वर्तमान प्रवाह से थोड़ा भिन्न है, पूरा पढ़ने के बाद ही टिप्पणी अपेक्षित है..
पिछले करीब 6-7 हफ्ते से (जब से लाकडाउन शुरू हुआ और दिल्ली सरकार ने अचानक सारे श्रमिकों को दिल्ली से बाहर कर बॉर्डर पर खड़ा कर दिया था), सारे न्यूज चैनल, सोशल मीडिया और हर कहीं एक ही बात की चर्चा है- मजदूर..बस प्रवासी मजदूर..
अब तो ऐसा लगने लगा है कि भारत सिर्फ मजदूरों का देश है और यहां सारी समस्याएं व समाधान इन्हीं से होता है।
अब कोई मजदूर क्यूं बनता है और फिर उसके बाद प्रवासी मजदूर क्यूं बन जाता है, यह बड़ा जटिल विषय है, इसपर चर्चा फिर कभी। अभी तो मैं इस आग्रह के साथ आया हूं कि देश में इन मजदूरों के अलावा भी और लोग रहते हैं और उन सबकी भी कुछ दिक्कतें-समस्याएं हैं। कृपया उनपर भी ध्यान दें क्योंकि इन मजदूरों के लिये तो सब लगे हैं और एक पार्टी तो पिछले दिनों इनके चक्कर में अपनी ऐतिहासिक नाक भी कटवा चुकी है।
तो..अब मजदूर अपने घर पहुंच भी जायेगा और मनरेगा जाब कार्ड, राशनकार्ड, मुफ्त के चावल, दाल, आटा और जनधन खाते के मुफ्त 2000 रुपयों में जी-खा भी लेगा..
अब सोचिये उसके बारे में..
जिसने लाखों का कर्ज लेकर प्राईवेट कालेज से इंजीनियरिंग, एमबीए और डिप्लोमा किया था और बड़ी मुश्किल से किसी प्राइवेट कम्पनी में 8-10 हजार की (ध्यान दीजियेगा, यह मजदूर की कुल मासिक आमदनी से कम ही है) नौकरी पायी थी। या वह जिसने अभी नयी-नयी वकालत शुरू की थी (दो-चार साल तक वैसे भी कोई Client नहीं मिलता, मुश्किल से चार-पांच हजार महीने में हो पाते हैं, वह भी सीनियर की कृपा से)..या वह जो तमाम प्रोफेशनल डिग्री लेकर सेल्स मैनेजर, एरिया मैनेजर (भले ही महीने में 12 हजार ही मिलता हो) का तमगा लिये घूमता था। आप कार या बाइक की एजेंसी पहुंचे नहीं कि लोन दिलाने से लेकर होम डिलीवरी तक के लिये मुस्कुराते हुए बिजनेस सूट में आपके सामने हाजिर..
मैंने (और शायद आपने भी) ऐसे बहुत से वकील, इंजीनियर, पत्रकार और एजेंट देखे होंगे..अंदर भले ही चड्ढी फटी हो, लेकिन बाहर अपनी गरीबी का प्रदर्शन ये नहीं कर सकते। इनके पास न तो मुफ्त में चावल पाने वाला राशन कार्ड है, न ही जनधन का खाता। देशभक्ति के जोश में गैस की सब्सिडी भी ये छोड़ चुके हैं। ऊपर से (स्टेटस मेंटेन करने के चक्कर में) लोन पर मोटर साइकिल या कार भी ले लिये हैं, तो उसकी किश्त भी देनी होती है ब्याज सहित..और अगर बेटी-बेटा स्कूल जा रहे हैं (सरकारी स्कूल में तो भेजेंगे नहीं, स्टेटस का सवाल है) तो उनकी एक महीने की फीस (बिना स्कूल भेजे ही) उतनी देनी है, जितने में दो लोगों का परिवार महीने भर मजे से खा सकता है। बाकी हारी-बीमारी आ जाये तब तो (इलाज भी तो प्राइवेट में ही कराना है) भगवान ही मालिक है।
अब आज के माहौल में यह वर्ग क्या करे.? फेसबुक पर अपना दर्द भी नहीं लिख सकता (बड़ा आदमी है न), तो बेचारा मनभावन विषय "मजदूर की त्रासदी" पाकर उनकी पीड़ा के नाम पर (वस्तुतः अपनी ही) पीड़ा व्यक्त कर दे रहा है, बिना किसी सहानुभूति की अपेक्षा किये..
यह कटु और निर्मम सत्य है कि IAS और PCS का सपना लेकर रात-रात भर जाग कर पढ़ने वाला छात्र बहुत पहले ही प्रयागराज, दिल्ली और कोटा जैसे शहरों से पैदल ही निकल लिया था, मजदूर के वेश में अपनी पहचान छिपाते हुये.. क्योंकि बहुत पढ़ने के बाद भी वह अपनी गरीबी और "मजबूरी की दूकान" सजाना नहीं सीख पाया था..
तो..थोड़ा ही सही, इनके बारे में भी सोचिये.. 🤔😥
जयहिंद
Very well written Sir. ����
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