भूमि_पूजन सम्पन्न हुआ और मंदिर_निर्माण का मार्ग पूर्णतः प्रशस्त हुआ..परन्तु इसी शुभ घड़ी में कुछ शंकाओं का समाधान भी परम आवश्यक है-
अयोध्या में मन्दिर बन किसका रहा है.?
क्या भगवान श्रीराम का.?
नहीं, श्रीराम तो स्वयं ब्रह्म हैं, शाश्वत हैं, अजन्मा हैं, परमात्म स्वरूप हैं, समस्त चराचर- सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, पृथ्वी, जल, आकाश, अंतरिक्ष, मनुष्य, पशु-पक्षियों, और जगत के कण-कण में व्याप्त हैं। अयोध्या और वहां के अन्य मंदिरों में तो वह हैं ही, समस्त विश्व ही उनका मन्दिर है.. तो उन्हें नवीन मंदिर की क्या आवश्यकता है.?
तो क्या राजा_रामचन्द्र जी का.?
नहीं, क्योंकि पृथ्वी पर अनेक राजा, बड़े बड़े सम्राट आये और गये, सबको अपने भव्य मन्दिर और प्रासाद यहीं छोड़ कर जाना पड़ा और #राजा_राम ने तो वैसे भी स्वयं के लिये कुछ भी अलग से नहीं रखा था।
तो क्या भाजपा_के_श्रीराम का.?
नहीं, क्योंकि इस मंदिर के लिये विगत 500 वर्षों से लाखों लोगों ने संघर्ष किया है और अपने प्राणों की आहुति दी है और आज भी विश्वभर से करोड़ों करोड़ हिंदू इस मंदिर निर्माण के लिये प्राणपण से जुड़े और जुटे हैं।
तो फिर यह मंदिर बन किसका रहा है.?
वस्तुतः यह मंदिर पुनर्निर्माण है शताब्दियों से रौंदी जा रही हिंदू_अस्मिता का, निरन्तर दमित हिंदू_गौरव तथा आत्मसम्मान का और आतताइयों द्वारा बेरहमी से कुचली गयी उदार सनातनी_गरिमा का..
यह मंदिर हिंदू_पुनर्जागरण का प्रतीक है, हिंदू_पुनरुत्थान की उद्घोषणा है और हिंदू_आत्मविश्वास के पुनः उठकर गगनचुंबी होने का सूचक है। यह अस्ताचलगामी प्राचीन सनातन सभ्यता के पुनः उदय होने का शंखनाद है और कोटि कोटि हिंदू- सिक्ख - जैन - बौद्ध बलिदानियों के लिये श्रद्धांजलि है..
जय_श्रीराम 🙏🏻💐👍🏻
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