Thursday, June 6, 2024

राष्ट्रहित और भारतीय वोटर

चुनाव परिणामों के बाद 4 जून से ही सोच रहा हूं..

दो नेताओं की तुलना करिये- 
एक तुर्की के तैयब एर्डोगन और दूसरे हमारे नरेंद्र मोदी जी।

एर्डोगन ने सत्ता में आने से पहले पुरानी तुर्क सल्तनत और तुर्क वैभव को लौटाने सहित तमाम वादे किये थे। उनमें से एक भी वादा वो पूरा नहीं कर पाया, लेकिन उसके सिर्फ दो कामों पर तुर्क जनता फिदा हो गई..

पहला- उसने एक बार मस्जिद में बगल में नमाज पढ़ रहे गरीब मुस्लिम को गले से लगा लिया और दूसरा- उसने इस्तांबुल के प्राचीन विश्वविख्यात चर्च सेंट सोफिया को मस्जिद में बदल दिया। आज विश्व राजनीति में एर्डोगन की कोई औकात नहीं है, लेकिन पूरी तुर्क जनता उसके पीछे खड़ी है और वह तुर्की का एकछत्र शासक है।

• जब उसने तुर्की की सत्ता संभाली तब एक तुर्किश लीरा में पांच डॉलर आते थे और आज एक डॉलर में 34 लीरा आती है।

• तब तुर्की में बेरोजगारी दर माइनस में थी, बाहर से वर्कर बुलाने पड़ते थे और आज तुर्की में 12% जनता बेरोजगार है।

• जब एर्डोगन ने सत्ता संभाली तब तुर्की में महंगाई दर शून्य थी और आज तुर्की दुनिया के टॉप 5 देशों में है, जहां महंगाई दर सबसे ज्यादा 70% पहुंच चुकी है।

• जब एर्डोगन ने तुर्की की सत्ता संभाली थी, तब तुर्की विश्व की दसवें नंबर की बड़ी अर्थव्यवस्था था और आज 20वें नंबर की अर्थव्यवस्था है।

इधर मोदी ने..

• सफाई कर्मियों के पैर पखारकर जन्मनाजातिगत श्रेष्ठतावादियों को तमाचा लगाया और समरसता का उद्घोष किया।
परिणाम क्या रहा.? 
दलितों ने मोदी को वोट नहीं दिये।

• सूर्यवंश के क्षत्रिय कुल में जन्मे और समस्त हिंदुओं ही नहीं बल्कि मानवता के आदर्श श्रीराम का भव्य मंदिर बनवाकर पांच सौ साल पुराना कलंक मिटाया।
परिणाम क्या रहा.? 
राजपूतों के एक वर्ग ने मोदी का ही बायकॉट कर दिया और तो और अयोध्यावासियों ने ही मोदी को हरा दिया।

• मोदी ने काशी का कायाकल्प कर दिया।
परिणाम क्या रहा.? 
अजय राय जैसे नेता को अपने अधिसंख्य स्वजातीयों सहित साढ़े चार लाख वोट मिले और मोदी मात्र डेढ़ लाख से जीते।

• महाराष्ट्र में छत्रपति स्मृति चिन्हों का निर्माण किया, मुंबई को अटलसेतु की सौगात दी।
परिणाम क्या रहा.? 
महाराष्ट्र में भाजपा गठबंधन की सीटें घट गईं।

• इसके अलावा भारत को विश्व की चौथी इकोनॉमी, तीसरी सर्वश्रेष्ठ वायुसेना, वैश्विक सम्मान अर्जित किये और कश्मीर को 370 से मुक्त कराया।
परिणाम क्या रहा.? 
मोदी पर कामचोर युवाओं का आरोप कि मोदी ने सरकारी नौकरी नहीं दी।

• जब मोदी ने सत्ता संभाली थी तब भारत विश्व में 16वें नंबर की अर्थव्यवस्था था, आज चौथे नंबर की अर्थव्यवस्था है।

• कोविड सहित तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भारत में महंगाई दर कंट्रोल में है, एक बार भी डबल डिजिट में नहीं गई।

पता है कि सरकार मोदी की ही बन रही है, लेकिन यह भी पता होना चाहिये कि मोदी भी मनुष्य ही हैं। एक क्षण के लिये सोचिये, क्या उनके मन में यह विचार नहीं आ सकता कि- 

"जिनके लिये पिछले दस वर्षों से बिना अवकाश के दिन-रात काम किया, वह इतने कृतघ्न हैं तो मैं क्यों परेशान होऊं.?"

संभव है कि मोदी ऐसा न करें, लेकिन याद रखिये कि भाजपा और एनडीए के अन्य घटकदल भी अंततः राजनीतिक दल ही हैं और उनमें हर नेता इतना महान नहीं है। 

तो वक्फ बोर्ड, समान नागरिक संहिता, ज्ञानवापी, मथुरा और अन्य तमाम मुद्दे अब भूल ही जाइये और प्रार्थना करिये कि सत्ताधारी नेताओं को यह स्लोगन न याद आये-

"अपना काम बनता, भाड़ में जाय जनता..!"

जय श्रीराम 
🙏

Tuesday, January 30, 2024

untold story of Lucknow, the City of Nawab's..

लखनऊ का नाम सभी ने सुना होगा और इसके साथ लगे (या लगाये गये) तमगे "नवाबों का शहर" भी सभी को पता ही होगा। तो आज की चर्चा उसी लखनऊ की एक खास न्यामत के बारे में..

लखनऊ की एक बड़ी कालोनी है राजाजी_पुरम.. इसके नाम से ही शुद्ध संस्कृत की सुगंध आती है। यह अलग बात है कि राजाजी पुरम पुराने लखनऊ में है, जहां आज भी (जानबूझकर) संस्कृत क्या हिंदी समझने वाले भी नहीं मिलते हैं..

लेकिन आज की चर्चा की न्यामत यह कालोनी नही, बल्कि इससे कुछ ही दूर स्थित एक ऐतिहासिक पुल है जिसका नाम है- धनिया_महरी_पुल। जो लोग लखनऊ के हैं उन्हें बखूबी पता होगा कि यह पुल कहां है, बाकियों के लिये बता दे रहा हूं कि जब आप लखनऊ में राजाजीपुरम से आलमनगर की ओर बढ़ेंगे तब आपको इस पुल पर चढ़ाई करने का सुअवसर प्राप्त हो जायेगा। पहले यह सिर्फ सड़क पुल था, अब वहां बने रेलवे पुल को भी यही नाम दे दिया गया है।

तो पेश है किस्सा ए धनिया महरी पुल..

लखनऊ के एक नामचीन नवाब हुए थे, नवाब नसीरुद्दीन हैदर। बताते हैं कि उनकी अम्मी साहिबा एक धोबिन हुआ करती थीं, जिन्हें उनके शौहर का इंतकाल होने के बाद नसीरुद्दीन साहब के अब्बा हुजूर नवाब गाजीउद्दीन साहब ने अपने हरम में ले लिया था। उनके नौशे-हरम नसीरुद्दीन साहब हुए, जो धोबी_की_औलाद सुनते हुए कब जवान होकर गद्दीनशीन हो गये पता ही नहीं चला..

नवाब नसीरुद्दीन साहब ने न सिर्फ औरतबाजी में अपने अब्बा हुजूर को मात दी, बल्कि उनसे चार कदम आगे बढ़कर लौंडेबाजी में भी महारत हासिल कर ली। नई उमर के चिकने लौंडे उनकी खास खिदमत में हमेशा शामिल रहते थे..

नवाब नसीरुद्दीन के हरम में तमाम बेगमें और लौंडे होने के बाद भी इन धोबीपुत्र नवाब का नदीदापन खत्म होने का नाम न लेता था, तो एक दिन उन्होंने अपने साईस की लुगाई पर खास नजरे_इनायत कर दी, उसके बाद वो उनकी बेगम_ए_खास हो गई।

नवाब नसीरुद्दीन की ठरक इतने से शांत नहीं हुई, उनकी नजरें रोज कुछ नया ढूंढती रहती थीं। बासी बेगमों से ऊबी उनकी नजरों की इनायत तलाश बेगमों की महरियों पर हुई और उनमें नवाब साहब को नायब हीरे मिल गये- पनिया महरी, दिबाई महरी और धनिया महरी..

फिर क्या था.? ये महरियां तंग चोली और गोटेदार लहंगा पहने ख्वाबगाह से दरबार तक हर कहीं नवाब नसीरुद्दीन की हमसाया हो गईं। इनमें धनिया_महरी उनकी इतनी खास हो गई कि उन्हें रात को सुलाने से लेकर सुबह उठाने तक (कैसे सुलाना और कैसे उठाना, वो आप ही सोचो) की सारी जिम्मेदारी धनिया महरी की ही थी। इतना ही नहीं, नवाब साहब को दस्तरखान भी धनिया का ही चुना हुआ पसंद आता था, बतर्ज- "दिल आया गधी पे, तो परी क्या चीज है.?"

आगे किस्सा कोतह यह है कि एक दिन नवाब नसीरुद्दीन की रंगीन निगाह धनिया की भतीजी पर पड़ गई। नवाब साहब फड़फड़ाने लगे और उस लड़की को अपनी ख्वाबगाह में लाने का जिम्मा धनिया को ही सौंप दिया। नतीजतन धनिया ने धनिया की चटनी में जहर मिलाकर नवाब साहब को चटा दिया और ठरकी नवाब नसीरुद्दीन अपनी प्यारी धनिया महरी के हाथों धनिया की चटनी खाकर दोजख नशीन हो गये..

इतने लंबे चौड़े किस्से में धनिया महरी पुल की बात तो रह ही गई, वो भी बता दे रहा हूं..

धोबिन पुत्र नवाब नसीरुद्दीन ने अपनी ख्वाबगाह तक जल्दी पहुंचने के लिये धनिया के मोहल्ले तक वो पुल बनवाया था, जिसका नाम धनिया महरी पुल पड़ा। आज वहां सड़क और रेलवे दोनों पुल हैं और दोनों का नाम धनिया महरी पुल ही है।

आखिर में एक सलाह:

पुराने लखनऊ के लोग बताते हैं कि धनिया महरी अक्सर ये गाना गुनगुनाती रहती थी-

"ये गोटेदार लहंगा निकलूं जब डाल के, छुरियां चल जायें मेरी मतवाली चाल पे!

तो, कृपया ऐसी गुनगुनाहट से बचे रहें..
🤪🙏

Monday, October 9, 2023

भारत का हमास- कांग्रेस

दो दिन पहले एक मुस्लिम आतंकवादी संगठन ने एक संप्रभु देश पर अकारण हमला कर पांच हजार से ज्यादा राकेट दाग दिये, उसके सैकड़ों बेगुनाह नागरिकों को मार दिया और उसकी महिलाओं को नंगा करके जुलूस निकाला.. अब वह देश क्या करेगा.? या तो वह विश्व समुदाय के सामने अपनी रक्षा के लिये "पाहि माम-त्राहि माम" करेगा, या फिर अपनी अस्मिता के लिये प्राणप्रण से सबल प्रत्युत्तर देगा..

मैं बात कर रहा हूं इजराइल पर आतंकी संगठन हमास के ताजा हमलों और उसके जवाब में इजराइल द्वारा युद्ध घोषणा की। ताजा समाचारों के मुताबिक इजराइल की तीन लाख से अधिक सेना ने गाजा पट्टी को चारों ओर से घेर लिया है और आईडीएफ चीफ की स्पष्ट घोषणा है कि "हम गाजा का भूगोल बदल देंगे.."

इजराइल ने वही किया, जो किसी भी संप्रभु राष्ट्र को अपने नागरिकों की सुरक्षा, उनके आत्मसम्मान की रक्षा हेतु करना चाहिये। हमास सहित उसको पीठ पीछे मदद देने वालों को भी पता था, कि इजराइल ऐसा ही करेगा। यहां तारीफ इजराइल के सत्ताशीन नेताओं से कहीं ज्यादा वहां के उन विपक्षी नेताओं की करनी होगी, जो संकट की इस घड़ी में अपने राजनैतिक विरोध को भुलाकर बेंजामिन नेतन्याहू के साथ आ खड़े हुए और उनमें से कई इस समय वॉररूम की जिम्मेदारी निभा रहे हैं..

इजराइल भारत का स्वाभाविक मित्रदेश है, जो लंबे समय से सामरिक और व्यापारिक हर दृष्टि से भारत का प्रमुख सहयोगी रहा है। शायद इसलिये भी, कि दोनों ही पड़ोसी देश द्वारा प्रायोजित आतंकवाद से निरंतर पीड़ित रहे हैं और दोनों के दर्द एक समान हैं। इसीलिये भारत ने हमास के घृणित हमले के तुरंत बाद- अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन से भी पहले, इजराइल के समर्थन की घोषणा कर दी..

भारत में भी एक विपक्ष है- हालांकि जनता ने उसे आधिकारिक विपक्ष कहे जाने लायक भी नहीं छोड़ा है, फिर भी उसके नेता "सजनी हमहीं राजकुमार" की तर्ज पर विपक्षी एकता का नेता होने का दम भरते रहते हैं.. (ये अलग बात है कि कुछ साल पहले तक यही लोग खुद को सृष्टिपर्यंत भारत का राजा होने का दम भरते थे)..

भारत में विपक्षी एकता की स्वयंभू_नेता यह पार्टी आज एक मुस्लिम आतंकवादी संगठन के समर्थन में खुलकर उतर आई। कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) ने आज हमास द्वारा इजरायल पर किए गए बर्बरतापूर्ण हमले को नजरअंदाज करते हुए एक प्रस्ताव पारित कर फिलिस्तीन के "Land, self government and live with dignity and respect" के अधिकार को समर्थन दिया है।

कोई पूछे इस कांग्रेस से- वह फिलिस्तीन के अधिकारों की बात तो कर रही है, लेकिन इस्लाम के उदय से सैकड़ों साल पहले से मौजूद यहूदी अधिकारों को क्यों नहीं स्वीकार कर पा रही है.? यहां यह तथ्य ध्यान में रखना होगा कि 14 मई, 1948 को स्थापित इजराइल विश्व में यहूदियों का एकमात्र देश है.. शायद उसी तरह, जैसे अब भारत हिंदुओं का एकमात्र देश बचा है। लेकिन कांग्रेस के लिये right to existence सिर्फ विवादित इस्लामिक देश फिलिस्तीन का ही है, एक संप्रभु देश इजराइल का कोई right to existence नहीं है.. इसी तरह तो इजराइल के अस्तित्व को फिलिस्तीन, हमास, हिज्बुल्ला और इस्लामिक देश भी नकारते रहे हैं। 

प्रश्न यह है कि क्या अब कांग्रेस भारत का हमास या हिजबुल्ला बन चुकी है.? इसका उत्तर हां में दिया जाना बहुत अनुचित नहीं होगा.. कांग्रेस पाकिस्तान पर भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट के सबूत मांग कर सेना का अपमान करती रही और गलवान मामले में लगातार चीन की भाषा बोलकर भारत को नीचा दिखाने की कोशिश करती रही है। कल ही AMU में कांग्रेस समर्थित छात्रों के एक समूह ने इजरायल के विरोध में हमास के साथ Solidarity दिखाने के लिए अल्लाहू अकबर के नारे लगाते हुए प्रदर्शन किए हैं। ऐसे में ये कहना कहीं से गलत नहीं होगा, कि अब भारत_का_हमास फिलिस्तीनी_हमास के समर्थन में खुलकर उतर आया है।

निश्चित रूप से फिलिस्तीन और हमास के प्रति समर्थन प्रस्ताव पारित करने के पीछे कांग्रेस की मंशा आगामी चुनावों में मुस्लिम वोट की गारंटी पक्की करना है। बेहतर होगा कि अब सोनिया मैडम सम्राट अशोक से प्रेरणा लें और जिस तरह सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र व पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु भेजा था, उसी तरह पप्पू और पिंकी को इस्लाम के समर्थन के लिये अल-अक्सा मस्जिद में नमाज पढ़ने गाजा भेज दें। समर्थन के साथ-साथ यह उनके दादा-दादी फिरोज और मैमूना को श्रद्धांजलि भी होगी..

आमीन

Saturday, September 30, 2023

सनातन_समाज और दलितों पर सवर्ण_अत्याचार..

आजकल संसद से सड़क तक "कुआं ठाकुर का, पानी ठाकुर का.." के बहाने सनातन धर्म में जातिवाद और दलितों पर अत्याचार आदि पर अनर्गल चर्चा हो रही है। सबसे मजेदार बात यह है कि जिनके असल कुल_वंश और जाति का कुछ पता ही नहीं, उस शाही_खानदान के लोग भी जातिगत जनगणना के बहाने दलितों की पैरवी करते दिख रहे हैं..

यह जानना जरूरी है, कि भारत में दलितों पर सवर्णों द्वारा कथित अत्याचार का सच क्या है.?

सबको पता है कि अंग्रेजों से पहले भारत में पांच सौ वर्षों से अधिक समय तक मुसलमानों का शासन था और उसके बाद 1750 से 1947 तक लगभग दो सौ वर्षों तक अंग्रेजों का शासन रहा। अर्थात 1947 में संवत्रता मिलने से पहले सात सौ वर्षों से ज्यादा समय तक देश में लगातार ऐसे लोग सत्ता में रहे, जो वर्तमान सवर्ण शब्द की परिभाषा में नहीं आते। यह अलग बात है कि इन विदेशी शासकों का सर्वाधिक विरोध तथाकथित सवर्णों- राजपूतों और ब्राह्मणों द्वारा ही किया गया था और उस पूरे कालखंड में इसी वर्ग का शासन-सत्ता द्वारा सर्वाधिक दमन भी किया गया- इसपर चर्चा फिर कभी..

अब सहज प्रश्न यह है कि जिन सवर्णों का निरंतर सात शताब्दियों तक दमन होता रहा, क्या उस लंबे कालखंड में भी वह इतने सक्षम थे कि दलितों पर कथित अत्याचार कर सकें.? या सवर्णों में यह क्षमता देश स्वतंत्र होने के बाद अकस्मात आ गई.? कुछ अता-पता भी है किसी को.? या राजपूतों और ब्राह्मणों को यूं ही गरियाया जा रहा है.?

वास्तविकता यह है कि आदिकाल से ही- वाल्मीकि से लेकर कबीर और रैदास तक- सनातन समाज में व्यक्ति को उसके गुणों के आधार पर महत्ता मिली है, चाहे वह समाज के किसी भी वर्ग का रहा हो। कथित दलित और शूद्र वर्ग के लोग हमारे मंदिरों में न केवल पूजा करते आ रहे थे, बल्कि कई मंदिरों में इस वर्ग के लोग पुजारी पद पर भी थे। 

फिर अचानक 19वीं शताब्दी में ऐसा क्या हुआ,  कि दलितों का मंदिरों में प्रवेश निषिद्ध कर दिया गया.? क्या यह सवर्ण पुजारियों ने किया.?

नहीं, वास्तविकता कुछ और ही है-

भारत के मंदिरों में भक्तों द्वारा दान किये जा रहे अकूत चढ़ावे को देखकर 1808 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने सर्वप्रथम पुरी के श्रीजगन्नाथ मंदिर को अपने कब्जे में ले लिया और मंदिर आने वाले हिन्दुओं पर तीर्थयात्रा_कर लगा दिया। इन हिंदू श्रद्धालुओं को चार श्रेणी में बांटकर कर निर्धारित किया गया-
प्रथम श्रेणी: लाल जतरी (उत्तर के धनी यात्री)
द्वितीय श्रेणी: निम्न लाल (दक्षिण के धनी यात्री)
तृतीय श्रेणी: भुरंग (यात्री जो दो रुपया दे सके)
चतुर्थ श्रेणी: पुंज तीर्थ (कंगाल की श्रेणी जिनके पास दो रूपये भी नही मिलते थे)
चौथी कंगाल श्रेणी की एक लिस्ट भी जारी की गई..

1. लोली या कुस्बी
2. कुलाल या सोनारी
3. मछुवा
4. नामसुंदर या चंडाल
5. घोस्की
6. गजुर
7. बागड़ी
8. जोगी 
9. कहार
10. राजबंशी
11. पीरैली
12. चमार
13. डोम
14. पौन 
15. टोर
16. बनमाली
17. हड्डी

तीर्थयात्रा कर (मंदिर में इंट्रीफीस) प्रथम श्रेणी से 10 रूपये, द्वितीय श्रेणी से 6 रूपये और तृतीय श्रेणी से 2 रूपये निर्धारित किया गया, चतुर्थ श्रेणी को इस टैक्स से छूट दी गई..10 रूपये इंट्रीफीस देने वाले सबसे अच्छे से ट्रीट किये जाते थे और कंगाल लिस्ट वाले जो कोई इंट्रीफीस नहीं दे सकते थे, उन्हें मंदिर में नहीं घुसने दिया जाता था.. ठीक वैसे ही, जैसे आज आप ताजमहल/लालकिला में बिना इंट्रीफीस के नहीं जा सकते..

भगवान जगन्नाथ के मंदिर यात्रा पर टैक्स लगाने से ईस्ट इंडिया कंपनी को बेहद मुनाफा हुआ। बाद में अंग्रेज सरकार ने यह प्रयोग देश के अन्य प्रसिद्ध मंदिरों पर किया और यह 1809 से 1840 तक निरंतर चला। हिंदू श्रद्धालुओं से मंदिरों में इंट्री के लिये वसूले गये अरबों रूपये अंग्रेजो के खजाने में पहुंचते रहे और कंगाल वर्ग के लोगों का धीरे-धीरे मंदिरों में प्रवेश निषेध हो गया। बाद में वही कंगाल अंग्रेजों द्वारा और स्वतंत्रता के बाद में काले अंग्रेजों द्वारा अछूत और दलित बना दिये गये।

1932 में हिंदू समाज पिछड़े वर्गों से सम्बंधित "लोथियन कमेटी रिपोर्ट" में दलितों के स्वयंभू मसीहा डॉ. अंबेडकर ने अछूतों को मन्दिर में न घुसने देने का जो उद्धरण पेश किया, वो वही लुटेरे अंग्रेजो द्वारा बनाई भारत के कंगाल यानी गरीब लोगों की लिस्ट थी, जो मन्दिर में घुसने का शुल्क (Entry fee) देने में असमर्थ थे। अंबेडकर ने उस "कंगाल लिस्ट" के लोगों को नया नाम "अछूत" दे दिया जिन्हें बाद के नेताओं ने "दलित" उपाधि से नवाजा..

सवर्णों के प्रति और और अधिक घृणा पेरियार ने फैलाई, जब 16 वर्ष की आयु में घर से भगा दिये जाने के बाद वह वाराणसी आया था। यहां मंदिरों में दर्शन के बाद उसने पुजारियों साथ खाना खाने की मांग की। पुजारी अपना भोजन स्वयं बनाते थे और वह अन्य क्षत्रियों और ब्राह्मणों के साथ भी भोजन नहीं करते थे, तो उन्होंने पेरियार को मना कर दिया जिसपर उसने झूठा प्रोपोगंडा शुरू किया कि ब्राह्मणों ने इसके साथ छुआछूत की..

यथार्थ यह है कि सनातन समाज के मूल में जातिवाद और  छुआछूत कभी था ही नहीं। यदि ऐसा होता, तो सभी हिन्दुओं के देवी-देवता अलग होते और उनके मंदिर जातियों के अनुसार अलग-अलग बने होते.. यही नहीं, उनके श्मशानघाट भी अलग होते और अस्थि विसर्जन भी जातियों के हिसाब से ही होता जैसे मुसलमानों और ईसाइयों में है, जहां जातियों और फिरकों के हिसाब से अलग-अलग चर्च और अलग-अलग मस्जिदें हैं और अलग अलग कब्रिस्तान बने हैं।

सनातन समाज को जातिवाद, भाषावाद, प्रान्तवाद, धर्मनिपेक्षवाद, जड़तावाद, कुतर्कवाद, गुरुवाद, राजनीतिक पार्टीवाद द्वारा बांटने का काम पिछली कई शताब्दियों से पहले मुसलमानों फिरअंग्रेजी शासको ने किया, ताकि विभाजित हिंदुओं पर शासन करनें में आसानी हो। यही काम स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस ने पिछले 70 सालों तक षड्यंत्रपूर्वक करके अपनी राजनीतिक रोटी सेकीं और जनता को जूते में दाल खिलाई..

आशा है, सनातन समाज में सवर्णों के प्रति फैली कुछ भ्रांतियां दूर हुई होंगी।

जयहिंद 🙏
जयतु_सनातन 🚩

Sunday, February 27, 2022

साबरमती कोच S-6 और गोधरा के शांतिदूत..

आज 27 फरवरी है..

आज से ठीक 20 साल पहले 27 फरवरी 2002 को सुबह-सुबह 7:43 बजे गुजरात के गोधरा स्टेशन से साबरमती_एक्सप्रेस नाम की एक ट्रेन रोज की तरह गुजरी थी,भारतीय रेल की परंपरानुसार चार घंटे लेट। लेकिन वह सुबह रोज की तरह नहीं थी.. गोधरा स्टेशन से निकलते ही ट्रेन पर पथराव किया गया, ट्रेन धीमी हुई और अगले सिग्नल पर पंहुचते ही करीब दो हजार शांतिदूतों लोगों ने इसे घेर लिया।

साबरमती रुक गई। पहले से तैयार तेल में डुबोये बोरे उसके S-6 कोच में दरवाजों से अन्दर डाल दिए गए। दरवाजों को तार से बांधकर बंद कर दिया गया, फिर आग लगा दी गई। सरकारी रिपोर्ट्स के अनुसार कोच में 27 महिलाओं और 10 बच्चों सहित कुल 59 लोग जल कर मरे थे, इनके अतिरिक्त 48 लोग घायल हुए थे।

सरकार ने इस नृशंस कांड की जांच के लिए नानावटी_शाह_कमीशन का गठन किया था, जिसका कार्यकाल 22 बार बढ़ाया गया-2002 से 2014 तक.. इसके बाद भी 2014 में इस कमीशन की रिपोर्ट आधी-अधूरी ही आई थी, क्योंकि कमीशन ने खुद अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि "बार-बार बुलाने के बावजूद मामले से सम्बन्धित बहुत सारे लोग कमीशन के सामने आए ही नहीं..!"

लंबी सुनवाई के बाद एसआईटी कोर्ट ने 2011 में 63 आरोपियों को बरी करते हुए 20 दोषियों को उम्रकैद और 11 शांतिदूत हत्यारों- 
1. हाजी बिलाल इस्माइल, 
2. अब्दुल मजीद रमजानी, 
3. रज्जाक कुरकुर, 
4. सलीम उर्फ सलमान जर्दा, 
5. जबीर बेहरा, 
6. महबूब लतिका, 
7. इरफान पापिल्या, 
8. सोकुट लालू, 
9. इरफान भोपा, 
10. इस्माइल सुजेला और 
11. जुबीर बिमयानी 
को मृत्युदंड की सजा सुनाई, लेकिन 9 अक्टूबर 2017 को गुजरात हाईकोर्ट ने इन 11 के मृत्युदंड को भी उम्रकैद में बदल दिया। 27 महिलाओं और 10 बच्चों सहित 37 मासूमों की नृशंस हत्या के इस मामले में किसी भी दोषी को फांसी की सजा नहीं हुई। 

यहां स्वाभाविक सवाल बनता है, कि पूरी ट्रेन के सिर्फ एक कोच S_6 को ही आग क्यूं लगाई गई.? जवाब है- क्योंकि इस कोच में अयोध्या से कारसेवा कर वापस लौट रहे हिंदू सवार थे।

सोचिएगा और हो सके तो एक बार महसूस करके देखिएगा भी, कि जरा सी रोटी की भाप से अपनी एक उंगली जल जाए तो कितना दर्द होता है.? फिर जो उस बंद कोच में भयानक आग और धुएं से मरे होंगे, वो कितना तड़पे होंगे.?

अगर आपने वह भयावह दृश्य देखा होता, तो क्या प्रतिक्रिया होती आपकी.? किस सोच के साथ, क्या निश्चय, क्या प्रतिज्ञा करके उस कोच से उतरते आप.? पर आप तो वहां थे ही नहीं, न ही आपने उस कोच का नारकीय दृश्य देखा ही था.. लेकिन, नरेंद्र मोदी उस कोच में गए भी थे और वापस आते समय उन्होंने कुछ प्रतिज्ञाएं भी की थीं। 

तो.. सरकारों की खूंटी पर अपने तंग कपड़े टांग कर बिस्तरों पर फैलना बंद करिए और देशहित के लिए प्रतिज्ञाबद्ध प्रथम राष्ट्रवादी सरकार का सहयोग करिए। क्योंकि कोई भी सरकार या कानून अपना काम तभी बेहतर करता है, जब समाज और समाज का हर व्यक्ति अपना काम बेहतर करे। उस समय न सही अब प्रतिज्ञा करिए कि तन-मन-धन से अपनी सरकार का साथ देंगे.. ऐसा भारत बनाने में, जिसमें कोई शांतिदूत फिर ऐसा करने क्या सोचने की भी हिमाकत न कर सके..

गोधरा कांड में मृत सभी सनातन हुतात्माओं को अश्रुपूर्ण_श्रद्धांजलि 😭🌺

जयहिंद, जय_श्रीराम 🙏

Saturday, February 19, 2022

मोहल्ले का सैलून और मोदी..

आज संडे था, तो हम हुलिया सुधरवाने मोहल्ले के सैलून जा पहुंचे..

नाई ने पहले मुंह पर पानी का फुहारा मारा, फिर क्रीम लगाकर मालिश की.. उसके बाद तौलिये से रगड़ कर मुंह साफ किया, फोम लगाया, रेजर में नया ब्लेड लगाया, शेव की, मूंछें और भवें सेट कीं, बढ़िया आफ्टर शेव लोशन लगाया, बोरोलीन पोता, फिर आखिर में हल्का सा पाउडर  फाइनल टच दिया..

हमने कहा "जरा नाक के बाल निकाल दे.." उसने साथ में कान पर खड़े दो चार बालों पर भी कैंची फिरा दी। फिर हम बेशर्मी से बनियान उतार कर खड़े हो गये.. हाथ ऊपर उठाया, उसने बगल के भी बाल साफ कर दिये। उसके बाद उसने कंधे-पीठ पर हाथ मारा और थोड़ी देर मालिश भी कर दी.. 

हम अनमने से उठे, शीशे में आगे-पीछे कई एंगल से खुद को निहारा.. रितिक रोशन बनने में कुछ कमी सी लग रही थी, वो संशकित हमें घूर रहा था। शीशे के सामने कई बार अगवाड़ा-पिछवाड़ा ऐंठने के बाद आखिरकार हमें कमी मिल ही गई- मूंछ में दो बाल सफेद दिख रहे थे.. उन्हें भी निकलवाया और फाइनली पचास रुपया उसके हवाले करके यह सोचते हुए घर की राह ली कि "साली महंगाई कितनी बढ़ गई है, जरा सी दाढ़ी के पचास रुपये.?!

सोचिये कि उसने हमारे पचास के नोट के बदले कितना कुछ किया.? जबकि बात तो सिर्फ दाढ़ी बनाने की हुई थी, नाक, कान, बगल के बाल साफ करने और मालिश की बात तो नहीं हुई थी न.? 

अब गंभीरता से सोचिये कि एक वोट के बदले आपके लिये क्या-क्या नहीं किया गया.? वादा तो सिर्फ राम मंदिर, 370 और समान नागरिक संहिता का था न.? पर उसने तो-

•ईरान का ₹ 48,000 करोड़ ऋण चुकाया,
•संयुक्त आरब अमीरात का ₹ 40,000 करोड़ ऋण चुकाया,
•भारतीय ईंधन कंपनियों का ₹ 1,33,000 करोड़ घाटा पूरा किया,
•इंडियन एयरलाइंस का ₹ 58,000 करोड़ घाटा पूरा किया,
•भारतीय रेलवे का ₹ 22,000 करोड़ घाटा पूरा किया,
•बीएसएनएल का ₹ 1,500 करोड़ घाटा पूरा किया,
•देश का ₹ 2,50,000 करोड़ का विदेशी कर्ज ब्याज के साथ चुकाया,
•सेनाओं को आधुनिक संसाधन देकर उन्हें विश्वस्तरीय बनाया,
•18,500 गांवों का विद्युतीकरण कराया,
•गरीबों को 8 करोड़ निःशुल्क गैस कनेक्शन दिया,
•हजारों किलोमीटर नई सड़कें बनाईं,
•युवाओं को ₹ 1,50,000 करोड़ के ऋण दिये,
•आयुष्मान भारत में 50 करोड़ नागरिकों के लिए ₹1,50,000 करोड़ की वैद्यकीय बीमा योजना आरंभ की,
•राम मंदिर भी बनवाया,
•370 भी हटाई,
•कश्मीर को केंद्रशासित कर दिया, •लद्दाख को अलग कर दिया,
•पाकिस्तान की हालत खजैले कुत्ते जैसी कर दी,
•CAA लागू किया,
•ढाई लाख रुपये मकान बनाने को दिया,
•घर घर शौचालय बनवाया,
•मुफ्त के सिलेंडर दिये,
•किसान कर्जमाफी कर के देश की इकोनामी को खतरे में डाला, किसी का तुष्टीकरण नहीं किया। भले लाखों कार्यकर्ता नाराज हुए, पर भाई भतीजावाद नहीं किया।
•इसके अतिरिक्त NRC और NPR समेत देश और नागरिकों के हित में अनेक कल्याणकारी योजनाओं पर काम चल रहा है..

लेकिन हमारे मन में गुस्से से बार-बार एक ही सवाल उठता है- "साला क्या जमाना आ गया है, एक वोट के बदले बस इत्ता सा ही.?! कुछ भी तो नहीं किया मोदी ने..."

कितने बेशर्म हैं हम, पता नहीं कब सुधरेंगे.?! 😡

Friday, February 18, 2022

बैशाख_नंदिनी

आप रास्ते से जा रहे हैं और अचानक सामने एक गधा खड़ा खिलखिलाता दिख जाये, तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी.? शायद आप कहें- "अरे वाह, गधा भी हंस रहा है.!" या गधे को हंसता देख आप भी खिलखिला उठें, या दुखी हो जाएं कि "देखो, हमसे अच्छा तो ये ही है, खुश तो है.!" 

लेकिन हम ऐसा नहीं करेंगे। हम तो मौके का फायदा उठा कर तुरंत गधे के चार दांत उखाड़ लेंगे, क्योंकि अगर गधे के दांत का चूरन बना उसका ताबीज बांधा जाये, तो पौरुष शक्ति में चमत्कारी वृद्धि होती है। अब आप कहोगे कि ऐसा चमत्कार कभी सुने नहीं हैं.. तो भाई, बंगाली बाबाओं की फलती फूलती दुकानदारी और निर्मल बाबा के भक्तों की संख्या देखकर भी आपको क्यों नहीं लगता कि हमारा फार्मूला भी चल सकता है.?

खैर.. यह तो शरद जोशी जी से प्रेरित मेरी कल्पनाशक्ति की आकस्मिक उड़ान थी आपके मुखड़े पर मुस्कान (कर्नाटक वाली नहीं) लाने के लिये, अब गधे पर गंभीर चर्चा..

दुनिया में गधों की दूसरी सबसे ज्यादा आबादी पाकिस्तान में है। आप फिर कहोगे कि इसमें तो पाकिस्तान पहले नंबर पर है.. लेकिन आप गलत हैं, क्योंकि दुगोड़ू_गधों को मिलाकर अब हम पाकिस्तान को कहीं पीछे छोड़ चुके हैं.. 

अंग्रेजी में जवान गधे को Jack और जवान खूबसूरत गधी को Jenny या Jennet कहते हैं। जिनको गधी के Jenny या Jennet नाम अजीब लगें, उनको गधी को शांतिदूतों की नजर से देखना चाहिये.. लिल्लाह, गधी हूर नजर आयेगी और आसमानी किताब के सदके गधी से इश्क हलाल भी होगा।

हां, तो गधा समाज की चर्चा आगे बढ़ाते हैं.. गधे और घोड़ी के समागम से एक नई नस्ल जन्मती है, जिसे खच्चर कहते हैं। खच्चर देखने में थोड़ा घोड़ा भले लगे, पर होता ये नल्ला टाइप गधा ही है। अक्सर इसे गधों के दल की सरदारी मिल जाती है और यह अपने गधे साथियों के साथ बेवजह ढिंचुआ कर आसपास के लोगों की नींद हराम करने में भी माहिर होता है।

इस खच्चर की एक बहिन भी होती है और असल में यह पूरी पोस्ट उस खच्चर_भगिनी का परिचय करवाने के उद्देश्य से ही लिखी गई है। अंग्रेजी में उसे Hinny और देशी ठर्रा भाषा में खच्चरिया कहते हैं। अब इस Hinny के नाक_होंठ भले ही घोड़ी जैसे दिखें, पर होती ये गधी ही है। चूंकि हम भारतीय पत्नीभय से चुपचाप डिस्कवरी चैनल की जगह एकता कपूर के 'कैसी दुल्हन जो पति को डराये..' टाइप के टीवी सीरियल देखते रहते हैं तो गधी, घोड़ी, घुड़खर और खच्चर वगैरह में आसानी से फर्क नहीं कर पाते हैं। ठीक है, गृहशांति का ध्यान रखिये और चैनल मत बदलिये। लेकिन फर्क करना जरूर सीखिये, कि कल जीवन या देश की महत्वपूर्ण घुड़दौड़ में आप घोड़े के धोखे में खच्चर या खच्चरिया पर दांव न खेल जाएं..

उद्देश्य सिर्फ आपको वाइल्ड_लाइफ पर थोड़ा जागरूक करना था। इस पोस्ट को पप्पू और उसकी बहिनजी से मत जोड़ियेगा, प्लीज.. 🙏

वैसे जोड़ भी लेंगे, तो मुझे क्या.?! 😜