Monday, October 9, 2023

भारत का हमास- कांग्रेस

दो दिन पहले एक मुस्लिम आतंकवादी संगठन ने एक संप्रभु देश पर अकारण हमला कर पांच हजार से ज्यादा राकेट दाग दिये, उसके सैकड़ों बेगुनाह नागरिकों को मार दिया और उसकी महिलाओं को नंगा करके जुलूस निकाला.. अब वह देश क्या करेगा.? या तो वह विश्व समुदाय के सामने अपनी रक्षा के लिये "पाहि माम-त्राहि माम" करेगा, या फिर अपनी अस्मिता के लिये प्राणप्रण से सबल प्रत्युत्तर देगा..

मैं बात कर रहा हूं इजराइल पर आतंकी संगठन हमास के ताजा हमलों और उसके जवाब में इजराइल द्वारा युद्ध घोषणा की। ताजा समाचारों के मुताबिक इजराइल की तीन लाख से अधिक सेना ने गाजा पट्टी को चारों ओर से घेर लिया है और आईडीएफ चीफ की स्पष्ट घोषणा है कि "हम गाजा का भूगोल बदल देंगे.."

इजराइल ने वही किया, जो किसी भी संप्रभु राष्ट्र को अपने नागरिकों की सुरक्षा, उनके आत्मसम्मान की रक्षा हेतु करना चाहिये। हमास सहित उसको पीठ पीछे मदद देने वालों को भी पता था, कि इजराइल ऐसा ही करेगा। यहां तारीफ इजराइल के सत्ताशीन नेताओं से कहीं ज्यादा वहां के उन विपक्षी नेताओं की करनी होगी, जो संकट की इस घड़ी में अपने राजनैतिक विरोध को भुलाकर बेंजामिन नेतन्याहू के साथ आ खड़े हुए और उनमें से कई इस समय वॉररूम की जिम्मेदारी निभा रहे हैं..

इजराइल भारत का स्वाभाविक मित्रदेश है, जो लंबे समय से सामरिक और व्यापारिक हर दृष्टि से भारत का प्रमुख सहयोगी रहा है। शायद इसलिये भी, कि दोनों ही पड़ोसी देश द्वारा प्रायोजित आतंकवाद से निरंतर पीड़ित रहे हैं और दोनों के दर्द एक समान हैं। इसीलिये भारत ने हमास के घृणित हमले के तुरंत बाद- अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन से भी पहले, इजराइल के समर्थन की घोषणा कर दी..

भारत में भी एक विपक्ष है- हालांकि जनता ने उसे आधिकारिक विपक्ष कहे जाने लायक भी नहीं छोड़ा है, फिर भी उसके नेता "सजनी हमहीं राजकुमार" की तर्ज पर विपक्षी एकता का नेता होने का दम भरते रहते हैं.. (ये अलग बात है कि कुछ साल पहले तक यही लोग खुद को सृष्टिपर्यंत भारत का राजा होने का दम भरते थे)..

भारत में विपक्षी एकता की स्वयंभू_नेता यह पार्टी आज एक मुस्लिम आतंकवादी संगठन के समर्थन में खुलकर उतर आई। कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) ने आज हमास द्वारा इजरायल पर किए गए बर्बरतापूर्ण हमले को नजरअंदाज करते हुए एक प्रस्ताव पारित कर फिलिस्तीन के "Land, self government and live with dignity and respect" के अधिकार को समर्थन दिया है।

कोई पूछे इस कांग्रेस से- वह फिलिस्तीन के अधिकारों की बात तो कर रही है, लेकिन इस्लाम के उदय से सैकड़ों साल पहले से मौजूद यहूदी अधिकारों को क्यों नहीं स्वीकार कर पा रही है.? यहां यह तथ्य ध्यान में रखना होगा कि 14 मई, 1948 को स्थापित इजराइल विश्व में यहूदियों का एकमात्र देश है.. शायद उसी तरह, जैसे अब भारत हिंदुओं का एकमात्र देश बचा है। लेकिन कांग्रेस के लिये right to existence सिर्फ विवादित इस्लामिक देश फिलिस्तीन का ही है, एक संप्रभु देश इजराइल का कोई right to existence नहीं है.. इसी तरह तो इजराइल के अस्तित्व को फिलिस्तीन, हमास, हिज्बुल्ला और इस्लामिक देश भी नकारते रहे हैं। 

प्रश्न यह है कि क्या अब कांग्रेस भारत का हमास या हिजबुल्ला बन चुकी है.? इसका उत्तर हां में दिया जाना बहुत अनुचित नहीं होगा.. कांग्रेस पाकिस्तान पर भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट के सबूत मांग कर सेना का अपमान करती रही और गलवान मामले में लगातार चीन की भाषा बोलकर भारत को नीचा दिखाने की कोशिश करती रही है। कल ही AMU में कांग्रेस समर्थित छात्रों के एक समूह ने इजरायल के विरोध में हमास के साथ Solidarity दिखाने के लिए अल्लाहू अकबर के नारे लगाते हुए प्रदर्शन किए हैं। ऐसे में ये कहना कहीं से गलत नहीं होगा, कि अब भारत_का_हमास फिलिस्तीनी_हमास के समर्थन में खुलकर उतर आया है।

निश्चित रूप से फिलिस्तीन और हमास के प्रति समर्थन प्रस्ताव पारित करने के पीछे कांग्रेस की मंशा आगामी चुनावों में मुस्लिम वोट की गारंटी पक्की करना है। बेहतर होगा कि अब सोनिया मैडम सम्राट अशोक से प्रेरणा लें और जिस तरह सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र व पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु भेजा था, उसी तरह पप्पू और पिंकी को इस्लाम के समर्थन के लिये अल-अक्सा मस्जिद में नमाज पढ़ने गाजा भेज दें। समर्थन के साथ-साथ यह उनके दादा-दादी फिरोज और मैमूना को श्रद्धांजलि भी होगी..

आमीन

Saturday, September 30, 2023

सनातन_समाज और दलितों पर सवर्ण_अत्याचार..

आजकल संसद से सड़क तक "कुआं ठाकुर का, पानी ठाकुर का.." के बहाने सनातन धर्म में जातिवाद और दलितों पर अत्याचार आदि पर अनर्गल चर्चा हो रही है। सबसे मजेदार बात यह है कि जिनके असल कुल_वंश और जाति का कुछ पता ही नहीं, उस शाही_खानदान के लोग भी जातिगत जनगणना के बहाने दलितों की पैरवी करते दिख रहे हैं..

यह जानना जरूरी है, कि भारत में दलितों पर सवर्णों द्वारा कथित अत्याचार का सच क्या है.?

सबको पता है कि अंग्रेजों से पहले भारत में पांच सौ वर्षों से अधिक समय तक मुसलमानों का शासन था और उसके बाद 1750 से 1947 तक लगभग दो सौ वर्षों तक अंग्रेजों का शासन रहा। अर्थात 1947 में संवत्रता मिलने से पहले सात सौ वर्षों से ज्यादा समय तक देश में लगातार ऐसे लोग सत्ता में रहे, जो वर्तमान सवर्ण शब्द की परिभाषा में नहीं आते। यह अलग बात है कि इन विदेशी शासकों का सर्वाधिक विरोध तथाकथित सवर्णों- राजपूतों और ब्राह्मणों द्वारा ही किया गया था और उस पूरे कालखंड में इसी वर्ग का शासन-सत्ता द्वारा सर्वाधिक दमन भी किया गया- इसपर चर्चा फिर कभी..

अब सहज प्रश्न यह है कि जिन सवर्णों का निरंतर सात शताब्दियों तक दमन होता रहा, क्या उस लंबे कालखंड में भी वह इतने सक्षम थे कि दलितों पर कथित अत्याचार कर सकें.? या सवर्णों में यह क्षमता देश स्वतंत्र होने के बाद अकस्मात आ गई.? कुछ अता-पता भी है किसी को.? या राजपूतों और ब्राह्मणों को यूं ही गरियाया जा रहा है.?

वास्तविकता यह है कि आदिकाल से ही- वाल्मीकि से लेकर कबीर और रैदास तक- सनातन समाज में व्यक्ति को उसके गुणों के आधार पर महत्ता मिली है, चाहे वह समाज के किसी भी वर्ग का रहा हो। कथित दलित और शूद्र वर्ग के लोग हमारे मंदिरों में न केवल पूजा करते आ रहे थे, बल्कि कई मंदिरों में इस वर्ग के लोग पुजारी पद पर भी थे। 

फिर अचानक 19वीं शताब्दी में ऐसा क्या हुआ,  कि दलितों का मंदिरों में प्रवेश निषिद्ध कर दिया गया.? क्या यह सवर्ण पुजारियों ने किया.?

नहीं, वास्तविकता कुछ और ही है-

भारत के मंदिरों में भक्तों द्वारा दान किये जा रहे अकूत चढ़ावे को देखकर 1808 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने सर्वप्रथम पुरी के श्रीजगन्नाथ मंदिर को अपने कब्जे में ले लिया और मंदिर आने वाले हिन्दुओं पर तीर्थयात्रा_कर लगा दिया। इन हिंदू श्रद्धालुओं को चार श्रेणी में बांटकर कर निर्धारित किया गया-
प्रथम श्रेणी: लाल जतरी (उत्तर के धनी यात्री)
द्वितीय श्रेणी: निम्न लाल (दक्षिण के धनी यात्री)
तृतीय श्रेणी: भुरंग (यात्री जो दो रुपया दे सके)
चतुर्थ श्रेणी: पुंज तीर्थ (कंगाल की श्रेणी जिनके पास दो रूपये भी नही मिलते थे)
चौथी कंगाल श्रेणी की एक लिस्ट भी जारी की गई..

1. लोली या कुस्बी
2. कुलाल या सोनारी
3. मछुवा
4. नामसुंदर या चंडाल
5. घोस्की
6. गजुर
7. बागड़ी
8. जोगी 
9. कहार
10. राजबंशी
11. पीरैली
12. चमार
13. डोम
14. पौन 
15. टोर
16. बनमाली
17. हड्डी

तीर्थयात्रा कर (मंदिर में इंट्रीफीस) प्रथम श्रेणी से 10 रूपये, द्वितीय श्रेणी से 6 रूपये और तृतीय श्रेणी से 2 रूपये निर्धारित किया गया, चतुर्थ श्रेणी को इस टैक्स से छूट दी गई..10 रूपये इंट्रीफीस देने वाले सबसे अच्छे से ट्रीट किये जाते थे और कंगाल लिस्ट वाले जो कोई इंट्रीफीस नहीं दे सकते थे, उन्हें मंदिर में नहीं घुसने दिया जाता था.. ठीक वैसे ही, जैसे आज आप ताजमहल/लालकिला में बिना इंट्रीफीस के नहीं जा सकते..

भगवान जगन्नाथ के मंदिर यात्रा पर टैक्स लगाने से ईस्ट इंडिया कंपनी को बेहद मुनाफा हुआ। बाद में अंग्रेज सरकार ने यह प्रयोग देश के अन्य प्रसिद्ध मंदिरों पर किया और यह 1809 से 1840 तक निरंतर चला। हिंदू श्रद्धालुओं से मंदिरों में इंट्री के लिये वसूले गये अरबों रूपये अंग्रेजो के खजाने में पहुंचते रहे और कंगाल वर्ग के लोगों का धीरे-धीरे मंदिरों में प्रवेश निषेध हो गया। बाद में वही कंगाल अंग्रेजों द्वारा और स्वतंत्रता के बाद में काले अंग्रेजों द्वारा अछूत और दलित बना दिये गये।

1932 में हिंदू समाज पिछड़े वर्गों से सम्बंधित "लोथियन कमेटी रिपोर्ट" में दलितों के स्वयंभू मसीहा डॉ. अंबेडकर ने अछूतों को मन्दिर में न घुसने देने का जो उद्धरण पेश किया, वो वही लुटेरे अंग्रेजो द्वारा बनाई भारत के कंगाल यानी गरीब लोगों की लिस्ट थी, जो मन्दिर में घुसने का शुल्क (Entry fee) देने में असमर्थ थे। अंबेडकर ने उस "कंगाल लिस्ट" के लोगों को नया नाम "अछूत" दे दिया जिन्हें बाद के नेताओं ने "दलित" उपाधि से नवाजा..

सवर्णों के प्रति और और अधिक घृणा पेरियार ने फैलाई, जब 16 वर्ष की आयु में घर से भगा दिये जाने के बाद वह वाराणसी आया था। यहां मंदिरों में दर्शन के बाद उसने पुजारियों साथ खाना खाने की मांग की। पुजारी अपना भोजन स्वयं बनाते थे और वह अन्य क्षत्रियों और ब्राह्मणों के साथ भी भोजन नहीं करते थे, तो उन्होंने पेरियार को मना कर दिया जिसपर उसने झूठा प्रोपोगंडा शुरू किया कि ब्राह्मणों ने इसके साथ छुआछूत की..

यथार्थ यह है कि सनातन समाज के मूल में जातिवाद और  छुआछूत कभी था ही नहीं। यदि ऐसा होता, तो सभी हिन्दुओं के देवी-देवता अलग होते और उनके मंदिर जातियों के अनुसार अलग-अलग बने होते.. यही नहीं, उनके श्मशानघाट भी अलग होते और अस्थि विसर्जन भी जातियों के हिसाब से ही होता जैसे मुसलमानों और ईसाइयों में है, जहां जातियों और फिरकों के हिसाब से अलग-अलग चर्च और अलग-अलग मस्जिदें हैं और अलग अलग कब्रिस्तान बने हैं।

सनातन समाज को जातिवाद, भाषावाद, प्रान्तवाद, धर्मनिपेक्षवाद, जड़तावाद, कुतर्कवाद, गुरुवाद, राजनीतिक पार्टीवाद द्वारा बांटने का काम पिछली कई शताब्दियों से पहले मुसलमानों फिरअंग्रेजी शासको ने किया, ताकि विभाजित हिंदुओं पर शासन करनें में आसानी हो। यही काम स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस ने पिछले 70 सालों तक षड्यंत्रपूर्वक करके अपनी राजनीतिक रोटी सेकीं और जनता को जूते में दाल खिलाई..

आशा है, सनातन समाज में सवर्णों के प्रति फैली कुछ भ्रांतियां दूर हुई होंगी।

जयहिंद 🙏
जयतु_सनातन 🚩