चुनाव परिणामों के बाद 4 जून से ही सोच रहा हूं..
दो नेताओं की तुलना करिये-
एक तुर्की के तैयब एर्डोगन और दूसरे हमारे नरेंद्र मोदी जी।
एर्डोगन ने सत्ता में आने से पहले पुरानी तुर्क सल्तनत और तुर्क वैभव को लौटाने सहित तमाम वादे किये थे। उनमें से एक भी वादा वो पूरा नहीं कर पाया, लेकिन उसके सिर्फ दो कामों पर तुर्क जनता फिदा हो गई..
पहला- उसने एक बार मस्जिद में बगल में नमाज पढ़ रहे गरीब मुस्लिम को गले से लगा लिया और दूसरा- उसने इस्तांबुल के प्राचीन विश्वविख्यात चर्च सेंट सोफिया को मस्जिद में बदल दिया। आज विश्व राजनीति में एर्डोगन की कोई औकात नहीं है, लेकिन पूरी तुर्क जनता उसके पीछे खड़ी है और वह तुर्की का एकछत्र शासक है।
• जब उसने तुर्की की सत्ता संभाली तब एक तुर्किश लीरा में पांच डॉलर आते थे और आज एक डॉलर में 34 लीरा आती है।
• तब तुर्की में बेरोजगारी दर माइनस में थी, बाहर से वर्कर बुलाने पड़ते थे और आज तुर्की में 12% जनता बेरोजगार है।
• जब एर्डोगन ने सत्ता संभाली तब तुर्की में महंगाई दर शून्य थी और आज तुर्की दुनिया के टॉप 5 देशों में है, जहां महंगाई दर सबसे ज्यादा 70% पहुंच चुकी है।
• जब एर्डोगन ने तुर्की की सत्ता संभाली थी, तब तुर्की विश्व की दसवें नंबर की बड़ी अर्थव्यवस्था था और आज 20वें नंबर की अर्थव्यवस्था है।
इधर मोदी ने..
• सफाई कर्मियों के पैर पखारकर जन्मनाजातिगत श्रेष्ठतावादियों को तमाचा लगाया और समरसता का उद्घोष किया।
परिणाम क्या रहा.?
दलितों ने मोदी को वोट नहीं दिये।
• सूर्यवंश के क्षत्रिय कुल में जन्मे और समस्त हिंदुओं ही नहीं बल्कि मानवता के आदर्श श्रीराम का भव्य मंदिर बनवाकर पांच सौ साल पुराना कलंक मिटाया।
परिणाम क्या रहा.?
राजपूतों के एक वर्ग ने मोदी का ही बायकॉट कर दिया और तो और अयोध्यावासियों ने ही मोदी को हरा दिया।
• मोदी ने काशी का कायाकल्प कर दिया।
परिणाम क्या रहा.?
अजय राय जैसे नेता को अपने अधिसंख्य स्वजातीयों सहित साढ़े चार लाख वोट मिले और मोदी मात्र डेढ़ लाख से जीते।
• महाराष्ट्र में छत्रपति स्मृति चिन्हों का निर्माण किया, मुंबई को अटलसेतु की सौगात दी।
परिणाम क्या रहा.?
महाराष्ट्र में भाजपा गठबंधन की सीटें घट गईं।
• इसके अलावा भारत को विश्व की चौथी इकोनॉमी, तीसरी सर्वश्रेष्ठ वायुसेना, वैश्विक सम्मान अर्जित किये और कश्मीर को 370 से मुक्त कराया।
परिणाम क्या रहा.?
मोदी पर कामचोर युवाओं का आरोप कि मोदी ने सरकारी नौकरी नहीं दी।
• जब मोदी ने सत्ता संभाली थी तब भारत विश्व में 16वें नंबर की अर्थव्यवस्था था, आज चौथे नंबर की अर्थव्यवस्था है।
• कोविड सहित तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भारत में महंगाई दर कंट्रोल में है, एक बार भी डबल डिजिट में नहीं गई।
पता है कि सरकार मोदी की ही बन रही है, लेकिन यह भी पता होना चाहिये कि मोदी भी मनुष्य ही हैं। एक क्षण के लिये सोचिये, क्या उनके मन में यह विचार नहीं आ सकता कि-
"जिनके लिये पिछले दस वर्षों से बिना अवकाश के दिन-रात काम किया, वह इतने कृतघ्न हैं तो मैं क्यों परेशान होऊं.?"
संभव है कि मोदी ऐसा न करें, लेकिन याद रखिये कि भाजपा और एनडीए के अन्य घटकदल भी अंततः राजनीतिक दल ही हैं और उनमें हर नेता इतना महान नहीं है।
तो वक्फ बोर्ड, समान नागरिक संहिता, ज्ञानवापी, मथुरा और अन्य तमाम मुद्दे अब भूल ही जाइये और प्रार्थना करिये कि सत्ताधारी नेताओं को यह स्लोगन न याद आये-
"अपना काम बनता, भाड़ में जाय जनता..!"
जय श्रीराम
🙏