Thursday, December 3, 2020

सब्सिडी वाले करोड़पति किसान

किसान_आंदोलन..😢

सर्वप्रथम यह स्पष्ट कर दूं कि मैं किसान परिवार से ही हूं और खेती_किसानी के बारे में एक आम किसान से कहीं ज्यादा जानता हूं..और इसीलिये सीना ठोंक कर लिख रहा हूं..

पहले तो किसानों को मिलने वाली सरकारी मदद (सब्सिडी) के बारे में-

● बीज_खरीद पर सब्सिडी
● कृषि_उपकरण खरीद पर सब्सिडी
● खाद के लिये सब्सिडी
● ट्रेक्टर और ट्राली खरीद पर सब्सिडी
● पशुधन खरीद पर सब्सिडी
● खेती में अन्य खर्च के #कर्ज पर सब्सिडी
● जैविक_खेती पर सब्सिडी
● सोलर एनर्जी पर सब्सिडी
● सिंचाई के लिये बिजली/डीजल पर सब्सिडी
● बागवानी पर सब्सिडी
● सिंचाई पाईप लाईन पर सब्सिडी
● स्वचालित कृषि पद्धति अपनाने पर सब्सिडी
● जैव उर्वरक खरीद पर सब्सिडी

इसके बाद-

● फसल बीमा
● किसान क्रेडिट कार्ड
● नई तरह की खेती करने वालो को फ्री प्रशिक्षण
● कृषि विषय पर पढ़ने वाले बच्चों को अनुदान

फिर..
★ सूखे पर मुआवजा।
★ बाढ़ पर मुआवजा।
★ टिड्डी-कीट जैसी आपदा पर मुआवजा।
★ शौचालय निर्माण फ्री
★ पीने का साफ पानी फ्री
★ घर से गन्दे पानी की निकासी फ्री
★ बच्चों को पढ़ने खेलने की ट्रेनिंग फ्री

■ साल में 6000 रुपये खाते में
और
■ और..सरकार बदलते ही सारे कर्ज माफ 👍

अगर इतने के बाद भी इस देश के किसानों को सरकार से अपना हक नहीं मिल रहा, तो कब और कैसे मिलेगा ये परमात्मा भी नहीं बता सकेंगे।

कितनों को पता है कि जिस MSP के खत्म हो जाने का हौवा खड़ा कर के पंजाब और हरियाणा के तथाकथित किसान आज आंदोलन कर रहे हैं, वह MSP कभी भी देश के सभी किसानों के लिये एक समान नहीं रही है.? 

इस साल भी यूपी बिहार के किसानों को अपना धान 1100 से 1300 रू. प्रति क्विंटल में बेचना पड़ा है जबकि पंजाब और हरियाणा के किसानों को प्रति क्विंटल धान के 1888 रू. मिले हैं, मतलब इस पर भी सब्सिडी.?!

👉 यह सत्य है कि पंजाब हरियाणा के किसान गेहूं और धान की पैदावार देश के अन्य किसानों से अधिक करते हैं, लेकिन कटु सत्य यह भी है कि इस गेहूं और धान की गुणवत्ता निम्न कोटि की होती है। यह अपना गेंहू 1800 में सरकार को बेंचकर खुद 2400 में मध्यप्रदेश का गेहूं खरीदकर खाते हैं, खुली प्रतिस्पर्धा में इनकी उपज कोई नहीं खरीदेगा। 

यही भय इनको नये कृषि कानूनों का विरोध करने पर मजबूर कर रहा है क्योंकि नये कृषि कानून किसान को अपनी उपज कहीं भी खुले_बाजार में बेंचने की सुविधा देते हैं और बाजार में तो घटिया माल नहीं बल्कि क्वालिटी ही टिकती और बिकती है..

इन सब्सिडी वाले करोड़पति_किसानों से कहीं बेहतर तो देश के तमाम दिहाड़ी मजदूर, रेहड़ी वाले, छोटे वकील, पटरी दुकानदार, पढ़े-लिखे बेरोजगार, ड्राइवर और कचरा बीनकर पेट पालने वाले हैं जो रोज मेहनत करते हैं, लेकिन न रोते हैं न सरकार से सब्सिडी मांगते हैं न ही ब्लैकमेलिंग करने के लिये धरना और आंदोलन करते हैं..😢

जो सच है, वही लिखा है..किसी को बुरा लगे तो #SORRY..😢

Wednesday, November 11, 2020

कांग्रेस और न्यायपालिका का दुर्योग

नरेन्द्र_मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब केंद्र की कांग्रेस सरकार ने उनको गुजरात में ही घेरने के लिये न्यायपालिका के साथ एक घिनौना_प्रयोग किया था।

किसी भी राज्य के हाईकोर्ट में जज बनने के लिए दो योग्यताएं होनी जरूरी होती हैं- 1. किसी हाईकोर्ट में 10 साल तक वकालत की प्रैक्टिस किया हो और 2.  किसी राज्य का महाधिवक्ता या सहायक महाधिवक्ता हो।

कांग्रेस सरकार ने हाईकोर्ट जज के लिये निर्धारित दूसरी_योग्यता को सीढ़ी बनाया। बिहार में लालू यादव की पार्टी राजद के एक नेता आफताब_आलम को बिहार सरकार का महाधिवक्ता और हिमांचल प्रदेश में कांग्रेसी मुख्यमंत्री वीरभद्र_सिंह की बेटी अभिलाषा_कुमारी को हिमांचल सरकार का महाधिवक्ता बना दिया गया फिर कुछ समय बाद ये आफताब आलम साहब और अभिलाषा कुमारी जी अद्भुत_कोलोजियम_सिस्टम से गुजरात हाईकोर्ट में जज बना दिये गये। इनके अतिरिक्त इलाहाबाद हाईकोर्ट के कुख्यात जस्टिस_माथुर को भी गुजरात हाईकोर्ट का जज बना कर भेज दिया गया।

अब कांग्रेस के असली खिलाड़ी तीस्ता_जावेद_सीतलवाड़ और शबनम_हाशमी जैसे लोग मैदान में आ गये। केंद्र की मनमोहन सरकार द्वारा तीस्ता जावेद सीतलवाड़ के एनजीओ सबरंग को 80 करोड़ और शबनम हाशमी के एनजीओ को भी 60 करोड़ से ज्यादा अनुदान मोदी के विरुद्ध माहौल बनाने और कानूनी पचड़े में फंसाने के लिये दिया गया।

अब खेल देखिये- तीस्ता जावेद सीतलवाड़ और शबनम हाशमी मोदी के खिलाफ जो भी याचिका करते, वह या तो जस्टिस आफताब आलम की बेंच में जाती थी या जस्टिस अभिलाषा कुमारी या फिर जस्टिस माथुर की बेंच में जाती थी जिसपर यह लोग इनके मनमाफिक फैसले सुना देते थे। मोदी के विरुद्ध इनके द्वारा दायर एक भी याचिका गुजरात हाईकोर्ट के किसी दूसरे जस्टिस की बेंच में नहीं जाती थी।

फिर गुजरात हाईकोर्ट के फैसलों के खिलाफ गुजरात सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील करने लगी, तब कांग्रेस सरकार ने एक कमाल और किया- जस्टिस आफताब आलम को गुजरात हाईकोर्ट से प्रमोट करके सुप्रीम_कोर्ट का जज बना दिया गया। फिर वहां भी यही खेल शुरू हो गया कि शबनम हाशमी और तीस्ता जावेद की याचिका पर गुजरात हाईकोर्ट के फैसलों पर दायर की गयी गुजरात सरकार की हर याचिका सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ जस्टिस आफताब आलम की ही बेंच में जाती थी।

वो तो भला हो गुजरात हाईकोर्ट के जज रहे जस्टिस_एमबी_सोनी का जिन्होंने गुजरात से दिल्ली तक बैठे इन कांग्रेसी जजों के तमाम फैसलों का विश्लेषण किया और सुस्पष्ट तथ्यों के साथ एक विस्तृत रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और राष्ट्रपति को भेजकर इन फैसलों की समीक्षा और इसकी जांच कराने का आग्रह किया कि जब सिस्टम के अनुसार कोई याचिका पहले सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में जाती है फिर कंप्यूटराइज्ड तरीके से किसी भी जज की बेंच को रिफर हो जाती है, तब यह कैसे संभव हो रहा है कि गुजरात सरकार और मोदी के खिलाफ जितनी भी याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में की जा रही है वह सारी की सारी जस्टिस आफताब आलम की बेंच में ही जा रही हैं.?

मामला खुल जाने पर थुक्का_फजीहत और राष्ट्रपति व सीजेआई के हस्तक्षेप के बाद अंततः न्यायपालिका में बैठे कांग्रेसी चमचों ने सेरेंडर किया और महाकाल की कृपा से मोदी बेदाग बचे।

आज कांग्रेस_कृपा से बनी महाराष्ट्र सरकार वही चाल-चरित्र अपना चुकी है और अर्णव गोस्वामी के साथ वही पुराना खेल खेल रही है। सेशन से हाईकोर्ट तक ये छद्म_कांग्रेसी सफल भी रहे हैं, लेकिन शायद अब सुप्रीम कोर्ट में कोई जस्टिस आफताब आलम नहीं है, तो..आशा है वहां वही होगा जिसे सही मायने में न्याय कहा जायेगा।

जय_हिन्द

Wednesday, August 5, 2020

राम मंदिर

भूमि_पूजन सम्पन्न हुआ और मंदिर_निर्माण का मार्ग पूर्णतः प्रशस्त हुआ..परन्तु इसी शुभ घड़ी में कुछ शंकाओं का समाधान भी परम आवश्यक है-

अयोध्या में मन्दिर बन किसका रहा है.?

क्या भगवान श्रीराम  का.?

नहीं, श्रीराम तो स्वयं ब्रह्म हैं, शाश्वत हैं, अजन्मा हैं, परमात्म स्वरूप हैं, समस्त चराचर- सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, पृथ्वी, जल, आकाश, अंतरिक्ष, मनुष्य, पशु-पक्षियों, और जगत के कण-कण में व्याप्त हैं। अयोध्या और वहां के अन्य मंदिरों में तो वह हैं ही, समस्त विश्व ही उनका मन्दिर है.. तो उन्हें नवीन मंदिर की क्या आवश्यकता है.?

तो क्या राजा_रामचन्द्र जी का.? 

नहीं, क्योंकि पृथ्वी पर अनेक राजा, बड़े बड़े सम्राट आये और गये, सबको अपने भव्य मन्दिर और प्रासाद यहीं छोड़ कर जाना पड़ा और #राजा_राम ने तो वैसे भी स्वयं के लिये कुछ भी अलग से नहीं रखा था।

तो क्या भाजपा_के_श्रीराम का.?

नहीं, क्योंकि इस मंदिर के लिये विगत 500 वर्षों से लाखों लोगों ने संघर्ष किया है और अपने प्राणों की आहुति दी है और आज भी विश्वभर से करोड़ों करोड़ हिंदू इस मंदिर निर्माण के लिये प्राणपण से जुड़े और जुटे हैं।

तो फिर यह मंदिर बन किसका रहा है.?

वस्तुतः यह मंदिर पुनर्निर्माण है शताब्दियों से रौंदी जा रही हिंदू_अस्मिता का, निरन्तर दमित हिंदू_गौरव तथा आत्मसम्मान का और आतताइयों द्वारा बेरहमी से कुचली गयी उदार सनातनी_गरिमा का..

यह मंदिर हिंदू_पुनर्जागरण का प्रतीक है, हिंदू_पुनरुत्थान की उद्घोषणा है और हिंदू_आत्मविश्वास के पुनः उठकर गगनचुंबी होने का सूचक है। यह अस्ताचलगामी प्राचीन सनातन सभ्यता के पुनः उदय होने का शंखनाद है और कोटि कोटि हिंदू- सिक्ख - जैन - बौद्ध बलिदानियों के लिये श्रद्धांजलि है..

जय_श्रीराम 🙏🏻💐👍🏻

Monday, July 13, 2020

कांग्रेस का अंधा आईना

कहते हैं आईना हमेशा असली शकल ही दिखाता है, मगर आईने को झुठलाना क्या होता है यह कोई कांग्रेस के अघोषित_मुखिया और देश के भविष्य के स्वघोषित_प्रधानमंत्री राहुल गांधी से पूछे..

कांग्रेस उजड़ती जा रही है..पार्टी के न केवल नये बल्कि अब तो पुराने नेता भी बोलने लगे हैं कि अब तो समझो, सनक और पिनक की जगह बुद्धि और विवेक से सोचो और कुछ तो ऐसा करो जिससे डूबती पार्टी थोड़ा बहुत उबर सके, लेकिन राहुल बदलने वाले नहीं। पार्टी उनसे है, वह पार्टी से नहीं इसलिये वो वही करेंगे और कहेंगे जो उनका मन करेगा। भाजपा वाले शायद इसीलिये दुआ करते रहते हैं कि "..न राहुल कभी कांग्रेस को छोड़ें न कांग्रेस राहुल को.."

पिछले एक महीने के राहुल के ट्वीट पढ़ लीजिये..लगभग पूरी दुनिया मान चुकी है कि गलवन प्रकरण में भारत ने चीन को झुका दिया है और कोविड से भी से केंद्र सरकार सभी राज्यों के साथ मिलकर मजबूती से लड़ रही है। लगभग सभी राजनीतिक दल जानते-समझते हैं कि इस समय न तो चीन न ही कोविड, किसी पर भी सरकार के विरूध्द बोलना उचित नहीं है। लेकिन राहुल गांधी.? उनके वक्तव्य तो उनकी अपनी ही पार्टी के नेता_विपक्ष को रास नहीं आते, बाकियों का भगवान ही जाने। सर्जिकल_स्ट्राइक और आर्टिकल_370 के समय भी कई बार राहुल अपने विचित्र बयानों से अपनी ही पार्टी को मुश्किल में डाल चुके हैं।

आज राजस्थान और इसके पहले कर्नाटक और मध्यप्रदेश जिस स्थिति में पहुंचे, उसके लिये  सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व-आलाकमान- ही जिम्मेदार है। आरोप तो हमेशा लगाया गया, लगाया जा भी रहा है कि भाजपा तोड़फोड़ करा रही है लेकिन कांग्रेसी नेताओं में आपसी खींचतान कितनी है ये किसी से छिपा है क्या.? मध्यप्रदेश में कमलनाथ, दिग्विजय और ज्योतिरादित्य के बीच कितनी खाईं थी कांग्रेस का आला कमान अनजान था क्या.? और राजस्थान में सचिन पायलट के घोषित मुख्यमंत्री होने के बाद भी गहलोत को मुख्यमंत्री बनाकर आग में घी आलाकमान ने ही तो डाला है।

कटु यथार्थ यह है कि इंदिरा_गांधी के बाद कांग्रेस में नेतृत्व_क्षमता समाप्त ही हो चुकी है। कोई भी पार्टी सशक्त नेतृत्व तथा स्पष्ट विचारधारा से ही आगे बढ़ती है और कांग्रेस इन दोनों से ही वंचित है और ऐसे में पार्टी को जोड़े रखने का अंतिम मंत्र बचता है- सत्ता..

स्पष्ट दिख रहा है कि कांग्रेस जैसे जैसे सत्ता से दूर होती जा रही है, उसमें और ज्यादा टूट-फूट खुद होती जा रही है जिसके लिये उसका नेतृत्व ही जिम्मेदार है। सचिन पायलट दिल्ली में बैठे हैं और आलाकमान उन्हें मना नहीं पा रहा है, क्या भाजपा ने मना किया है.? ज्योतिरादित्य 10 जनपथ पर टहलते रहे, दरवाजा नहीं खुला, क्या भाजपा ने रोका था.?

हकीकत यह है कि कांग्रेस एक_परिवार की परिधि से बाहर निकल ही नहीं पा रही है न वह परिवार उसे निकलने दे रहा है। राहुल ने लोकसभा चुनाव में अपनी असफलता स्वीकार तो की, लेकिन अब पर्दे के पीछे से रस्सी खींचकर पार्टी को नचाना चाह रहे हैं, सोनिया अस्वस्थ रहती हैं और शायद अपना आखिरी_चुनाव भी लड़ चुकी हैं। प्रियंका के बारे में भी शायद परिवार ने ही फैसला लेने में देर की, वैसे वह भी अब अपना करिश्मा खो चुकी हैं। तो कांग्रेस अब क्या करे.? किसके भरोसे आगे बढ़ने की सोचे.?

राज_परिवार तो शायद अब जागने की स्थिति में नहीं रहा, न ही पार्टी को मुक्त करने की सोचेगा ही..अब पार्टी ही जागे और इन्हें अलग_कर कोई नयी राह, नयी विचारधारा चुने तभी शायद कुछ उम्मीद हो सकती है..!

जयहिन्द 👍

Saturday, June 6, 2020

विनायकी

"मानिषादप्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वती समा।
यत्क्रौंमेकमिथुनादवधी: काममोहितं।।"

यह आदिकवि_वाल्मीकि की प्रथम काव्य_पंक्तियां हैं, जो एक काममोहित क्रौंच पक्षी की निषाद द्वारा हत्या के पश्चात उनके मुख से स्वतः स्फुटित हुई थीं।

युग, काल और मानव मूल्य भी परिवर्तित हो चुके हैं और संभवतः मानव भी दानव में परिवर्तित होता जा रहा है जिसका नवीनतम उदाहरण केरल में विनायकी की हत्या है।

अब यह तो गहन अन्वेषण का विषय है कि उस हथिनी की ऐसी नृशंस_हत्या किन कारणों से हुई। सगर्भा_विनायकी किन लोगों की शांति_भंग कर रही थी.? या उसके सगर्भा हो जाने पर किन लोगों को इतनी अधिक आपत्ति थी.?

विनायकी की इस हत्या से किसी नये वाल्मीकि का उद्भव भले न हो किन्तु अनेक #विनायक अवश्य उत्पन्न होंगे जिनका चरम उद्देश्य उन #दानवों की शांति को #पूर्णतः_भंग करना ही होगा..

#जय_हिन्द

Wednesday, May 20, 2020

हम मजबूर हैं, मजदूर नहीं..

वर्तमान प्रवाह से थोड़ा भिन्न है, पूरा पढ़ने के बाद ही टिप्पणी अपेक्षित है..

पिछले करीब 6-7 हफ्ते से (जब से लाकडाउन शुरू हुआ और दिल्ली सरकार ने अचानक सारे श्रमिकों को दिल्ली से बाहर कर बॉर्डर पर खड़ा कर दिया था), सारे न्यूज चैनल, सोशल मीडिया और हर कहीं एक ही बात की चर्चा है- मजदूर..बस प्रवासी मजदूर..

अब तो ऐसा लगने लगा है कि भारत सिर्फ मजदूरों का देश है और यहां सारी समस्याएं व समाधान इन्हीं से होता है। 

अब कोई मजदूर क्यूं बनता है और फिर उसके बाद प्रवासी मजदूर क्यूं बन जाता है, यह बड़ा जटिल विषय है, इसपर चर्चा फिर कभी। अभी तो मैं इस आग्रह के साथ आया हूं कि देश में इन मजदूरों के अलावा भी और लोग रहते हैं और उन सबकी भी कुछ दिक्कतें-समस्याएं हैं। कृपया उनपर भी ध्यान दें क्योंकि इन मजदूरों के लिये तो सब लगे हैं और एक पार्टी तो पिछले दिनों इनके चक्कर में अपनी ऐतिहासिक नाक भी कटवा चुकी है। 

तो..अब मजदूर अपने घर पहुंच भी जायेगा और मनरेगा जाब कार्ड, राशनकार्ड, मुफ्त के चावल, दाल,  आटा और जनधन खाते के मुफ्त 2000 रुपयों में जी-खा भी लेगा..

अब सोचिये उसके बारे में..

जिसने लाखों का कर्ज लेकर प्राईवेट कालेज से इंजीनियरिंग, एमबीए और डिप्लोमा किया था और बड़ी मुश्किल से किसी प्राइवेट कम्पनी में 8-10 हजार की (ध्यान दीजियेगा, यह मजदूर की कुल मासिक आमदनी से कम ही है) नौकरी पायी थी। या वह जिसने अभी नयी-नयी वकालत शुरू की थी (दो-चार साल तक वैसे भी कोई Client नहीं मिलता, मुश्किल से चार-पांच हजार महीने में हो पाते हैं, वह भी सीनियर की कृपा से)..या वह जो तमाम प्रोफेशनल डिग्री लेकर सेल्स मैनेजर, एरिया मैनेजर (भले ही महीने में 12 हजार ही मिलता हो) का तमगा लिये घूमता था। आप कार या बाइक की एजेंसी पहुंचे नहीं कि लोन दिलाने से लेकर होम डिलीवरी तक के लिये मुस्कुराते हुए बिजनेस सूट में आपके सामने हाजिर..

मैंने (और शायद आपने भी) ऐसे बहुत से  वकील, इंजीनियर, पत्रकार और एजेंट देखे होंगे..अंदर भले ही चड्ढी फटी हो, लेकिन बाहर अपनी गरीबी का प्रदर्शन ये नहीं कर सकते। इनके पास न तो मुफ्त में चावल पाने वाला राशन कार्ड है, न ही जनधन का खाता। देशभक्ति के जोश में गैस की सब्सिडी भी ये छोड़ चुके हैं। ऊपर से (स्टेटस मेंटेन करने के चक्कर में) लोन पर मोटर साइकिल या कार भी ले लिये हैं, तो उसकी किश्त भी देनी होती है ब्याज सहित..और अगर बेटी-बेटा स्कूल जा रहे हैं (सरकारी स्कूल में तो भेजेंगे नहीं, स्टेटस का सवाल है) तो उनकी एक महीने की फीस (बिना स्कूल भेजे ही) उतनी देनी है, जितने में दो लोगों का परिवार महीने भर मजे से खा सकता है। बाकी हारी-बीमारी आ जाये तब तो (इलाज भी तो प्राइवेट में ही कराना है) भगवान ही मालिक है।

अब आज के माहौल में यह वर्ग क्या करे.? फेसबुक पर अपना दर्द भी नहीं लिख सकता (बड़ा आदमी है न), तो बेचारा मनभावन विषय "मजदूर की त्रासदी" पाकर उनकी पीड़ा के नाम पर (वस्तुतः अपनी ही) पीड़ा व्यक्त कर दे रहा है, बिना किसी सहानुभूति की अपेक्षा किये..

यह कटु और निर्मम सत्य है कि IAS और PCS का सपना लेकर रात-रात भर जाग कर पढ़ने वाला छात्र बहुत पहले ही प्रयागराज, दिल्ली और कोटा जैसे शहरों से पैदल ही निकल लिया था, मजदूर के वेश में अपनी पहचान छिपाते हुये.. क्योंकि बहुत पढ़ने के बाद भी वह अपनी गरीबी और "मजबूरी की दूकान" सजाना नहीं सीख पाया था..
तो..थोड़ा ही सही, इनके बारे में भी सोचिये.. 🤔😥
जयहिंद

Friday, January 31, 2020

भटका हुआ गोपाल

कोई #भटका_हुआ_लड़का है, गोपाल! कहीं भीड़ की ओर नली कर के कट्टा दाग दिया है। यूपी का हूं, तो कट्टे की औकात भी बचपन से जानता हूं कि बीस फीट दूर से इससे आदमी क्या चिड़िया भी नहीं मरेगी।

लेकिन देख रहा हूं कि कुछ लोग बहुत भड़के हुए हैं। ये वही लोग हैं जिन्होंने दो सौ लोगों के हत्यारे के लिए आधी रात को कोर्ट खुलवाया था। जिस देश में रोज ही सैकड़ों हत्याएं होती हों, वहां के लिये यह घटना बहुत बड़ी नहीं है, फिर भी इसबार मैं अंदर से कांप गया हूं।

यह किसी एक गोपाल की बात नहीं है, असल में अब #इधर_के_लड़के भी भटकने लगे हैं, यह सोचने वाली बात है। क्योंकि हम कभी भटकने के लिये नहीं जाने गये। हम जाने गये राष्ट्र पर बलि चढ़ने के लिये, हम जाने गये सेवा के लिये, सद्भाव के लिये, स्नेह के लिये, बसुधैव कुटुम्बकम की भावना के लिये..हम जाने गए माता पद्मावती के लिये, बाबा प्रताप के लिये, गौतम के लिये, महाबीर के लिये..हमें गढ़ा था शबरी के राम ने, हमें रचा है सुदामा के कृष्ण ने..फिर हम कैसे भटक सकते हैं?

पर रुकिये, तनिक खोजिये कि यह भटकने का सिलसिला आखिर हमतक पहुंच कैसे गया.? वो कौन हैं वे जिन्होंने भटकने को फैशन बना दिया.? वे कौन लोग हैं जो कल तक हर आतंकवादी को #भटका_हुआ_नौजवान कहकर उसके साथ खड़े हो जाते थे.?

चार दिन नहीं हुए, जब उसी भीड़ को सम्बोधित करते हुए किसी ने देश तोड़ने की खुलेआम प्लानिंग की थी। क्या हुआ.? दो दिन बाद ही #रब्बिश जैसे लोग उसके समर्थन में खड़े हो गये और नेशनल चैनल पर खुलेआम झूठ बोलने लगे कि अरेस्ट नहीं हुआ है, सरेंडर किया है। उसे देशभक्त बताया जाने लगा..

इस देश का एक बड़ा शायर राहत इंदौरी सरेआम चुनौती देते हुए कहता है- "सच में आतंकवादी हो जायें तो क्या होगा.?" कोई उसका विरोध नहीं करता, बल्कि उसे बुद्धिजीवी कहा जाता है। कैसे न बिगड़ें लड़के.?

चालीस वर्षों से पार्टी का झोला ढ़ो रहे लोग टिकट के लिए तरसते रह जाते हैं और #कन्हैया जैसे चार दिन के लौंडे #भारत_विरोधी नारे लगा कर देश भर में चर्चित हो जाते हैं, तो नये लड़के कैसे नहीं भटकेंगे.?

ठीक से देखिये लड़के को, उसके चेहरे पर डर साफ दिख रहा है। यह वो लड़के हैं, जो यह सोच कर डरे हुए हैं कि जब कुछ #औरतें मिल कर राजधानी की एक मुख्य सड़क को महीनों तक बन्द कर सकती हैं तो #पुरुष मिल कर क्या नहीं करेंगे.? यकीन कीजिये, उस लड़के की हरकत भले नाजायज हो, उसका डर #जायज है। कौन हैं वे लोग, जो उसके मन मे डर भर रहे हैं.?

हमारा गोपाल ऐसा नहीं था, हमारे गोपाल की तो #दुनिया दीवानी है। लेकिन याद रखिये, जब आप लगातार एक हिस्से के उपद्रवियों का समर्थन करेंगे तो कभी न कभी दूसरे हिस्से में भी वैसे लोग खड़े होंगे ही होंगे, इसे कोई रोक नहीं सकेगा। उस कट्टे के #विकृत_स्वर की हम-आप चाहे जितनी निंदा कर लें लेकिन अंततः वह प्रतिरोध का ही एक स्वर है जिसके लिये सिर्फ और सिर्फ तुम लोग ही जिम्मेवार हो मेरे देश के #बुद्धिभोजियों..

इसलिये..अब मेरे देश पर दया करो और आतंक को फैशन न बनाओ। हां..हम शांति से जीने वाले लोग हैं और शांति से ही जीना चाहते हैं। हमें शांति से जीने तो दो..

Friday, January 10, 2020

रज्जो की शिकंजी और फिल्मी नचनिये..

JNU में वामी चाचा-चाचियों की चकाचक धुलाई के बाद मुम्बई के सेलिब्रिटीज सक्रिय हैं, कुछ JNU तक भी पहुंचे और बाकी भी अलग-अलग फोरम पर अपने-अपने राग गा रहे हैं। पूरा सोशल मीडिया इनके पक्ष-विपक्ष में खुलबुला रहा है..

इन सब पर बाद में, पहले एक किस्सा सुन लीजिये-

एक गांव में रज्जो नाम की एक महिला रहती थी जो नींबू-चीनी का शर्बत शिकंजी बहुत ही अच्छा बनाती थी। गांव में कोई भी आयोजन हो..शादी विवाह, जन्मदिन या पूजा-पाठ, भंडारा..
रज्जो की शिकंजी हर उत्सव की शान थी।

धीरे-धीरे रज्जो प्रसिद्ध हो गयी और गांव वालों ने उसे गांव का मुखिया बना दिया।

अब, मुखिया बनने के बाद जिम्मेदारी भी आ गयी। लोग-बाग रज्जो के पास अपनी समस्याएं लेकर आते, रज्जो सबको बहुत प्यार से शिकंजी पिलाया करती थी।

एक बार बहुत तेज बारिश हुई और लगभग आधा गांव डूब गया। लोग घबरा कर अपनी मुखिया रज्जो के पास आये और उसे स्थिति की गंभीरता के बारे में बताया, रज्जो ने भी पूरी गंभीरता से उन सबकी बात सुनी। उस दिन उसने ढेर सारी शिकंजी बनायी थी, वह सबको शिकंजी पिलाने लगी..

गांव वाले बहुत गुस्सा हो गये और बोले-  

"यहां हम सबकी जान पर पड़ी हुई है और तुम हमें शिकंजी पिला रही हो.? तुम स्थिति की गंभीरता को क्यों नहीं समझती.?"

"मैं स्थिति की गंभीरता समझ रही हूं, तभी तो आज मैंने इतनी ज्यादा शिकंजी बनायी है.!" रज्जो गंभीरता से बोली। "अब मुझे यही काम आता है, तो मैं वही कर रही हूं। मैंने तो ये आपलोगों से कभी नहीं कहा कि आप मुझे आइकॉन मानो और मुखिया बना दो। आप सबने खुद से मुझे आइकॉन बना रखा है, इसमें भला मेरा क्या दोष है.?"

यही स्थिति आज हमारे देश की भी है। जिन्हें हम अंग्रेजी में सेलिब्रिटी या हीरो_हीरोइन कहते हैं, उस कैटेगरी के लोगों को आज भी गांव-देहात में नचनिया, और भांड कह कर पुकारा जाता है। उनका काम सिर्फ और सिर्फ नाच-गा कर हमारा मनोरंजन करना होता है जिसके बदले में हम उन्हें बख्शीश के तौर पर कुछ पैसे दे देते हैं, इन अंग्रेजी सेलिब्रिटीज को भी हम टिकट के तौर पर पैसों की बख्शीश ही देते हैं।

यह इनका पेशा है, वह इसी की कमाई खाते हैं। और अगर आपके पास उन्हें देने के लिये भरपूर पैसा है, तो आप उन्हें अपने घर की शादी, जन्मदिन या किसी भी फंक्शन में इन्हें अपने घर पर- बेडरूम में भी- बिना कपडों के नचवा सकते हैं..बस बख्शीश दमदार होनी चाहिये..

ऐसे नचनियों और भांडों को अगर हम-आप अपना आइकॉन मानते हैं, तो इसमे उनका क्या दोष.? बलिहारी तो हमारी अपनी बुद्धि की है न.?

आइकॉन..आइकॉन बोल कर हमीं ने इन्हें इतना सर चढ़ा लिया है कि KBC में जो नचनिया देश की महिला राष्ट्रपति का नाम तक नहीं बता पाई थी और अभी CAA वाले मैटर में जो भांड यह तक नहीं बता पाया कि CAA है क्या और वह इसका विरोध क्यों कर रहा है.? वह भी ज्ञान बांटते फिर रहे हैं।

इसलिये, स्वयं पर कृपा करिये और इन नचनियों और भांडों को सीरियसली लेना बन्द कीजिये.. क्योंकि इनकी अपनी कोई आइडियोलॉजी नहीं होती है, पैसे देकर इन्हें कोई भी कहीं भी बुला सकता है।

हमारा देश ऐतिहासिक रूप से अत्यंत समृद्ध है। अपना हीरो_आइकॉन मानने के लिए हमारे पास राम, कृष्ण, अर्जुन से लेकर राणा सांगा, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, विवेकानंद, सुभाष चंद्र बोस , भगत सिंह, वीर सावरकर जैसे हजारों_हजार आइडल हैं।

इन सब को छोड़कर अगर फिर भी हम इन फिल्मी नचनियों और भांडों को अपना आइडल मानते रहेंगे तो फिर शायद भगवान भी हमारा भला नहीं कर पायेंगे।