया गया। नहरू और उनके कुनबे को भय था कि देश इस विदेशी_बहू को सर आंखों पर बिठा लेगा, इसीलिये उन्हें एमिली बोस का इस देश में पैर रखना अपनी सत्ता के लिये चुनौती लगा होगा, वैसे मेरी दृष्टि से यह भय सही भी था।

जीवन के तमाम संघर्षों के बावजूद एमिली ने अपनी- नेताजी की पुत्री- अनिता_बोस को उच्च शिक्षा दिलायी किन्तु भारत आने की इच्छा मन में लिये ही अंततः  मार्च 1996  में उन्होंने अपने जीवन का त्याग कर दिया।

कांग्रेC और उनके जन्मजात अंधचाटुकार पत्तलकार और इतिहासकार जो विदेशी मूल की एन्टोनियो_माइनो को देश_की_बहू का तमगा देते नहीं थकते हैं, उसकी कुर्बानियों(?) का बखान करने में अपने पिछवाड़े तक का पसीना निकाल देते हैं.. उनसे कोई पूछे- क्या कभी भी उन्होंने श्रीमती बोस की चर्चा की है.? और क्या एंटोनियो माइनो की तुलना किसी भी तरह से श्रीमती एमिली शेंकल बोस से की जा सकती है.? 😢 

सोचियेगा..

#जय_हिन्द

Saturday, June 12, 2021

सन_आफ_शमसुद्दीन..

बोध_कथा.. 

महाराजा रणजीत सिंह के समय की बात है.. एक ग्रामीण की गाय घास चरते-चरते बाग में चली गयी और उसके सींग पेड़ों के बीच में फंस गये। सींग निकालने के प्रयास में गाय जोर से रंभाने लगी तो भीड़ इकट्ठी हो गयी, लोग तरह तरह के उपाय बताने लगे।  

तभी एक व्यक्ति आया, गाय को देखते ही बोला- "इसमें कौन सी बड़ी बात है.? सींग काट दो, गाय आसानी से निकल जायेगी..!" यह सुनते ही भीड़ में सन्नाटा छा गया, क्योंकि कोई भी गाय को हानि नहीं पहुंचाना चाहता था। 

पेड़ काटकर गौमाता को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया.. लेकिन कुछ दिन बाद गौ के सींग काटने वाली बात महाराजा रणजीत सिंह तक भी पहुंच गयी। महाराजा ने उस व्यक्ति को तलब किया और पूछा- "क्या नाम है तेरा.?"

उस व्यक्ति ने अपना परिचय दुलीचन्द पुत्र सोमचंद बताया। उसकी मां ने भी यही परिचय देते हुए बताया कि दुलीचंद का पिता युद्ध में मुसलमानों से लड़ते हुए मारा गया था..

किन्तु महाराजा को बात खटक रही थी, वह संतुष्ट नहीं हो पा रहे थे.. उन्होंने गुप्त रूप से पता कराया तो जानकारी हुई कि उस महिला के अवैध सम्बन्ध उसके पड़ोसी शमसुद्दीन से थे और दुलीचंद उसके पति सोमचंद की नहीं बल्कि शमसुद्दीन की औलाद है।

कथा_सार..

DNA_टेस्ट हमेशा ही जरूरी नहीं है। यदि कोई सनातनी हिन्दू, हिन्दुत्व से घृणा कर रहा है तो समझ जाइये कि कोई लोचा जरूर हो गया है.. क्योंकि कोई भी शुद्ध सनातनी हिन्दू कभी भी अपनी संस्कृति, अपनी मातृभूमि और अपनी गौमाता के अनिष्ट, अपमान या उनके पराभव को किसी भी रूप में सहन नहीं कर सकता।

आज हमारे आसपास समाज में जाने कितने सन_आफ_शमसुद्दीन अपना भेष बदल कर सन_आफ_सोमचन्द बने घूम रहे हैं। इनमें राजनेता, पत्रकार, और नयी प्रजाति के ऐक्टिविस्ट भी हैं जिनके नाम तो हिन्दू हैं लेकिन असल में वह सन_आफ_शमसुद्दीन हैं, जिनका मकसद सिर्फ और सिर्फ सनातन संस्कृति को मिटाना है।

अब समय आ गया है कि हम जल्द से जल्द ऐसे दुलीचंदों की ही नहीं बल्कि इन्हें पैदा करने वाले शमसुद्दीनों की भी पहचान कर लें, ताकि इन्हें इनके अंजाम तक पहुंचाया जा सके और हमारा देश, सभ्यता और संस्कृति इनसे सुरक्षित रहे..

जय_हिन्द🚩

Thursday, June 10, 2021

कांग्रेस का हिन्दुत्व_दमन..

बात 1955 की है.. भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित(?) नहरू के निमंत्रण पर सऊदी अरब के सुल्तान शाह_सऊद भारत आये थे। 4 दिसम्बर 1955 को वह दिल्ली पहुंचे, पूरे शाही अंदाज में उनका स्वागत-सत्कार किया गया और उनके दिल्ली से धर्म नगरी वाराणसी जाने के लिये भारत सरकार ने शाही_कोच के साथ एक स्पेशल ट्रेन की व्यवस्था की।

यहां तक कुछ भी गलत नहीं था.. किसी भी राष्ट्रप्रमुख का उचित स्वागत और सम्मान होना ही चाहिये, उनका भी हुआ। कांग्रेस का #निकृष्ट कर्म तो इसके बाद आता है..

शाह सऊद जितने दिन वाराणसी में रहे उतने दिनों तक बनारस की सभी सरकारी इमारतों पर कलमा_तैय्यबा लिखे हुए झंडे लगाये गये थे और वाराणसी में जिन-जिन रास्तों/सडकों से शाह सऊद को गुजरना था, उन सभी में पड़ने वाले मंदिरों और मूर्तियों को परदे से ढकवा दिया गया था। यह था कांग्रेस का घृणित हिन्दुत्व_दमन..

शाह की इस यात्रा को लेकर उस समय के मशहूर शायर नजीर_बनारसी ने इस्लाम की तारीफ और हिन्दुओं पर तंज कसते हुए एक शेर कहा था-

"अदना सा गुलाम उनका, 
गुजरा था बनारस से..
मुंह अपना छुपाते थे, 
काशी के सनमखाने..!"

सोचिये, क्या आज मोदीयुग में किसी भी बड़े से बड़े तुर्रमखां के लिये ऐसा किया जा सकता है.? आज बड़े-बड़े ताकतवर देशों के प्रमुख भारत आते हैं और उनको वाराणसी भी लाया जाता है। लेकिन अब मंदिरों और मूर्तियों को उनसे छुपाने के लिये ढका नहीं जाता, बल्कि उन विदेशियों को गंगा_आरती दिखायी जाती है, उनसे पूजा करायी जाती है और अब उसी सऊदी अरब के सुल्तान की बेगम श्रीराम की मूर्ति अपने सर पर उठाकर स्थापना कराती है..

और कितने अच्छे_दिन चाहिये मूढ़मति_हिन्दुओं.?! 😡

 जय_हिन्द

Wednesday, June 9, 2021

गर्म पानी और हिन्दू मेढक..

पेटा वाले बुरा मान जायेंगे, लेकिन जीव_विज्ञान के विद्यार्थियों के लिये यह एक सामान्य प्रयोग हुआ करता था-

एक बड़े बर्तन में पानी डालिये और उसमें एक #मेढक छोड़ दीजिये, जाहिर है मेढक मजे से तैरने लगेगा। अब बर्तन के नीचे आग जला दीजिये। पानी गरम होने लगेगा, लेकिन मेढक परेशान नहीं होगा.. वह अपने स्वाभाविक गुण के कारण गर्मी के मुताबिक ही अपने शरीर को सन्तुलित करने लगेगा.. 

लेकिन धीरे-धीरे जब पानी उबलने लगेगा तो यह मेढक की शारीरिक सहनशक्ति से ऊपर की स्थिति होगी और तब मेढक अपनी प्राणरक्षा के लिये उछल कर बर्तन से बाहर निकलने की कोशिश करेगा। लेकिन अब उसमें इतनी ऊर्जा ही नहीं बची होगी कि वह छलांग लगा सके, क्योंकि अपनी सारी ऊर्जा तो वह पहले ही खुद को पानी के बढ़ते हुए तापमान के अनुकूल बनाने में खर्च कर चुका होगा। परिणामतः
कुछ देर हाथ-पांव चलाने के बाद मेढक मर कर पानी में पलट जायेगा।

प्रश्न यह है कि मेढक की मृत्यु का वास्तविक कारण क्या है.?

बुद्धिभोजी_वैज्ञानिक उत्तर देंगे कि पानी के बढ़ते तापमान से ही मेढक की मृत्यु हुई है, लेकिन क्या यह उत्तर सही है.?

वस्तुतः मेढक की मृत्य उसके उछल कर बाहर निकल जाने का निर्णय लेने में हुई देरी के कारण हुई है। वह अंतिम क्षण तक खुद को गर्म होते माहौल में ढाल कर सुरक्षित रहने का प्रयास करता रहा था और उसके इस निरर्थक प्रयास के चलते ही अंत में उसके पास इतनी शक्ति नहीं बची, कि वह गर्म पानी से निकल कर भाग भी सके। 

लगभग यही स्थिति आज भारत के हिन्दू की भी है। सेकुलरों और लिबरलों द्वारा दिये गये भ्रामक ज्ञान के चलते हिन्दू अभी भी स्वयं को सेकुलरी वातावरण में ढाल कर सुकून भरा जीवन जीने का छद्म_विश्वास पाले बैठा है और सामाजिक सद्भाव, अहिंसा, शांति, गंगा-जमुनी तहजीब जैसे आभासी भावों को प्राथिमकता देकर सही निर्णय नहीं ले पा रहा है।

कहां हैं वो हिन्दू, जो धार्मिक आधार पर हुए बंटवारे के बाद भी उस समाज के अनकूल ढलने के भ्रामक विश्वास पर वहीं रुके रहे थे.? क्या हुआ था उन कश्मीरी ब्राह्मणों के साथ जो कश्मीरियत के विश्वास पर सह_अस्तित्व का भ्रम पाले थे.? क्या इनका अस्तित्व भी मेढक की तरह पानी उबल जाने के कारण ही समाप्त हुआ माना जायेगा.?

कृपया स्वयं को गर्म होते पानी के अनुकूल बनाने के प्रयास में अपनी ऊर्जा व्यर्थ न करें और अतिशीघ्र निर्णय कर लें कि इससे अधिक गर्म पानी अब बर्दाश्त नहीं है। अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये समय रहते सचेत और सन्नद्ध हो जायें।

बाकी, मर्जी आपकी.. अगर आप मेढक ही बने रहना चाहते हैं, तो खुशी से इंतजार करिये। पानी तो गर्म हो ही रहा है...

जय_हिन्द