Thursday, July 15, 2021

पीर की हरी_चादर और खौफजदा_हिन्दू..

आपमें से बहुतों ने किसी न किसी पीर या ख्वाजा की मजार पर हरी_चादर या उसपर पैसे जरूर चढ़ाये होंगे, ये न भी किया हो तो मोहल्ले में घूमते लम्बे_कुर्ते और छोटे_पाजामे वालों की हरी_चादर पर सिक्के तो जरूर ही डाले होंगे। मैं भी पत्नीजी के दबाव में जयपुर जाकर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती उर्फ गरीबनवाज की मजार पर चादर चढ़ाने में उनका सहयोग कर चुका हूं। उस कथा और उसके निहितार्थ पर चर्चा फिर कभी.. फिलहाल पीर, ख्वाजा और सैयद की बात करते हैं।

क्या जानते हैं आप, हम या कोई सामान्य हिन्दू इन पीर, ख्वाजा या सैयद के बारे में.? क्या हमें इन शब्दों के अर्थ या इनकी उत्पत्ति के बारे में भी पता है.? जानिये और समझिये..

भारतवर्ष के लगभग 250 वर्षों के मुस्लिम गुलामी काल में पीर वह राजस्व_अधिकारी होता था, जिसके जिम्मे हिन्दू गावों से लगान और टैक्स (जजिया वगैरह) आदि वसूलने का काम होता था। यह महत्वपूर्ण पद था, पीर की सुरक्षा व्यवस्था इतनी तगड़ी होती थी कि कोई भी उसके 9 गज से करीब नहीं आ सकता था और गांव वालों को नियत स्थान पर पीर के सामने जाकर टैक्स की रकम या सामान रख देना होता था।

जो हिन्दू परिवार टैक्स देने में असमर्थ रहते थे, पीर के सुरक्षा कर्मी उनके परिवार की सबसे सुंदर बहू या बेटी को नंगा करके लाते थे और पूरे गांव के सामने उसके साथ बलात्कार किया जाता था ताकि फिर कोई भी टैक्स देने से मना करने की हिम्मत न करे। इस घिनौने बलात्कार के बाद उस बहू बेटी के नंगे_बदन पर चादर डाल दी जाती थी और गांव के बाकी लोगों को लगान व टैक्स का पैसा उसी चादर पर डालना होता था।

पीर से ज्यादा अधिकार और क्षेत्रफल ख्वाजा के पास होता था, वह पीर से भी ज्यादा अत्याचार लूटखसोट करता था। ख्वाजा से भी ज्यादा अधिकार सैय्यद को मिले होते थे। 

धीरे-धीरे यह प्रथा बन गयी। फिर पीर, ख्वाजा या सैयद जब भी किसी हिन्दू गांव में वसूली के लिये जाते, तब पहले ही उनके लिये गांव की सुंदर हिन्दू लड़कियां और बहुएं छांट कर रखी जाती थीं। वह उनके साथ बलात्कार करते फिर उनके नंगे_शरीर पर चादर बिछा दी जाती थी, हिन्दू जनता उसी चादर पर टैक्स की रकम डाल देती थी..

सौभाग्य से अब वो कुकर्मी पीर, ख्वाजा या सैयद नहीं रहे.. लेकिन हम मूर्ख और अज्ञानी_हिन्दू आज भी न जाने किस खौफ में अपनी बहन-बेटियों की इज्जत लूटने वाले उन्हीं नीचों की कब्रों पर माथा रगड़ते फिरते हैं और उनकी चादरों पर पैसा चढ़ा रहे हैं।

कायरता_और_मूर्खता की इससे बड़ी मिसाल अगर दुनिया में कहीं और मिले, तो प्लीज मुझे भी बताइयेगा.. 😡

नोट: यह लेख बीकानेर_संग्रहालय में संचित मुगलकालीन पांडुलिपियों में अंकित तथ्यों पर आधारित है।

Monday, July 12, 2021

लिबरल समाज और मासूम_भेड़िया..

पति-पत्नी जंगल से गुजर रहे थे। अचानक पत्नी की दृष्टि सड़क पर घायल पड़े एक जानवर के बच्चे पर पड़ी, उसने कार रुकवा दी और दोनों बाहर आ गये।

पत्नी बोली ने उसे पानी पिलाया तो शावक में थोड़ी जान आयी। पत्नी बोली- "यह तो कुत्ते का बच्चा है, इसे साथ ले चलते हैं। हमारे दोनों कुत्तों के साथ ही रह लेगा.." पति ने कहा- "शहर से दूर इस जंगल में कुत्ता कहां से आयेगा.? यह भेड़िये का बच्चा है, इसे छोड़ो और कार में बैठो.." पत्नी अड़ गयी कि यह कुत्ते का ही बच्चा है और उसे अपने घर ले आयी।

अच्छे खान-पान से थोड़े ही दिन में भेड़िये का बच्चा मोटा-तगड़ा हो गया। कुछ दिनों बाद ही दंपति का एक कुत्ता घर से गायब हो गया, उसकी हड्डियां घर के पीछे मिलीं और भेड़िये के बच्चे के मुंह में खून लगा मिला। पति बोला- देखा, मैंने कहा था न कि यह भेड़िये का बच्चा है.? इसने हमारे कुत्ते को मार डाला.!" पत्नी बोली- "दोनों कुत्ते पहले दिन से ही इससे चिढ़ते थे, इस बेचारे ने अपने बचाव में ही ऐसा किया होगा.!" पति चुप हो गया.. 

कुछ दिनों बाद दूसरा कुत्ता भी गायब हो गया। पति ने फिर भेड़िये के बच्चे पर शक जताया, पत्नी फिर उसके समर्थन में आ गयी। घर में झगड़े होने लगे और पड़ोसी भी बोलने लगे कि मोहल्ले से भेड़िये को भगाओ, लेकिन पत्नी मानने को तैयार ही नहीं थी।

फिर एक दिन उन पति-पत्नी का अपना एक बच्चा भी गायब हो गया, अब पति अड़ गया कि इसे घर में नहीं रहने दूंगा। पत्नी नहीं मानी और दोनों में तलाक हो गया, पत्नी अपने दूसरे बच्चे और भेड़िये को लेकर मायके आ गयी। कुछ दिनों के बाद भेड़िया उसके दूसरे बच्चे को भी खाकर भाग गया। अब पत्नी भेड़िये को खोजने निकल पड़ी, लोगों ने कहा- "पहले तो हमारी बात मानी नहीं, अब उसे खोज कर क्या करोगी.?"

पत्नी बोली- "मैं उस भेड़िये को #माफी मांगने के लिये ढूंढ़ रही हूं। अगर मेरे पति और दोनों कुत्तों ने उस मासूम से इतनी नफरत न की होती, तो बेचारे को मानव_मांस खाने को मजबूर न होना पड़ता.."

हम आज भी तथाकथित गांधीवादियों और लिबरलों के चक्कर में भेड़ियों_से_मुहब्बत और अपनों_की_अनदेखी कर रहे हैं। लेकिन याद रखिये कि भेड़िये कभी भी अपना धर्म, अपना चरित्र नहीं बदलते.. वो खूनी होते हैं और खूनी ही रहेंगे..!

नोट: इस कथा का आतंकवाद_के_धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है.. 😐

Friday, July 9, 2021

प्रायोजित लव_जिहाद और हिन्दू_मुर्गियां..

पिछले दिनों लगभग सारे भारतीय मीडिया ने आमिर_खान और किरन_राव के तलाक का महिमामंडन करते हुए ऐसे दिखाया, जैसे यह कोरोना_वैक्सिनेशन से भी बड़ी खबर है। एक वर्ग ने इनसे सहानुभूति दिखायी और अति उत्साही राष्ट्रवादियों ने लव_जिहाद कहकर इसकी भर्त्सना की..

मेरी दृष्टि में आमिर खान और किरन राव का मामला केवल लव जिहाद का नहीं है। किरन राव कभी भी न तो इसमें फंसी थी, न ही अब इससे मुक्त हुई है। वास्तव में यह पूरा घटनाक्रम शुरु से ही आमिर खान का एक प्रायोजित_कार्यक्रम था और किरन राव इसमें बस अपना रोल_प्ले कर रही थी। 

किरन को आगे करके आमिर ने पहले लव_जिहाद को प्रमोट किया, फिर सरोगेसी को और अब 30 करोड़ में उसे तलाक देकर तलाक को प्रमोट कर रहा है। यह फिल्मी लोग कोई भी प्रमोशन फ्री में नहीं करते और भारत में इस टाइप के प्रमोशन के लिये तो आधी दुनिया के शांतिदूत खजाना खोले तैयार रहते हैं। वैसे सभी को मेहनताना देने के बाद भारी-भरकम बजट वाली इस प्रायोजित_फिल्म की शूटिंग फिलहाल खत्म हो गयी है।

कटु सत्य यह भी है कि ऐसे फिल्मी निकाह या तलाक से कभी भी किसी शर्मिला_टैगोर, अमृता_सिंह, करीना_कपूर या किरन_राव को ज्यादा दिक्कत नहीं होती। इस घटिया प्रमोशन से असल दिक्कत होती है इनकी देखा-देखी किसी आमिर पर भरोसा कर लेने वाली गांव_देहात की किरनों को। उनकी स्थिति उस मुर्गी जैसी होती है जिसे अंडे देने तक तो रोज बढ़िया पौष्टिक दाने खिलाये जाते हैं और अंडे देने बन्द करने के बाद मालिक काटकर उसका मांस भी बेंच देता है। 

इन फिल्मी कहानियों को सच मानकर इस जिहाद में फंसी इन बेचारी किरनों का मांस तो बिकेगा नहीं, तो ऐसी आम हिन्दू लड़कियों को आखिरी पनाह टुकड़ों में कटकर बोरी या सूटकेस में ही मिलती है। पैसों के लिये फिल्मी शूटिंग की तरह निकाह और तलाक का ढोंग करती है कोई किरन राव, पर उसका दण्ड भोगती है कोई नैना मंगलानी, कोई शिल्पी, कोई उषा, कोई सरिता या कोई और...

इस घिनौने प्रायोजित खेल को रोकने का एकमात्र तरीका यही है कि हम अपनी बच्चियों को अपने धर्म, अपनी परम्पराओं की शिक्षा दें, परिवार का महत्व बतायें और समझायें कि किससे प्रेम किया जाना चाहिये और किससे घृणा करनी चाहिये..

जी हां.. प्रेम की तरह घृणा भी जीवन का एक अनिवार्य भाव है और अब स्वीकार करना ही होगा कि पाप से घृणा करने के साथ-साथ पापी से घृणा करना भी ज्यादा जरूरी है..

जय_हिन्द

Friday, July 2, 2021

युवराज से नेता, फिर पप्पू बनने की यात्रा..

मिश्रित नहरू_गांधी परिवार के युवराज और मृतप्राय_कांग्रेस के लुप्तप्राय पूर्व_अध्यक्ष राहुल जी ने आज ट्वीट किया है-

"जुलाई आ गया है, वैक्सीन नहीं आयीं.."

जैसे आज बड़े से बड़ा राजनीतिक पंडित भी यह नहीं बता सकता है कि राहुल जी कब और क्यों "कौन से देश" चले जायेंगे, वैसे ही खुद राहुल भइया भी यह नहीं बता सकते कि उन्होंने कौन सा बयान क्यूं दिया था। वह तो बस ‘'समय बिताने के लिये, करना है कुछ काम..’' वाली मनःस्थिति में आकर कभी-कभी खुद को युवा मानकर ''ट्रायल एंड एरर..'' थ्योरी के तहत कुछ भी लिख या बक देते हैं। उनके लिये प्रधानमंत्री बनना जितना आवश्यक है, उतना ही आवश्यक समय समय पर बयान देते रहना भी है।

संभव है कुछ विश्वविद्यालय आगामी समय में इस विषय पर शोध करायें कि कोई राजनेता इस दशा में पहुंचकर पप्पू कैसे बन जाता है.? पर राजनीतिक दृष्टि से यह दशा दयनीय अवश्य है और उस राजनेता के लिये तो और भी, जो दिल में एक सौ पैंतीस करोड़ नागरिकों के राष्ट्र को नेतृत्व देने की इच्छा रखता हो।

अब पता नहीं ट्विटर पर यह प्रश्न राहुल उर्फ पप्पू भइया ने बैठे-बैठे या खड़े-खड़े उगला था, पर मुझे तो यह प्रश्न "दिये जलते हैं, फूल खिलते हैं.." टाइप का लगा। या शायद जब-जब पप्पू भइया के खर दिमाग में कोई हलचल होती है, वह अकस्मात ही ऐसे प्रश्न उगलने लगते हैं। 

अब यह कैसा अद्भुत प्रश्न है और किससे है.? क्या राहुल गांधी को पता नहीं है कि भारत में टीकाकरण कब से चल रहा है.? क्या उन्हें यह पता नहीं कि वैक्सीन टीकाकरण का डाटा केंद्र और राज्य सरकारें रोज जारी करती हैं.? क्या उन्हें नहीं बताया गया कि अब तक देश में टीके के करीब 34 करोड़ डोज दिए जा चुके हैं.? क्या उन्हें पता नहीं कि वैक्सीन टीकाकरण में भारत इस समय विश्व का अग्रणी देश है.? जो जानकारियां सार्वजनिक तौर पर सहज उपलब्ध हैं, वह भी पप्पू_भइया को क्यूं नहीं पता.? 

प्रश्न पूछना विपक्ष का अधिकार और राजनीतिक आधार है, पर क्या ऐसे निरर्थक प्रश्न उस अधिकार या आधार को कमजोर नहीं करते.? क्या विपक्ष के वर्तमान दर्शन में ऐसे तथ्यहीन प्रश्न आवश्यक हैं.? लोकतांत्रिक व्यवस्था में विपक्ष आवश्यक है, पर मात्र विरोध के लिये नहीं और शायद हर बात पर विरोध किए बिना भी विपक्ष की भूमिका पूर्ण प्रासंगिकता के साथ निभायी जा सकती है।

हो सकता है कि राहुल के ऐसे बयान हिटलर के उस सिद्धांत पर आधारित हों कि "किसी झूठ को इतनी बार बोलो कि वह सच लगने लगे.." लेकिन इसी रणनीति पर तो राहुल पिछले 7 वर्षों से और कांग्रेस पिछले 20 वर्षों से (मोदी के विरुद्ध) चल रही है। अबतक तो इस नीति के कोई सकारात्मक परिणाम आते नहीं दिखे कि राहुल या कांग्रेस इसे ही बार-बार आजमाते रहें।

बाकी.. अगर अपने बयानों पर चर्चा करवा लेने को ही राहुल राजनीतिक सत्ता की कुंजी समझ रहे हैं, तब तो वह वास्तव में पप्पू ही हो चुके हैं और वह तो ऐसा करके कई बार अदालतों में फंसकर माफी भी मांग चुके हैं। यह ऐसी स्थिति है जिस पर राहुल विचार करें न करें, उनकी पार्टी को अवश्य विचार करना चाहिये। 

पता नहीं कांग्रेस और पप्पू_जी कब समझेंगे कि यह 1980 का भारत नहीं है, यह 21वीं शताब्दी है और अब #झूठ पर आधारित प्रश्न-उत्तर या विमर्श 2 मिनट में ही नंगे हो जाते हैं..!

जय_हिंद