आज 27 फरवरी है..
आज से ठीक 20 साल पहले 27 फरवरी 2002 को सुबह-सुबह 7:43 बजे गुजरात के गोधरा स्टेशन से साबरमती_एक्सप्रेस नाम की एक ट्रेन रोज की तरह गुजरी थी,भारतीय रेल की परंपरानुसार चार घंटे लेट। लेकिन वह सुबह रोज की तरह नहीं थी.. गोधरा स्टेशन से निकलते ही ट्रेन पर पथराव किया गया, ट्रेन धीमी हुई और अगले सिग्नल पर पंहुचते ही करीब दो हजार शांतिदूतों लोगों ने इसे घेर लिया।
साबरमती रुक गई। पहले से तैयार तेल में डुबोये बोरे उसके S-6 कोच में दरवाजों से अन्दर डाल दिए गए। दरवाजों को तार से बांधकर बंद कर दिया गया, फिर आग लगा दी गई। सरकारी रिपोर्ट्स के अनुसार कोच में 27 महिलाओं और 10 बच्चों सहित कुल 59 लोग जल कर मरे थे, इनके अतिरिक्त 48 लोग घायल हुए थे।
सरकार ने इस नृशंस कांड की जांच के लिए नानावटी_शाह_कमीशन का गठन किया था, जिसका कार्यकाल 22 बार बढ़ाया गया-2002 से 2014 तक.. इसके बाद भी 2014 में इस कमीशन की रिपोर्ट आधी-अधूरी ही आई थी, क्योंकि कमीशन ने खुद अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि "बार-बार बुलाने के बावजूद मामले से सम्बन्धित बहुत सारे लोग कमीशन के सामने आए ही नहीं..!"
लंबी सुनवाई के बाद एसआईटी कोर्ट ने 2011 में 63 आरोपियों को बरी करते हुए 20 दोषियों को उम्रकैद और 11 शांतिदूत हत्यारों-
1. हाजी बिलाल इस्माइल,
2. अब्दुल मजीद रमजानी,
3. रज्जाक कुरकुर,
4. सलीम उर्फ सलमान जर्दा,
5. जबीर बेहरा,
6. महबूब लतिका,
7. इरफान पापिल्या,
8. सोकुट लालू,
9. इरफान भोपा,
10. इस्माइल सुजेला और
11. जुबीर बिमयानी
को मृत्युदंड की सजा सुनाई, लेकिन 9 अक्टूबर 2017 को गुजरात हाईकोर्ट ने इन 11 के मृत्युदंड को भी उम्रकैद में बदल दिया। 27 महिलाओं और 10 बच्चों सहित 37 मासूमों की नृशंस हत्या के इस मामले में किसी भी दोषी को फांसी की सजा नहीं हुई।
यहां स्वाभाविक सवाल बनता है, कि पूरी ट्रेन के सिर्फ एक कोच S_6 को ही आग क्यूं लगाई गई.? जवाब है- क्योंकि इस कोच में अयोध्या से कारसेवा कर वापस लौट रहे हिंदू सवार थे।
सोचिएगा और हो सके तो एक बार महसूस करके देखिएगा भी, कि जरा सी रोटी की भाप से अपनी एक उंगली जल जाए तो कितना दर्द होता है.? फिर जो उस बंद कोच में भयानक आग और धुएं से मरे होंगे, वो कितना तड़पे होंगे.?
अगर आपने वह भयावह दृश्य देखा होता, तो क्या प्रतिक्रिया होती आपकी.? किस सोच के साथ, क्या निश्चय, क्या प्रतिज्ञा करके उस कोच से उतरते आप.? पर आप तो वहां थे ही नहीं, न ही आपने उस कोच का नारकीय दृश्य देखा ही था.. लेकिन, नरेंद्र मोदी उस कोच में गए भी थे और वापस आते समय उन्होंने कुछ प्रतिज्ञाएं भी की थीं।
तो.. सरकारों की खूंटी पर अपने तंग कपड़े टांग कर बिस्तरों पर फैलना बंद करिए और देशहित के लिए प्रतिज्ञाबद्ध प्रथम राष्ट्रवादी सरकार का सहयोग करिए। क्योंकि कोई भी सरकार या कानून अपना काम तभी बेहतर करता है, जब समाज और समाज का हर व्यक्ति अपना काम बेहतर करे। उस समय न सही अब प्रतिज्ञा करिए कि तन-मन-धन से अपनी सरकार का साथ देंगे.. ऐसा भारत बनाने में, जिसमें कोई शांतिदूत फिर ऐसा करने क्या सोचने की भी हिमाकत न कर सके..
गोधरा कांड में मृत सभी सनातन हुतात्माओं को अश्रुपूर्ण_श्रद्धांजलि 😭🌺
जयहिंद, जय_श्रीराम 🙏
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